God, Sadhvi and Dera ...! Is the power of Chandigarh and Delhi like Umbrella for this God?

हुजूर भगवान से एक मुलाकात, मैं धन्य हो गया...!

आज सिरसा के राम - रहीम भारत की सबसे बड़ी खबर हैं। राम -रहीम के सच्चा -सौदा डेरा आश्रम की यात्रा मैंने 2004 में की थी। उस यात्रा के बाद मेरा "छत्रपति की शहादत का मतलब पूरा सच " आलेख हिन्दुस्तान के संपादकीय पृष्ठ में प्रकशित हुआ।मैंने भी सिरसा की यह यात्रा भक्ति भाव से ही की थी। भक्ति -भाव का सीधा मतलब छत्रपति की महान शाहदत के प्रति अपनी गहरी आसक्ति। सच्चा -सौदा डेरा की इस डायरी का कुछ अंश सामयिक वार्ता ,प्रवक्ता और विस्फोट डॉट कॉम में प्रकाशित हुआ था। मुख्यधारा की पत्रकारिता में एस डायरी को तवज्जो नहीं दिया गया था। आज 13 वर्ष पूर्व की इस डायरी को पढना आपको जरूर रुचिकर लगेगा।

सादर सविनय

-पुष्पराज।

(स्वतंत्र पत्रकार एवं नंदीग्राम डायरी के लेखक)

(डेरा सच्चा सौदा की डायरी जून, 04, 2004 सिरसा हरियाणा)

पुष्पराज

हरियाणा का सिरसा पर्यटन का केन्द्र तो नहीं है पर अगर आप पत्रकारिता से जुड़े हैं और मूल्यपरक पत्रकारिता से आपकी किसी तरह की आपसदारी है तो सिरसा आपके लिए एक तीर्थ की जगह हो सकती है। पत्रकारिता की एक लीक आजाद भारत में सिरसा से शुरू होती है जो जल्दी ही खत्म हो सकती है अगर हम आप सबने मिलकर उस लीक को बचाने की कोशिश नहीं की। सिरसा को पत्रकारिता का तीर्थ आप इस तौर पर मान सकते हैं कि इस सिरसा के पत्रकार रामचंन्द्र छत्रपति ने सच लिखने के आरोप में अपनी शहादत दी है। 21 नवम्बर 03 को मशहूर पत्रकार प्रभाष जोशी ने छत्रपति की पहली बरसी पर छत्रपति की शहादत को माथा टेकते हुए हम सबको चेताया है- पत्रकारिता के सामने छोटे-बड़े हिटलर खड़े हैं आप अगर इन हिटलरों से नहीं लड़ेंगे तो अपनी प्यारी पत्रकारिता को घुन खा जायेगा। प्रभाष जोशी की चुनौती को अगर आप स्वीकार करते हैं तो सिरसा की तरफ मुडि़ये।

छत्रपति की शहादत के बारे में कुछ भी जानने के लिए हमें शहादत के वजहों की तह में जाना पड़ता है और उन कारणों की जड़ में पहुंचने पर परिणाम हमें खबरदार करता है। छत्रपति के निकट मित्र हरियाणा के प्रतिष्ठित अध्विक्ता लेखराज ढ़ोट कहते हैं छत्रपति को याद करने का मतलब ही है सच्चा सौदा डेरा का खिलाफ और उनकी ध्मकी जब अब भी घोषित है क्या दिल्ली की पत्रकारिता ने इन धमकियों के खिलाफ उतरने का निर्णय लिया है। सच्चा सौदा डेरा का भूत अगर इतना डरा रहा है। इस भूत का खौफ अगर पत्रकारिता के लिए इतना भयानक है तो हमें खौफ का निकट दर्शन जरूर कर लेना चाहिए। डेरा है और डेरे में सच की सौदेवाजी है सब कुछ खुला-खुला है तो क्या अंदर जाना और सब कुछ अपनी खुली आंखों से देख लेना भी उतना ही आसान है।

रामचन्द्र छत्रपति की हत्या (Ramchandra Chhatrapati murdered) के बाद हरियाणा के पत्रकारों की महापंचायत ने डेरा का हुक्का-पानी तो बंद किया ही, कुछ डेरा चारण पत्रकारों को पत्रकार बिरादरी से निकाल बाहर भी किया।

