बेहद ज़रूरी है समाज में सक्रिय साम्प्रदायिक-जातिवादी राजनीति का पर्दाफाश करना
बेहद ज़रूरी है समाज में सक्रिय साम्प्रदायिक-जातिवादी राजनीति का पर्दाफाश करना
शहीद भगतसिंह के जन्मदिवस पर साम्प्रदायिकता के खि़लाफ़
तीन दिवसीय जु़झारू जन-एकजुटता अभियान
नई दिल्ली, 28 सितम्बर। शहीदेआज़म भगतसिंह के 106वें जन्मदिवस के अवसर पर नौजवान भारत सभा, दिशा छात्र संगठन और बिगुल मज़दूर दस्ता द्वारा तीन दिवसीय साईकिल यात्रा 27 सितम्बर से दिल्ली विश्वविद्यालय के नार्थ कैम्पस से शुरू की गयी। यह यात्रा ‘‘जुझारू जन-एकजुटता अभियान’’ के तहत 27 सितम्बर से शुरू होकर 29 सितम्बर तक चलेगी जो दिल्ली विश्वविद्यालय से होकर करावल नगर, खजूरी, मुस्तफाबाद, सोनिया विहार, आजादपुर, वजीरपुर, पीरागढ़ी आदि इलाकों में क्रान्तिकारी विचारों का प्रचार करते हुए साम्प्रदायिक राजनीति का भण्डाफोड़ करेगी। पोस्टर लगाकर नौजवानों और नागरिकों को इस जन-एकजुटता अभियान में शामिल होने के लिए आमन्त्रिात किया गया है, ताकि बड़े प्रचार दस्तों के साथ भगतसिंह के विचार और साथ ही साम्प्रदायिक फासीवाद विरोधी विचार प्रभावी ढंग से लोगों तक पहुँचाये जा सकें।
यात्रा की शुरुआत में दिशा छात्र संगठन की शिवानी ने छात्रों के बीच बात रखते हुए कहा कि आज के समय में भगतसिंह की क्रान्तिकारी विरासत की प्रासंगिकता पहले से ज़्यादा है क्योंकि शहीदों ने अंग्रेजों की जिस ‘‘फूट डालो और राज करो की नीति’’ का भण्डाफोड़ किया था आज हमारे सामने मौजूद राजनीतिक परिदृश्य भी वही तस्वीर पेश कर रहा है जिसमें सभी चुनावी पार्टियाँ वोटबैंक की राजनीति के लिए जाति-धर्म, क्षेत्र-भाषा के गैर-ज़रूरी मुद्दों को हवा दे रही हैं ताकि जनता को जानलेवा महँगाई, बेरोजगारी से लेकर शिक्षा-स्वास्थ्य जैसे बुनियादी मुद्दों से भटकाने-भरमाने का काम किया जा सके और धर्मिक उन्माद भड़काकर, दंगे फैलाकर जनता की लाशों पर रोटी सेंक कर अपनी चुनावी गोटी लाल की जा सके। इसलिए समाज में सक्रिय साम्प्रदायिक-जातिवादी राजनीति का पर्दाफाश करना बेहद ज़रूरी है नहीं तो मुजफ्फरनगर जैसी घटना फिर से दोहराई जा सकती है।
नौजवान भारत सभा के संयोजक योगेश ने बताया कि शहीदे आजम भगतसिंह को याद करना महज रस्मआदयगी नहीं बल्कि महान शहीदों की विरासत और इंक़लाब के कारवाँ को आगे बढ़ाने का दिन है क्योंकि आजादी के छह दशक चीख-चीख कर बता रहे हैं कि ये आधी-अधूरी आजादी शहीदों के सपनों की आजादी कतई नहीं हो सकती है इसलिए हमें भगतसिंह के अन्तिम सन्देशों को पिफर से दोहराने की ज़रूरत है कि ‘‘नौजवानों को क्रान्ति का ये सन्देश देश के कोने-कोने में पहुँचाना होगा। फैक्टरी, कारखानों से लेकर गाँवों में रहने वाले करोड़ों मेहनतकश आबादी में क्रान्ति की अलख जगानी होगी, जिससे आजादी आयेगी और तब एक मनुष्य द्वारा दूसरे मनुष्य का शोषण असम्भव हो जायेगा’’।
दिल्ली विश्वविद्यालय के उत्तरी परिसर में कॉलेजों के बाहर प्रवेश द्वार पर सभाएँ की गयीं और परचा वितरण किया गया। विश्वविद्यालय मेट्रो स्टेशन पर ‘विहान सांस्कृतिक मंच’ के कलाकारों द्वारा सफ़दर हाशमी द्वारा रचित नाटक ‘राजा का बाजा’ का मंचन किया गया तथा गीत की प्रस्तुति की गयी।
यात्रा के दूसरे सत्र में कारवाँ खजूरी के रिहायशी इलाके में पहुँचा जहाँ नुक्कड़ सभाओं के द्वारा बात रखी गयी।
दिशा छात्र संगठन के सनी ने कहा कि साम्प्रदायिक फ़ासीवाद हर हमेशा सांस्कृतिक खतरे की बात करता है। इतिहास साक्षी है कि जब-जब पूँजीवाद के संकट की घड़ी आयी है तब-तब उसने जनता को भरमाने और बाँटने का ही काम किया है ताकि वास्तविक समस्याएँ जैसे महँगाई, बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य, चिकित्सा आदि के बारे में लोग न सोचें। एक तरफ तो नेता मंत्रियों की चाँदी है और दूसरी तरफ जनता बेहाल है। आज ज़रूरत इस बात की है हम एकजुट हों और इस चुनावी राजनीति का भण्डाफोड़ करें।
यात्रा के दूसरे दिन उत्तर-पूर्वी दिल्ली के मुस्तपफाबाद इलाके में अभियान चलाया गया। बिगुल मज़दूर दस्ता के अजय ने बात रखते हुए कहा कि भगत सिंह ने गतिरोध की स्थिति में क्रांति की स्पिरिट ताजा़ करने को ज़रूरी बताया था। आज समूचे देश का राजनीतिक परिदृश्य इसकी माँग कर रहा है। भगत सिंह के विचारों को अमल में लाकर ही सच्ची आज़ादी की लड़ाई लड़ी जा सकती है और यही सही मायने में भगतसिंह की याददिहानी होगी। इलाके में व्यापक परचा वितरण किया गया तथा गीतों की प्रस्तुति भी की गयी। यात्रा में छात्रों-नौजवानों तथा मज़दूरों ने भी हिस्सेदारी की।


