बोल अरी धरती बोल- राज सिंहासन डाँवाडोल
बोल अरी धरती बोल- राज सिंहासन डाँवाडोल
सुन्दर लोहिया
भाजपा के घोषणा पत्र पर राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह के साथ मीडियाकर्मियों राजनीतिक विशेषज्ञों और बुद्धिजीवियों की चर्चा को एक समाचार चैनल ने आयोजित किया। आगामी लोकसभा चुनाव पर राष्ट्रीय बहस का प्रचलन करके देश में बदलते हुये राजनीतिक परिदृश्य में एक नयी शुरुआत है जिसका स्वागत होना चाहिए। इस आयोजन में जो प्रश्न पूछे गये वे भ्रष्टाचार और साम्प्रदायिकता से सम्बन्धित थे जिनमें से अधिकांश के उत्तर पहले से ही मालूम थे। मसलन गुजरात दंगों पर भाजपा का रुख जो था वही दोहराया गया। नरेन्द्र मोदी के मुस्लिम विरोधी बयान के बारे में जो लीपापोती पहले की जाती थी अब भी वैसी ही हुई। नरसंहार पर दुःख प्रकट करने के प्रश्न पर मोदी कुत्ते के बच्चे के कुचल जाने जैसी समानता को मुस्लिम विरोधी न मानने के बारे जो सफाई पहले दी जाती थी वही दी गई कि यह नरेन्द्र मोदी की प्राणी मात्र के प्रति करुणा की अभिव्यक्ति है। किसी विद्वान या पत्रकार ने यह नहीं पूछा कि नरेन्द्र भाई ने गुजरात के दंगों में मारे जाने वालों की उपमा के लिये जानवर क्यों चुना ? वे यह क्यों नहीं कह सके कि किसी भी प्राणी की मृत्यु पर उन्हें दुःख ही होता है? कुत्ता ही क्यों याद आया?
प्रश्नकर्ताओं ने भी विदेश नीति वगैरह के सवाल तो पूछे पर कोई एक सवाल कारपोरेट घरानों का देश की राजनीति पर बढ़ रहे दबाव के बारे में नहीं पूछा गया। भ्रष्टाचार पर सवाल हुये लेकिन ईमानदार पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को सुरक्षा प्रदान करने और उनके काम को सम्मानित करने पर पता नहीं क्यों मौन साधे रहे? उन अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के बारे में उनकी पार्टी की राय बारे सवाल नहीं हुये जिनके कारण हमारी लोककल्याण सम्बन्धी कानूनों को समझौतों की शर्तों का उल्लंघन माना जा रहा है। कुछ इस प्रकार के सवाल पूछने की कोशिश कर रहा हूँ ताकि भाजपा को वोट देने या न देने का निर्णय बिना किसी संशय के कर सकूँ।
पहला सवाल है- भाजपा, संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन की केन्द्रीय सरकार पर देश में महँगाई लादने का आरोप लगाती है, जो सही है। इसके कई कारण हैं। मुख्य कारण है पैट्रोल और गैस की कीमतों में निरन्तर बढ़ोत्तरी। ये आम आमी की रोज़मर्रा की ज़रुरतों से जुड़े हुये उत्पाद हैं। इनमें थोड़ी सी बढ़ोत्तरी भी जनता पर भारी पड़ती है। इसके प्रभाव से आम आदमी के उपभोग की प्रायः हर चीज़ महँगी हो जाती है। इसके लिये संप्रग सरकार की रिलायंस कम्पनी को गैस और तेल की चोर बाज़ारी करने की छूट देने का दोषी माना जा रहा है। भाजपा यदि सरकार बनाये तो रिलायंस कम्पनी की उन दलीलों के प्रति क्या रुख होगा जिसमें वे गैस भण्डार में तेल की कमी बता रही है जबकि वैज्ञानिक छानबीन में इसे सच नहीं पाया गया। क्या भाजपा सरकार कम्पनी की विदेशी विशेषज्ञ द्वारा दुबारा छानबीन करने की दलील मान जायेगी?
दूसरा सवाल है- कांग्रेस सरकार नवउदारवादी नीतियों का अनुसरण करते हुये देश में खुदरा व्यापार के लिये विदेशी कम्पनियों को जो छूट दे रही है क्या भाजपा उसे चालू रखेगी या किसी प्रकार का संशोधन लायेगी ?
तीसरा सवाल है- हाल ही में देश की प्रशासनिक सेवा अधिकारियों और पुलिस अधिकारियों की नई पीढ़ी अपनी संवैधानिक प्रतिज्ञाओं के प्रति सचेत हो कर राजनेताओं के कोप का भाजन बन रही है। जनता ऐसे अधिकारियों को जिस आदर और उम्मीद के साथ देखती है उसका प्रमाण उत्तर प्रदेश की दुर्गाशक्ति हरियाणा के खेमका और गुजरात के पुलीस अफसर संदीप भट्ट के साथ उनकी हमदर्दी में प्रकट है। वैसे इस मामले में आपका सुशासित राज्य गुजरात काफी बदनाम है और वनजारा के पत्र के बाद तो संदेह और सघन हो गया है यह जानना ज़रूरी है कि आपका प्रधानमन्त्री के तौर पर ऐसे मामलों में स्टैण्ड क्या होगा?