महापंचायत के कठोर फैसले से पत्रकार विदादरी से निकाल बहार हुए पत्रकार डेरा की कमिटी, प्रबंध्कारिणी कमिटी और डेरा के लिए मुख पत्र ‘सच कहूं’ की पत्रकारिता में लग गये हैं। प्रेस कमिटी के मान्यवर आपका डेरा का दर्शन करा सकते हैं। शर्त यह है कि आपके बारे में यह तय हो कि आप डेरा के पक्ष में ही लिखने वाले हैं।

हम सोचते हैं सिरसा में छत्रपति की शहादत को सलाम कर लौटने के साथ उस ‘सच्चा सौदा डेरा’ के सच को निहार लेना भी उतना ही जरूरी है जिसके सौन्दर्य का सारा छद्म छत्रपति को मालूम हो चुका था। तीसरे दिन की कोशिश पर जगदीश सिंह सिद्धू, पवन बंसल, रामाश्राय गर्ग नामक तीन चेहरे गेस्ट हाउस पधरे हैं। ये जन सच्चा सौदा डेरा प्रेस कमिटी के सदस्य हैं और नये आगंतुक की विश्वसनीयता को परखने का पूरा हक है। हमने तय किया है हमें सच की सौदेबाजी का दर्शन करना है तो आज हर तरह का झूठ बोलने के लिए तैयार रहना होगा। हमारी वाक्पटुता से वे मुग्ध् हो चुके हैं। किसी ने फोन से कहीं कोई इंडिकेशन दिया है क्या भगवान गुरमीत राम रहीम सिंह को हमारे बारे में बता दिया गया है। जगदीश सिंह सिद्धू ने मार्केट कमिटी के गेस्ट हाउस को छोड़कर डेरा के ए.सी. गेस्ट हाउस में ही टिकने का अनुरोध किया है और एक दिन नहीं अपनी मर्जी से दो, चार दिन, हफ्ते।

गर्मी काफी है, धूप में तपन है। वातानुकूलित स्टीम की ठंढई लूटते हुए दोपहर के भोजन के लिए हमें डेरा का आतिथ्य स्वीकार करना चाहिए।

डेरा का अपना व्याकरण है, अपना शब्दकोश है। डेरा के परिसर क्षेत्र में सिरसा को सरसा लिखा जाता है। क्या पूरा सिरसा जब डेरा के कब्जे में होगा तो सिरसा बदलकर सरसा हो जायेगा। ‘सच कहूं’ डेरा का दैनिक समाचार पत्र है। समाचार पत्र है, अपना ऑफसेट है। हमें बताया जा रहा है पंजाबी गुरूमुखी और हिन्दी सहित रोज देढ़ लाख सच कहूं छपते हैं। अपने हाथ में सच कहूं का एक विशेषांक है। तस्वीरें आलीशान किलानुमा इमारतों की है और इन तस्वीरों के बीच में खबर का शीर्षक है ‘गर्ल्स स्कूल या परीलोक’। थोड़ा विस्मय हुआ जरूर पर जल्दी ही सतर्क हो गया। यह सच का डेरा है, यहां झूठ कुछ भी नहीं है। यहाँ डेरा बेटियों को परी कहकर संबोधित करता है। डेरा के व्याकरण में बेटी को परी कहते हैं, तो हमें क्यों ऐतराज। हरियाणा समाज ने इन्हें इतनी छूट दी है। यह ‘सच कहूं’ डेरा के कच्चे चिट्ठे को परत-दर-परत उघाड़ने में लगे पूरा सच का जवाब ही है।

डेरा आने वाले अमीर सात संगतों के लिए ट्रन्न् वर्ल्ड की रंगीन हसीन दुनिया का आनंद लेना जरूरी है।

