भाजपा का फूल हमारी भूल, उद्योग नहीं धंधा है, वित्त मंत्री अंधा है
भाजपा का फूल हमारी भूल, उद्योग नहीं धंधा है, वित्त मंत्री अंधा है
देश के कोने-कोने में भाजपा और मोदी के प्रति कैसे गहरा आक्रोश पैदा हो रहा है, इसकी ये दो तस्वीरें हैं। एक में तो बाक़ायदा इनवायस पर छाप दिया गया है – “भाजपा का फूल हमारी भूल।“ दूसरी तस्वीर में मोदी की तस्वीर के साथ बड़ा सा फ़ेस्टून लगा है जिसमें कहा गया है - मोदी भगाओ व्यापार बचाओ। उद्योग नहीं धंधा है, वित्त मंत्री अंधा है।
अनाज और कपड़े पर जीएसटी का चौतरफ़ा इतना बुरा असर हो रहा है कि लोग सरकार के इस निर्णय की अवमानना करने का मन बनाने लगे हैं। कारोबार नगदी में कर रहे हैं।
वित्तमंत्री जेटली नोटबंदी और जीएसटी की तरह के बाणों से मूर्च्छित और अशक्त पड़ी भारत की अर्थ-व्यवस्था के लिये शक्तिशाली शिलाजीत की तलाश में अभी जंगलों में भटक रहे हैं। वे इसमें जान फूँकने के लिये कोई पैकेज लाने की बात कह रहे थे, लेकिन वह मिल नहीं रहा है।
इधर प्रधानमंत्री मोदी अपनी नवगठित सलाहकार परिषद के साथ मूर्च्छित पड़ी अर्थ-व्यवस्था को घेर कर टेसूए बहा रहे हैं, डरे हुए हैं कि पता नहीं कब यह दम ही तोड़ दे ! जेटली संजीवनी बूटी खोज रहे हैं, मिल नहीं रही है, और उनके लिये सबसे बड़ी समस्या यह है कि वे ख़ुद ही बेहद निर्बल हैं। इसीलिये इनमें हनुमान जितनी ताकत भी नहीं है कि संजीवनी न मिले तो पूरे द्रोणगिरी पर्वत को ही उठा कर ले आए।
फिर एक सवाल यह भी है कि उतने बड़े पर्वत को दिल्ली में रखेंगे कहाँ ! वहाँ तो सारी जगह को अकेले मोदी ने ही घेर रखा है !
कुल मिला कर मोदी के बाणों से ही मूर्च्छित अर्थ-व्यवस्था की चेतना के लौटने के कोई आसार नहीं दिखाई देते हैं। जेटली भी जंगल में ही भटकते हुए दम तोड़ने वाले हैं।
बाक़ी भाजपा और पूरा संघ तो सत्ता की भांग के नशे में धुत्त पड़ा है। वे सब मोदी को अकेले को सोचने का जिम्मा दे कर अपने-अपने रनिवासों और हरमों में मगन हैं।
इनके बीच से अपनी नीम बेहोशी से जाग कर कल के 'इंडियन एक्सप्रेस' में उनके एक नेता यशवंत सिन्हा ने कुछ खरी-खरी बातें कही है। ये वही बातें हैं जिन्हें सभी चेतन अर्थशास्त्री और विपक्ष के लोग लगातार कहते रहे हैं। इसके बाद भी यशवंत सिन्हा ने जब यह कहा है को उससे पता चलता है कि सत्ता के मद-मस्त गलियारों में भी अब कुछ हलचल मचनी शुरू हो गई है। 'चार दिन की चाँदनी और फिर अंधेरी रात' का डर इन्हें सताने लगा है। ये मोदी से संभलने की गुहार लगा रहे हैं, लेकिन अफसोस कि अब इनके कुछ करने के लिये समय निकल चुका है। संजीवनी की तलाश में लगा हुआ हनुमान, वास्तव में सीकियां पहलवान, वित्त मंत्री जेटली अब किसी संजीवनी के साथ वापस आने वाला नहीं है !
(फेसबुक टिप्पणियों के संपादित अंश )


