बौद्ध धर्म की आड़ में देश के खिलाफ कोई साजिश तो नहीं?
बौद्ध धर्म की आड़ में देश के खिलाफ कोई साजिश तो नहीं?

Is there any conspiracy against the country under the guise of Buddhism?
विवादों में घिरे बौद्ध धर्म गुरु करमापा उग्येन त्रिनेल दोरजे के पास भारी मात्रा में मिली विदेशी मुद्रा और उनके संदिग्ध आचरण ने अनेक सवाल खड़े कर दिए हैं, जिसमें से एक सवाल है कि कहीं यह बौद्ध धर्म की आड़ में देश की धार्मिक अस्मिता को छिन्न-भिन्न करने की साजिश या व्यापक स्तर पर देश में धर्मान्तरण क्रांति का सूत्रपात तो नहीं।
करमापा और उनके मठ से बरामद 25 देशों के सात करोड़ रुपए की विदेशी और भारतीय मुद्रा के मामले की तह में जाने के बाद ही हकीकत का खुलासा होगा, लेकिन फ़िलहाल उनके पास से बरामद 70 लाख रुपए की चीनी मुद्रा युआन ने उनके तार चीन से जोड़ दिए हैं। कयास लगाया जा रहा है कि करमापा कहीं चीनी जासूस तो नहीं। यहाँ इस बात की ओर ध्यान देना जरूरी है कि बौद्ध मठों में होने वाली गतिविधियों (Activities in Buddhist Monasteries) को कभी सरकारी या प्रशासनिक स्तर पर जांचने और जानने की कोशिश नहीं की गई। इसी का परिणाम है कि बौद्ध मठों या बौद्ध धर्म के नाम पर होने वाली गतिविधियों से देश के लोग अनभिज्ञ है। बौद्ध धर्म की आड़ में बौद्ध मठों की सक्रियता के अलावा एक और संगठन है जो देश में "बुद्धिज्म" के नाम पर विभिन्न धर्मावलम्बियों के बीच धीरे-धीरे अपनी गहरी पैठ बनाता जा रहा है। इस संगठन का सम्बन्ध जापान से है और इसका निशाना है देश का मध्यम व गरीब तबका। यहाँ इस संगठन के कार्यकलाप और गतिविधियों का खुलासा करना जरूरी है।
Nichiren Buddhism in India
महात्मा बुद्ध और उनके सिद्धांतों की पालना करते हुए उनके कुछ अत्यंत निकट रहे लोगों ने कुछ अवधारणायें स्थापित की, जिनका अनुसरण आज देश-विदेश मैं लाखों लोग कर रहे हैं। इन्ही में से एक है महात्मा बुद्ध और उनके सिद्धांतों को दुनिया भर में स्थापित करने और "बुद्धिज्म" के अनुयायियों की संख्या बढ़ाने के लिए जापानी संन्यासी (भिक्षु) निचिरेन दैशोनिन द्वारा तेरहवीं शताब्दी में स्थापित की गई लोटस सूत्र (कमल के फूल) पर आधारित अवधारणा। इस अवधारणा को पूरे विश्व में प्रचारित व प्रसारित करने का काम कर रहा है जापानी संगठन सोका गक्कई इंटरनेशनल (एसजीआई)। भारत में इसकी शाखा को भारत सोका गक्कई के नाम से जाना जाता है। जिस तरह तिब्बतियों के तीसरे सर्वोच्च धर्म गुरु करमापा के नाम को लेकर विवाद रहा है, ठीक उसी तरह जापानी भिक्षु निचिरेन दैशोनिन द्वारा स्थापित अवधारणा (The concept founded by the Japanese monk Nichiren Daishonin) भी सदैव विवादित रही।
महात्मा बुद्ध के सिद्धांतों में लोटस सूत्र की अवधारणा का तात्पर्य क्या है? | What is the meaning of the concept of Lotus Sutra in the doctrines of Mahatma Buddha?