स्वीमिंग पुल, नाचते झूले, कशिश रेस्टोरेंट का हसीन संसार। 140 कमरों का वातानुकूलित गेस्ट हाऊस। अंदर की दुनिया आपको एक पल के लिए पफूलों के गुलदस्तों की तरह दिख सकती है। दो वर्ष पहले डेरा के पांच सातसंगतों ने मिलकर महाराज जी के अर्शीवाद से सब कुछ बनाया है। कशिश रेस्टोरेन्ट में हम खाने के लिए बिठाए गए हैं। बाहर दूसरी दुनिया दिखती है। दायें बाजू सीसे का घेरा है और घेरे से बाहर पानी भरा है। चारों तरफ पानी भरे छोटे तालाब के बीच सीसे के घर में होकर हम जो देख रहे हैं, आप भी देखिए। सीसे पर पानी का रंग हरा-हरा दीखता है। आप हमें अभी बाहर से देख रहे हें तो हम मछलियों की तरह दिख सकते हैं। सोचिए ट्रन्न् वर्ल्ड की दुनिया का प्रवेश ही इंसान को मछली बना देता है और अपन इक्वेरियम में कैद हो जाते हैं। बाहर वाटर स्लेटिंग, स्केचिंग करती लड़कियां दिखती हैं। जिनके देह के कुछ खास हिस्से कपड़ों के बिना हैं, वे हम महलियों को इस समय कितने अच्छे लग रहे हैं।

सच्चा सौचा डेरा का दर्शन कराने वाले कृपावंत इस दुनियां में आकर हमारी पूरी पत्रकारिता एक पल के लिए निहाल हो सकती है। इध्र 200 से ज्यादा भैंसे हैं, गायें हैं, सेवादार साधु हैं। डेरा वाले दूधो नहायो फूलो फलो। सच नर्सरी के अंदर सेवादार एक-एक पौधे को नया रूप देने मे लगे हैं। अंगूर, सेव, चीकू, लीची, लौंग, अमरूद, बादाम, शहतूत, नारियल यहाँ सब कुछ है। युवती कन्या बहनें गुलाब की पंखुडि़यों को गुलकंद बनाने के उपक्रम में लगी हैं। हमसे कहा गया युवती कन्या बहनों को साध्वी कहा जाये। डब्बे में पैक हो रहे गुलकंद और शहद का व्यापार लगातार बढ़ता जा रहा है। इस गुलकंद, शहद के व्यापार का क्या हिसाब है। साधु निर्मल कहते हैं- सब दातार की कृपा है, सब प्रभु की चरणों में। सच नर्सरी के अंदर एक दफ्रतर तरह का है। यहां डेरा प्रमुख गुरमीत सिंह राम रहीम की तावीरें सजी है। 23 वर्ष की उम्र में डेरा प्रमुख बनने वाले बाबा गुरमीत अभी युवा है और युवा बाबा तस्वीरों की दुनिया में खूब फबते हैं। मुस्काते बाबा, ट्रैक्टर चलाते बाबा, फावड़ा चलाते बाबा। अलग-अलग पोज के लिए अलग-अलग रंग बिरंगी पोशाकों में हंसते खिलखिलाते महाराज तस्वीरों की दुनिया में आज भी खूब जमते हैं। पानी, पहाड़, जंगल, उगते सूरज और डूबते सूरज को निहारते महाराज...।

पत्रकारिता के आईकॉन शहीद पत्रकार रामचंद्र छत्रपति
पत्रकारिता के आईकॉन शहीद पत्रकार रामचंद्र छत्रपति का फाइल फोटो

प्रेस कमिटी का दफ्रतर सुव्यवस्थित है। फोन, फैक्स, इंटरनेट, एस.टी.डी., आई.एस.डी. आगंतुकों के आतिथ्य के सब उपलब्ध् है। पत्रकारों की महापंचायत से पत्रकार बिरादरी से निकाल बाहर हुए पत्रकार डेरा के पत्रकार हुए और हरियाणा के कुछ अखबारों ने डेरा की खबरों के लिए अपने डेरा खास संवाददाता भी नियुक्त किए। अश्रीत समाचार ;हिन्दीद्ध के संवाददाता विजय प्रेस कमिटी के प्रभारी हैं। सच्चा सौदा डेरा पर निर्मित फिल्म ‘सर्व धर्म सम्भाव का केन्द्र डेरा सच्चा सौदा’। दावा किया जा रहा है बाबा के चरणों में नामदान लेने वाले लाखों लोग रोगमुक्त हो चुके हैं। डेरा सिनेमा में हजारों एकड़ की खेतीबाड़ी, पेट्रोल पंप, मोर्केटिंग कंप्लेक्स, कई छोटे बड़े उद्योग, स्कूल, कॉलेज, मैनेजमेंट संस्थानों का समृद्ध संपन्न संसार दिखाया जा रहा है। सिनेमा कहता है। डेरा की सारी आय देश भर के दीन-दुखियों के राहत में खर्च होता है। इस सिनेमा को आप भी देखिये और सोचिए अगर अपने मुल्क में दीन-दुखियों का दुख दूर करने का इतना बड़ा उपक्रम शुरू है तो आप भी इस पुण्य में क्यों नहीं हिस्सेदार बनें। दीन दुखियों का दुख जल्दी ही दूर होनेवाला है। संत हुजूर गुरमीत राम रहीम जी महाराज की जय कहिये।

