हिमांशु कुमार

कश्मीरी पंडितों की तकलीफ को समझना और उस पर काम करना बहुत ज़रूरी है।

कश्मीरी पंडितों ने जिन हालात में अपना घर दूकान गाँव छोड़ा वह बेहद तकलीफदेह है।

मैंने जम्मू में एक सिख सज्जन से जब इस बारे में बात करी तो उन्होंने मुझे बताया था कि जगमोहन जब जम्मू कश्मीर का राज्यपाल था और यहाँ राज्यपाल शासन था तब उसने पंडितों से कहा था कि आप सब लोग एक बार कश्मीर घाटी से बाहर आ जाइए फिर मैं इन मुसलमानों को देख लूँगा।

उसके बाद से कश्मीरी पंडित कभी वापिस नहीं जा पाए।

मुझे बताया गया कि कश्मीरी पंडितों की लड़कियों की शादियों में मिलिटेंट बंदूक लेकर पहरा देते थे ताकि पुलिस इन लोगों को परेशान ना करे।

खैर अब यह सब इतिहास की बातें हैं इन सब बातों को पकड कर बैठने से अब क्या होगा ?

आज हालत यह है कि केंद्र में और जम्मू कश्मीर में जो सरकारें हैं वे एक दूसरे की साझीदार हैं।

अगर अब भी कश्मीरी पंडितों का पुनर्वास नहीं हुआ तो आगे पता नहीं इतनी अनुकूल राजनैतिक स्थितियां दोबारा कब बन पाएंगी ?

इसलिए मोदी सरकार को पैसा और राजनैतिक समर्थन देकर कश्मीरी पंडितों को दुबारा अपनी जगह बसाने का अभियान चलाना चाहिए।

ऐसा नहीं है कि कश्मीर के सभी पंडित वहाँ से बाहर आ गये हैं।

आज भी पंडितों की बड़ी आबादी कश्मीर में रह रही है।

इसलिए इन विस्थापित पंडितों का वापिस अपनी जगह जाकर रहने से किसी को भी अजीब नहीं लगेगा।



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कश्मीर में पंडित अल्पसंख्यक हैं और सरकार का फर्ज़ है जो भी समुदाय कहीं पर भी अल्पसंख्यक होने के कारण कमज़ोर हालत में है उस समुदाय के लोगों को सरकारी समर्थन देकर उन्हें भयमुक्त माहौल प्रदान करे।

अब कश्मीरी पंडितों वाला मुद्दा सुलझ ही जाना चाहिए।

वरना देश यही मानेगा कि भाजपा की यह साम्प्रदायिक सरकार कश्मीरी पंडितों का मुद्दा सुलझाना ही नहीं चाहती ताकि हमेशा पंडितों का नाम लेकर देश भर के हिन्दुओं को मुसलमानों के खिलाफ भड़का कर वोट बटोर सके।