भाजपा की जीत पर ईवीएम में घपले का हल्ला करना और 'आप' की जीत को जनादेश बताना क्या दोहरी राजनीति नहीं?
भाजपा की जीत पर ईवीएम में घपले का हल्ला करना और 'आप' की जीत को जनादेश बताना क्या दोहरी राजनीति नहीं?
दिल्ली में चुनावी गुबार अब बैठ रहा है। धीरे-धीरे आम जनजीवन पटरी पर आ रहा है और 14 फरवरी को सरकार के शपथ ग्रहण के बाद स्थितियां पहले की तरह सामान्य हो जाएंगी। इसलिए ऑन ए सीरियस नोट, कुछ सवाल हैं जिन पर बात करने का मन है। मसलन, अगर बीजेपी को 67 सीटें आतीं और 'आप' को तीन, तब भी क्या हम 'जनता के असंतोष, मोहभंग, जनादेश' आदि जुमलों में बात करते? कतई नहीं। तब हम चिल्ला-चिल्ला कर गरदा मचा देते कि ईवीएम में घपला हुआ है। खुद केजरीवाल भी ऐसा ही करते। भाजपा की जीत पर ईवीएम में घपले का हल्ला करना और 'आप' की जीत को जनादेश बताना क्या दोहरी राजनीति नहीं है? बेईमानी नहीं है?
मामला ये है कि धीरे-धीरे एक ट्रेंड बन रहा है कि सदन में विपक्ष ना रहे। लोकसभा के बाद अब दिल्ली है जहां विपक्ष गायब है। इसे आप संसदीय लोकतंत्र के भीतर तानाशाही का विकेंद्रीकरण कह सकते हैं। ये एजेंडा बेशक भाजपा का है। इसे लागू करने के लिए वह खुद जितवा सकती है तो दूसरों को भी जितवा सकती है।
(संदेह का क्षण-1)
अभिषेक श्रीवास्तव