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सच्चा सौदा डेरा के लाखों भक्त जिन्हें इंसान से ऊपर भगवान मान रहे हैं। उन भगवान के खिलाफ साध्वी के यौन शोषण का आरोप कितना जायज है। एक गुमनाम साध्वी के पत्र का रामचंद्र छत्रपति की शहादत से क्या रिश्ता है। वह गुमनाम साध्वी कब तक गुमनाम रहेगी। जब अज्ञात साध्वी के पत्र से गुरमीत राम रहीम के किस्से बाहर आये तो हरियाणा में बड़ा बवाल मचा। डेरा और समाज आमने-सामने हुए। डेरा भक्त, डेरा विरोध्यिों का टकराव सड़क से हाइकोर्ट तक पहुंचा। चंडीगढ़ हाइकोर्ट ने गुमनाम साध्वी के पत्र को अति गंभीर मानते हुए 24 सितंबर 02 को डेरा प्रमुख के यौनाचार के आरोप की जांच के लिए सी.बी.आई. को छः माह का समय दिया। डेरा सच्चा सौदा की ओर से कहा गया जांच का विषय है क्या वह पत्र किसी स्त्री ने लिखी है या किसी पुरुष ने ? डेरा सच्चा सौदा की ओर से उच्च न्यायालय में जिन 8 साध्वियों ने याचिका दायर कर सी.बी.आई. जांच का पुरजोर विरोध किया था। उन 8 साध्वीयों में एक शीला पूणिया से मिलना हमारे लिए अद्भुत मुलाकात है।

शीला पुणिया ने सी.बी.आई. की विश्वसनीयता पर संदेह करते हुए हरियाणा पुलिस की सी.आई.डी. से जांच कराने का आग्रह किया था। यह अलग की बात है कि अदालत ने इस बेवकूफी भरी याचिका को खारिज कर दिया था। शीला पूणिया उस गर्ल्स स्कूल की प्राचार्या हैं जिसे डेरा के मुख पत्र ‘सच कहुं’ ने परी लोक की संज्ञा दी है।

पूणिया बताती हैं, अम्बाला में एम.ए., बी.एड., कंप्यूटर कोर्स कर डेरा भक्त पूर्व न्यायाधीश पिता के संपर्क से विद्यालय की टीचर बनी और अब प्राचार्या हैं। हमने सवाल किया, आप डेरा की वेतनभोगी प्राचार्या हैं, नहीं मैं साध्वी हूं।

प्र. - एकाकी जीवन में कोई युवती कैसे ज्वाय फिल कर सकती है ?

शीला पूणिया - मेरे गुरूजी पूरण संत है, इसलिए मैं संतुष्ट हूं।

प्र. - क्या स्कूली लड़कियों को भी साध्वी बनने के लिए प्रेरित करती हैं ?

शीला - सबको अपनी मंजिल बता दी जाती है। अपनी राह चुनना सबकी मनमर्जी पर है। यहां 2000 लड़कियां हैं, किसी पर दवाब नहीं है। कनाडा में रह रहे पिता भी अपनी बेटियों को यहां भेजकर सुरक्षित महसूस करते हैं। कुछ मावी लड़कीयां हैं जो रोज मजलिस में जाती हैं।

प्र. - वैवाहिक जीवन के बिना आपकी संतुष्टि का रहस्य क्या है ?