महात्मा बुद्ध के सिद्धांतों में लोटस सूत्र की अवधारणा का तात्पर्य यह है कि जिस तरह गंदगी में होने के बावजूद कमल का फूल उससे ऊपर निकल कर खिलता है ठीक उसी प्रकार मनुष्य को इसमें सिखाया जाता है कि किस तरह समाज में व्याप्त गंदगी और बुराइयों से बचकर ऊपर निकला जा सकता है, लेकिन सोका गक्कई द्वारा इसे हर देश और हर जगह अलग-अलग ढंग से प्रचारित किया जा रहा है और लोगों को अधूरा ज्ञान परोस कर जिस तरह दिग्भ्रमित किया जा रहा है वह बड़ा ही आश्चर्यजनक है। कमल के फूल को आठ शुभ प्रतीक में से एक माना गया है। इस अवधारणा से जुड़े लोग महात्मा बुद्धके कमल पर बैठे या हाथ में कमल लिए हुए रूप कि कल्पना करते हैं। इस फूल को दिल की तरह माना गया है और इसमें रंगों को भी महत्व दिया गया है। जैसे सफेद: मानसिक और आध्यात्मिक पवित्रता, लाल: हृदय करुणा और प्रेम, नीला (ब्लू): बुद्धि और इंद्रियों पर नियंत्रण, गुलाबी: ऐतिहासिक बुद्ध और बैंगनी: रहस्यवाद।
निचिरेन बौद्धवाद का इतिहास व लोटस सूत्र | लोटस सूत्र इन हिंदी
लोटस सूत्र को लेकर चीन, जापान और कोरिया जहाँ सर्वाधिक बौद्ध धर्म अनुयायी हैं, भी एकमत नहीं हैं। इतिहासकारों का मानना है कि लोटस सूत्र के मूल पाठ खो गए, लेकिन भिक्षु कमारजिवा द्वारा चीनी में 406 सीई में किये गए एक अनुवाद को सही माना जा सकता है। मूल रूप से लोटस सूत्र संस्कृत सूत्र है या सद्धर्मा-पुंडारिका सूत्र। बौद्ध धर्म के कुछ स्कूलों में यह विश्वास कायम है कि यह ऐतिहासिक सूत्र बुद्ध के शब्द हैं। हालांकि, अधिकांश इतिहासकारों का मानना यह सूत्र पहली या दूसरी शताब्दी सीई में लिखा गया था। सोका गक्कई संगठन इन सबसे अलग यह मानता है कि लोटस सूत्र जापानी भिक्षु निचिरेन दैशोनिन द्वारा स्थापित अवधारणा है। संगठन द्वारा इस अवधारणा को "Human Revolution" का नाम देकर प्रचारित किया जा रहा है।
यहाँ पहले यह साफ कर देना जरूरी है कि "सोका गक्कई" क्या है?
