अंबरीश कुमार
लखनऊ। विश्व हिंदू परिषद के नेता अशोक सिंघल के मंदिर प्रस्ताव को समाजवादी पार्टी के मुस्लिम नेताओं ने ख़ारिज कर दिया है। इस मुद्दे पर ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कल ही अपनी नाराजगी जता दी थी और अयोध्या में चौरासी कोसी परिक्रमा का विरोध भी कर दिया था क्योंकि यह पिछले पचास साल से नहीं हो रही है। इस बीच सरकार ने चौरासी कोसी परिक्रमा पर रोक लगा दी है जिसके बाद हिन्दुत्ववादी ताकतें पुराने तेवर में आ गयी हैं। इस माहौल में समाजवादी पार्टी का रुख भी बदला है और विहिप के प्रस्ताव पर आजम खान ने इस मुद्दे पर मोर्चा ही खोल दिया। ऐसे में समाजवादी पार्टी का रुख आसानी से समझा जा सकता है। पार्टी इस मुद्दे पर विश्व हिंदू परिषद के प्रस्ताव को अब कोई तवज्जो दे यह लगता नहीं है। यह मुद्दा ठीक कल्याण सिंह जैसा है जिससे पार्टी एक बार झटका खा चुकी है। तब भी आजम खान समेत मुस्लिम नेताओं ने कल्याण सिंह का पुरजोर विरोध किया था और उन्हें बाबरी मस्जिद शहादत का दोषी भी माना था।पिछले लोकसभा चुनाव में इस सवाल को लेकर पार्टी को खासा नुक्सान भी उठाना पड़ा था और कांग्रेस को इसका फायदा मिला था।

आज समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ मंत्री मोहम्मद आज़म खान ने समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के साथ विश्व हिन्दू परिषद के अध्यक्ष अशोक सिंहल के साथ मुलाकात के बारे में प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये कहा कि अब जबकि बाबरी मस्जिद को ताकत के बल पर शहीद किये हुये काफी समय हो गया है, 06 दिसम्बर, 1992 को राम मन्दिर बना भी दिया गया, तो ऐसे में बाबरी मस्जिद के लिये मध्यस्थता का क्या अर्थ है, वह समझ से परे है। बाबरी मस्जिद की शहादत अशोक सिंहल और अराजक तत्वों ने की। उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने बाबरी मस्जिद को शहीद किया है उनसे कोई भी सभ्य उम्मीद रखना बहुत बड़ी नादानी होगी।

आज़म खान ने कहा है कि न सिर्फ़ इस देश के बल्कि दुनिया भर के मुसलमान बाबरी मस्जिद को शहीद किये जाने के लिये अशोक सिंहल को बराबर का मुजरिम मानते हैं। ऐसे लोगों से हाथ मिलाकर मुसलमानों में एक गलत संदेश जा रहा है। उन्होंने कहा कि अशोक सिंहल जैसे व्यक्तियों को इतना अधिक महत्व दिया जाना उचित नहीं है। 17 अगस्त को विकास के एजेण्डे पर पूर्वाह्न ग्यारह बजे से आयोजित प्रेस कान्फ्रेंस को इस मुलाकात के लिये लगभग दो घण्टे विलम्बित कर दिया गया। समाचार पत्रों में इस खबर को जिस प्रकार लिखा गया है उसने मुलसमानों के दिलों में लगे जख्मों को कुरेदा है।

आज़म ने आगे कहा कि अगर यह मध्यस्थता बाबरी मस्जिद को बनाये जाने के लिये की जा रही है तो इस पर विचार किया जा सकता था, लेकिन इस मुद्दे पर कई मुक़दमे न्यायालयों में एक लम्बे अर्से से विचाराधीन हैं और इन मुकदमों पर अन्तिम फै़सला होने तक बाबरी मस्जिद का पुनर्निर्माण संभव नहीं है। न्यायालय द्वारा भी बाबरी मस्जिद परिसर को टुकड़ों में बाँट दिया गया है। ऐसे में किस टुकड़े के लिये अशोक सिंहल से मध्यस्थता होगी, यह भी ग़ौर तलब है। उन्होंने कहा कि वर्ष 1992 में बाबरी मस्जिद को गिराये जाने के बाद ही मुल्क के लोगों ने जाना कि आरडीएक्स, ऐके-47 और मानव बम क्या चीज़ हैं और इसी के बाद से साम्प्रदायिक दंगे भड़के, मुसलमानों को भारी जानी और माली नुकसान हुआ, आबरूरेज़ी भी हुयी जो बाद में गुजरात दंगों में परिवर्तित हो गये।

इस बीच समाजवादी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी ने कहा है कि भाजपा और कांग्रेस ने मिलकर उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिकता को फिर हवा देने का काम शुरू कर दिया है। ऐसे मुद्दे उभारे जा रहे हैं जिनसे हिन्दू मुस्लिम के बीच दूरियाँ बढ़ें। उक्त दोनों दलों की मिलीभगत से ही अयोध्या में बाबरी मस्जिद का ध्वंस हुआ था। तब केन्द्र में कांग्रेस और प्रदेश में भाजपा की सरकार थी। जनता ने दोनों दलों को सबक सिखाया है। अब लोकसभा चुनावों के पहले फिर वे चाहे जितने जतन करें उनकी काठ की हाण्डी दोबारा चढ़ने वाली नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि समाजवादी पार्टी ने हमेशा लोकतंत्र, समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता का पक्ष लिया है। वह सिद्धान्ततः इनसे बंधी है। समाजवादी पार्टी धर्मनिरपेक्षता से कोई समझौता नहीं करती है। समाजवादी पार्टी ने मुस्लिमों के हक की हमेशा लड़ाई लड़ी है और उनको रोजी रोटी तथा सम्मान से जीने का अवसर देने की पहल की है। मुलायम सिंह यादव ने अपनी सरकार गँवाने का खतरा उठाकर भी बाबरी मस्जिद को टूटने से बचाया था। उर्दू भाषा को बचाने के साथ उर्दू अनुवादकों, शिक्षकों की सरकारी दफ्तरों में नियुक्तियाँ भी उन्होंने की थीं जो आज भी जारी है। पार्टी की यह टिपण्णी बिना कुछ कहे भी अपना रुख साफ़ कर रही है।