शीला - देखिए इस समय मजलिस का टाइम हो रहा है। बाबा जी सारे सवालों का जवाब दे देंगे। बाहर दो बस खड़ी है। सेवादार जज साहब आपने पढ़ी लिखी इल्म वाली बेटी को बाबा के चरणों मे सौंप दिया। अब आपकी बेटी मैडम पुणिया बसों में चुनिंदा लड़कियों को साथ कर साध्वी की अगली पीढ़ी तैयार कर रही है। हमने पूछा मेधावी लड़कियों का सेलेक्शन (चयन) अच्छा है। सब खूबसूरत हैं।

मैडम ने कहा जो खूबसूरत होती हैं वही मेधावी होती हैं।

परीलोक की चुनिंदा परियां साध्वी होने का प्रशिक्षण लेने मजलिस में शामिल हैं। मैडम ने चलते हुए नहीं भूलने वाली हंसी के साथ कहा आप भी मजलिस में जरूर चलिये। आपको भी पता चल जायेगा कि बाबा जी सचमुच पूरण संत हैं।

बाबा के आगे बेबस सरकार ! ये रिश्ता क्या कहलाता है ?

मजलिस लगी है, दस हजार से बड़ी सात संगतों की भीड़ इंतजार कर रही है। बाबा जी साढ़े पांच में आयेंगे। मैडम शीला पूणिया एम.ए., एम. फिल साध्वियों के साथ बाबाजी के राज सिंहासन की तरफ टकटकी लगायी बैठी हैं। मैडम के देह पर कपड़ा भी है पर कपड़ा इतना ही रंगीन है कि दूर से देखने पर चमकते चेहरे की तरह देह भी चमकने लगता है। कई हैं, जिनके देह रूप सौन्दर्य सौष्ठव मैडम पूणिया से मेल खाते हैं। गीतों की महफिल खत्म हुई तो कहा गया बाबाजी आ रहे है। महिलाओं की भीड़ एक तरफ, पुरूष दूसरी तरफ। टीन चदरे की स्थायी छत। 10 हजार की इस भीड़ में हम अकेले नये सातसंगत हैं। यह हर रोज सुबह-शाम की मजलिम का एक हिस्सा है। लोगों के पास इतना समय है कि सुबह शाम महाराज जी का प्रवचन सांस की तरह ग्रहण करते हैं। जो आया है, वह भूखा नहीं जायेगा। सबके लिए लंगर है। जी प्रसाद लेकर जाना है जी। सेवादार जिसे यहां लगना है, सेवा में लगो जी।

महिलाएं पंखा झुला रही हैं। पांच हाथ लंबा कपड़े का भारी पंखा हिलाते आप जल्दी ही थक सकते हैं। महाराज जी सिंहासन पर विराजे तो सबने हाथ जोड़कर आंख मूंदकर माथे को ध्रती पर नमाया। सिंहासन पर विराजे हुजूर महाराज करबद्ध हाथ सामने हिलाते हैं, सब ध्न्य हो रहे हैं, मैं भी ध्न्य हो गया। पसीने से तर-व-तर सेवादार भारी पंखा झुलाते थकता है तो दूसरा खड़ा हो जाता है। महाराज जी खुद मयूर के पंख से अपनी लंबी लहलहाती दाढि़यों को हवा पिला रहे हैं। सर पर लाल-हरा कसीदेदार चमकती टोपी है। टेबुल पर पफूलों का संुदर गुलदस्ता, सिंहासन के पीछे परदे पर चकमते चकमक सितारे और सितारों की तरह चमकती हुजूर की आंखें। अभी जो हो रहा है पूरा शहर देख रहा है। हुजूर सिरसा को जिलाते हैं, सिरसा की सांस हुजूर से चलती है। साध्वी शीला पूणिया के पूरण आनंद को बांकी लोग प्रभु अवतार भगवान मानते हैं।

कर्नल पुरोहित : राजनीति जिसके पक्ष में खड़ी हो जाए लोकतंत्र की सारी संस्थाएं उसके साथ खड़ी हो जाती हैं

मैं जीवन में पहली बार किसी सक्षात् भगवान को अपनी आंखों से देख रहा हूं। आप सब भी जानिए भगवान परलोक में नहीं सिरसा में रहते हैं। अभी जो सेवादार भगवान को पंखा झेल रहा है एक अवकाश प्राप्त न्यायाधीश है ऐसा बंसल जी बता रहे हैं