देशद्रोही ताकतों के हौसले बुलंद हो गए हैं ?
मंदिरों में आर्य समाजी यज्ञ के साथ-साथ आजकल क्‍या हो रहा है ?
नई दिल्ली। क्या अब मंदिरों में भागवत के नाम पर हिंदुत्ववादी ताकतें देशद्रोही गतिविधियां आयजित कर रही हैं और इस देश की सामाजिक समरसता को भंग कर सांप्रदायिक विषाक्त माहौल तैयार करने का प्रयास कर रही हैं ? यह चिंता एक बार फिर सामने आई है। अभी एक दिन पहले ही देश के कई सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और इतिहासकारों ने इस बात पर चिंता जताई थी कि आरएसएस और प्रधानमंत्री के इशारों पर ही महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे का महिमामंडन किया जा रहा है। इस चिंता के बाद सरोकारी युवा पत्रकार अभिषेक श्रीवास्तव ने एक भागवत कथा का विवरण अपनी फेसबुक वॉल पर पोस्ट किया है, वह विवरण काफी चौंकाने वाला है। नई सरकार आने के बाद देशद्रोही ताकतों के हौसले बुलंद हो गए हैं ? जाहिर है बिना सत्ता के संरक्षण के ऐसी गतिविधियां खुलेआम संचालित नहीं हो सकती हैं। देखते हैं, क्या लिखा है अभिषेक श्रीवास्तव ने -
“दो दिनों से घर में लाउडस्‍पीकर की तेज़ आवाज़ आ रही थी। आवाज़ का पैटर्न एक ही था- एक पुरुष हिंदी में एक लाइन बोलता, फिर कुछ लड़कियां समवेत् स्‍वर में संस्‍कृत का श्‍लोक पढ़तीं, फिर पुरुष का वनलाइनर और फिर एक श्‍लोक...। कल सवेरे चाय पीने चौराहे पर गया था तो सब्‍ज़ी वाले से जिज्ञासा में मैंने पूछा, तब उसने बताया था कि पड़ोस के चामुण्‍डा मंदिर में "भागवत" हो रहा है। मुझे लगा कि "भागवत" में पाठ ऐसे तो होता नहीं। हिंदी में वनलाइनर और श्‍लोक की आवर्तिता से यह मामला वैदिक टाइप लगता था। आस पड़ोस के लोग भी "भागवत" की ही बात कह रहे थे।

आज सुबह रहा नहीं गया, तो मैं चामुण्‍डा मंदिर पहुंचा। बाहर बैनर लगा था "सामवेद पारायण महायज्ञ"। सामने के सैलून वाले से ज्ञान मिला कि किन्‍हीं त्‍यागीजी की उम्र 50 बरस हुई है, उसके उपलक्ष्‍य में यज्ञ हो रहा है। बैनर पर पंडीजी के साथ त्‍यागीजी की भी तस्‍वीर थी, लेकिन आयोजक की जगह आर्य समाज लिखा था। मैं भीतर गया। यज्ञ चालू था। परिसर में पुस्‍तक मेला जैसा कुछ माहौल था। किताबें बिक रही थीं- "गोडसे की आवाज़ सुनो", "गांधी हत्‍या: क्‍यों और कैसे", "पंडित जवाहरलाल नेहरू का असली चेहरा", "क्‍या हिंदू मिट जाएंगे", "भारतीय मुसलमानों के हिंदू पूर्वज मुसलमान कैसे बने", "जिहाद के नाम पर दुनिया को मुसलमान कैसे बनाया गया", "कुरान में युद्ध की अवधारणा", "ईसा मसीह मुक्तिदाता नहीं था", "हनुमानजी बंदर नहीं थे", "इस्‍लाम में नारी की दुर्गति", आदि।

मैं बस यहां किताबों की तस्‍वीरें दे रहा हूं। आप भी देखिए कि मंदिरों में आर्य समाजी यज्ञ के साथ-साथ आजकल क्‍या हो रहा है। इस आयोजन का ब्रॉशर देखकर कुछ लोग चिंतित हो जाएंगे, इसलिए यहां नहीं लगा रहा हूं। उसमें 2015 में किए जाने वाले ऐसे आयोजनों की पहले से तय सूची है। मंदिर से लौटने के बाद मुझसे भी एकाध लोगों ने सड़क पर और घर में पूछा कि वहां क्‍या हो रहा था। मैंने भी वही जवाब दिया जो मुझे मिला था- "भागवत"। जैसे "मोदी" अपने आप में पूर्ण है बगैर "नरेंद्र" के, वैसे ही मुझे लगता है कि "भागवत" पर्याप्‍त होना चाहिए, "मोहन" का नाम क्‍यों खराब करें बेमतलब!”