चौथा सवाल यह है- भारतीय समाज कई स्तरों पर विभाजित है। एक वर्ण व्यवस्था है और इसके भीतर आर्थिक आधार पर वर्ग विभाजन है। वर्ण व्यवस्था की विसंगतियों से निपटने के लिये संविधान निर्माताओं ने दलित जातियों के लिये आरक्षण का प्रावधान किया है। अब स्थिति यह है कि पहले जो लोग जाति आधारित आरक्षण का विरोध कर रहे थे और कुछ दलितों की क्रीमी लेयर को आरक्षण से बाहर निकालने की माँग कर रहे थे, वे सब के सब अब अपनी अपनी जातियों के लिये आरक्षण की माँग करने लगे हैं। आपकी सरकार इस समस्या को कैसे हल करेगी ?
और इस कड़ी का अंतिम सवाल इस प्रकार है-अन्ना हज़ारे के आन्दोलन ने भ्रष्टाचार से निपटने के लिये जन लोकपाल बिल का मसविदा तैयार किया था। कांग्रेस ने सरकारी लोकपाल का बिल, लोक सभा से पास करवा लिया है। आपका लोकायुक्त का मसविदा अन्ना कमज़ोर मानते हैं। केन्द्र में सरकार बनाने का मौका मिले तो आप कौन सा लोकपाल बिल पास करवाना चाहेंगे?
सवालों की दूसरी कड़ी में अंतराष्ट्रीय मुद्दों को लेकर इतने ही सवाल और हैं। पहला सवाल है कि पाकिस्तान के साथ हमारे रिश्तों में जो खटास है उसके कारण भाजपा कांग्रेस को पाकिस्तान के प्रति कड़े कदम न उठाने का आरोप लगाती है। पर कुछ लोगों का मानना है कि पाकिस्तान के प्रति हमोरा बड़े भाई वाला बरताव उसे अपमानजनक लगता है। क्या आप इस दृष्टिकोण को बदलने की कोशिश करेंगे?
अगला सवाल है कि प्रधानमन्त्री के रूप में आप आतंकवाद को धर्म से जोड़ कर देखते हुये इसे मुस्लिम या हिन्दुत्ववादी आतंक के नाम से पहचानेंगे या यह मानेंगे कि आतंक का कोई धर्म नहीं होता इसलिये सभी आतंकवादी धर्मविरोधी और मानवता के दुश्मन होते हैं। तीसरा सवाल यह है कि कांग्रेस सरकार ने निश्चित तौर पर कुछ ऐसे अंतराष्ट्रीय समझौते किये हैं जो हमारे कल्याणकारी राज्य के सिद्धान्त के विरुद्ध हैं। मसलन खाद्य सुरक्षा विधेयक ही है जिसे लेकर अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष आपत्ति व्यक्त कर रहा है कि इसे पास करवा कर मनमोहन सरकार ने विश्व व्यापार संगठन की शर्तों का उल्लंघन किया है। इस कानून को अमल में लाने के लिये कम्पनियों को किसानों से अनाज ज़्यादा कीमत देकर खरीद कर उसे कम कीमत पर बेचने के लिये मज़बूर होना पड़ेगा जिससे व्यापारमें घाटा होगा। उनका मतलब साफ तौर पर है कि ऐसे में विदेशी कम्पनियां खुदरा व्यापार में नहीं उतर सकेंगी।आप इस आपत्ति से कैसे निपटेंगे ?
अगला सवाल शिक्षा को लेकर है कि शैक्षणिक गुणवत्ता के लिये कांग्रेस विदेशी विश्वविद्यालयों को अपने फ्रैंचाइजी नियुक्त करके देश में विदेशी शिक्षण संस्थानों को स्थापित करने का इरादा रखती है लेकिन कुछ विशेषज्ञ विदेश से विद्वानों को देसी विश्वविद्यालयों में पढ़ाने के लिये नियुक्त करने का सुझाव देते हैं। आपकी सरकार कौन सा रास्ता अपनायेगी? और अन्त में इस देश से प्रतिभा पलायन से हमारा विकास अवरुद्ध हो रहा है। हमारे मानव संसाधन का इस्तेमाल विदेशों में किया जा रहा है। इस मसले में आर्थिक पक्ष भी है जिसे आम तौर पर नज़रअन्दाज़ कर दिया जाता है। प्राइमरी से लेकर इंजीनियरिंग की स्नातकीय शिक्षा पर खर्च भारत करता है और जो क्रीम ऊपर छलकता है उसे विदेशी उड़ा ले जाते हैं। क्या आप इसे देश के साथ विश्वासघात मानकर इस प्रवृत्ति को रोकने के लिये कुछ कारगर कदम उठायेंगे ? यदि हाँ, तो वे क्या होंगे ?