निचिरेन बुद्धिज्म पर आधारित बुद्ध महायान की एक शाखा "सोका गक्कई" {Soka Gakkai (सोका गकाई)} वस्तुत: एक ऐसा सिद्धांत या धार्मिक आन्दोलन है जिसके जरिये एक ऐसे समुदाय का निर्माण करना है जिसकी बौद्ध धर्म में विशेष आस्था हो। विश्व के 192 देशों और राज्यों में सोका गक्कई इंटरनेशनल के करीब 12 लाख सदस्य हैं। ऐसा इस संगठन का दावा है।
विलुप्त हो चुके निचिरेन बुद्धिज्म पर आधारित "सोका गक्कई" को 1930 में जापानी शिक्षक त्सुनेसबुरो माकीगुची ने संस्थापित किया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सरकार समर्थित राज्य शिन्तो के विरोध के कारण इस संगठन को दबा दिया गया और "आपराधिक सोच" के आरोपों में माकीगुची को जोसी तोडा व अन्य सोका गक्कई नेताओं सहित 1943 में गिरफ्तार कर लिया।
नवम्बर 1944 में जेल में ही कुपोषण के कारण माकीगुची का 73 साल की उम्र में देहांत हो गया। जापान में हुए पहले परमाणु हमले से कुछ सप्ताह पहले जुलाई 1945 में तोडा को रिहा किया गया। आने वाले वर्षों में तोडा संगठन के पुनर्निर्माण में जुट गए। 1958 में अपने निधन से पहले करीब 7,50000 लोगों को उन्होंने इसका सदस्य बना लिया था।
सोका गक्कई इंटरनेशनल को 1975 में दैसाकू इकेडा ने संस्थापित किया, जो कि इसके अध्यक्ष हैं। उन्होंने संगठन का चरित्र चित्रण करने और इसे प्रसिद्द करने के लिए निचिरेन बुद्धिज्म के पेशेवर लोगों का समूह बनाकर उनकी सहायता से इस दर्शन शास्त्र को शांति, शिक्षा और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिए विश्व व्यापी बौद्धधर्मी आन्दोलन के रूप में प्रचारित करने का काम किया, जो अभी भी जारी है। सोका गक्कई का यह विश्व व्यापी बौद्धधर्मी आन्दोलन निचिरेन बुद्धिज्म की शिक्षा पर आधारित है। यह धारणा जड़वत विचारों से सम्बंधित "मानवीय क्रांति" या कह सकते हैं कि मानव में महत्वपूर्ण परिवर्तन पर बल देती है और इस कायापलट के लिए गोपनीय तरीके से निरंतर बौद्धधर्मी अभ्यास की प्रक्रिया अपनाने की शिक्षा दी जाती है। शायद इसीलिए इससे जुडे लोग समाज और मीडिया से कतराते हैं। निचिरेन बुद्धिज्म से जुड़े लोगों का विश्वास है कि इस प्रक्रिया से न सिर्फ चरित्र विकास और खुद को पूर्ण संतुष्टि मिलती है, बल्कि इसमें समाज की भी बेहतरी है। उनका मानना है कि जीवन में किसी भी समस्या पर जीत पा लेने पर जिस परम खुशी का अनुभव होता है वह सिर्फ इसमें है। छोटे समूह, मुहल्ला और स्थानीय समूह की बैठक, जिसमें परिचर्चा होती है, संगठन की परंपरा का ही हिस्सा है जो सोका गक्कई की मेम्बरशिप ग्रोव्थ के लिए उत्तरदायी है। ऐसा इससे जुड़े लोगों का मानना है।
यहाँ सवाल किसी अवधारणा या सिद्धांत के विरोध का नहीं बल्कि यह है कि जब यह बौद्धधर्म को प्रचारित और संस्थापित करने का आन्दोलन है तो फिर इसे मात्र एक सिद्धांत या अवधारणा क्यों कहा जाता है? क्यों इसके जरिये लोगों को काल्पनिक उदहारण देकर उनका माइंड वाश किया जा रहा है? क्यों नहीं इससे जुड़ने वाले लोगों को स्पष्ट किया जाता कि शांति, शिक्षा और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के नाम पर यह सब विश्व व्यापी बौद्धधर्मी आन्दोलन का एक हिस्सा है? "Human Revolution" का नाम देकर जिस तरह इसको प्रचारित किया जा रहा है वह मानवीय क्रांति वास्तव में एक ऐसे समुदाय के निर्माण करने की प्रक्रिया है जिसमें बौद्ध धर्म के प्रति विशेष आस्था हो। अगर यह मात्र एक सिद्धांत या अवधारणा ही है तो क्यों जापान में जहाँ इसके सबसे ज्यादा अनुयायी हैं, वहां "सोका गक्कई" लीडर्स को जेल में डाल दिया गया और उन पर आपराधिक सोच या विचारों का आरोप लगा?
सवाल किसी धर्म या आस्था का नहीं है। सवाल है कि हर धर्म और आस्था से जुड़े लोगों के लिए समान नियम और कायदे होते हैं तो इस अवधारणा से जुडे लोगों के लिए क्यों नहीं? "लोटस सूत्र " की इस अवधारणा का अनुसरण करने वाले अनुयाईयों ने अपने खुद के नियम बना रखे हैं। साथ ही इसे प्रचारित करने और इसमें लोगों का विश्वास कायम रखने के लिए झूठे उदहारण पेश किये जाते हैं।
खैर... यहाँ हम बात कर रहें हैं बौद्ध धर्म की आड़ में देश में चल रही उन गुप्त गतिविधियों की जिन्होंने अनेक सवाल हमारे सामने खड़े कर दिए हैं जिनका जवाब किसी के पास नहीं। देश के अनेक हिस्सों में लोगों को दिग्भ्रमित कर धर्म परिवर्तन करने के कई मामले पहले भी उजागर हुए है। इसलिए एक सवाल यह भी उठता है कि कहीं यह कोई सोची समझी साजिश तो नहीं धर्म परिवर्तन की। क्योंकि इस अवधारणा से जुड़े लोगो को अपने घर में इस अवधारणा से सम्बंधित मंदिर जैसा स्थान बनाने के प्रेरित किया जाता है और उसकी पालना भी कराई जाती है। साथ ही उनको कहा जाता है कि यह एक अवधारणा मात्र है कोई धर्म नहीं। इस अवधारणा का अनुसरण करने वाले किस कदर देश के लोगों की धार्मिक भावनाओं को रौंदकर कैसे उन्हें दिग्भ्रमित कर रहे हैं। क्यों धर्म को अवधारणा के नाम का चोला ओढ़ाया जा रहा है? इसकी जाँच आवश्यक है।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आज हर धर्म व समाज मीडिया से नजदीकियां चाहता है तो फिर "सोका गक्कई " से जुड़े लोग क्यों मीडिया या आम लोगों से बात करने में कतराते हैं। सबसे बड़ी बात यह कि इस अवधारणा में अधिकतर ऐसे लोगो को जोड़ा जाता है जो आर्थिक, मानसिक या शारीरिक रूप से से कमजोर हों। उन्हें बताया जाता है कि इस अवधारणा से जुड़ने के बाद उनकी ये सब परेशानी दूर हो जाएगी, लेकिन हकीकत कुछ और ही होती है। क्या ये लोगों का धर्म परिवर्तन करवाने की पहल है? या फिर जिस तरह करमापा के पास से बरामद चीनी मुद्रा युआन को चीन की उस साजिश का हिस्सा माना जा रहा है, जिसके तहत चीन भारत के लद्दाख से अरुणाचल तक के सारे मठों पर करमापा के जरिये नियंत्रण करना चाहता है, ठीक उसी तरह जापान भी हमारे देश में सोका गक्कई के जरिये लोगो को बरगला कर अपना वर्चस्व स्थापित करने की कोई साजिश रच रहा है? देश में सोका गक्कई की गतिविधियों के संचालन के लिए पैसा कहाँ से और किन लोगों के पास आ रहा है, यह भी जाँच का विषय है। इन सब सवालों का जवाब किसी के पास नहीं है। खुद इस अवधारणा से जुड़े ज्ञाताओं के पास भी नहीं।
निशांत मिश्रा, लेखक पिंकसिटी प्रेस क्लब, जयपुर के पूर्व उपाध्यक्ष, हैं
संपर्क : [email protected]
Notes - Soka Gakkai is a Japanese Buddhist religious movement based on the teachings of the 13th-century Japanese priest Nichiren as taught by its first three presidents Tsunesaburō Makiguchi, Jōsei Toda and Daisaku Ikeda. (Wikipedia)


