सुन्दर लोहिया

उत्तराखड की मानवीय त्रासदी के अवसर पर देश की मुख्यधारा की दो राजनीतिक पार्टियों की घटिया राजनीति सामने आ गई। एक टीवी चैनल पर मुख्यमन्त्री बहुगुणा और भाजपा के एक विधायक की तू- तू मैं- मैं पर्दे पर देख कर सिर शर्म से झुक गया और कि शोकसंतप्त अवसर पर भी भाजपा अपने भड़काऊ व्यवहार में वे भूल गये कि टीवी के पर्दे पर पूरा देश देख रहा है। मुख्यमन्त्री को ऐसे मौकों पर अपने पद गरिमा के अनुकूल जिस संयम और आत्मविश्वास से काम लेना चाहिये था वे उसमें भूल कर रहे थे। इसमें जहां भाजपा विधायक की ओछी राजनीति जाहिर हो गई वहीं मुख्यमन्त्री में व्यवहारकुशलता की कमी प्रकट हो रही थी। इस पर मीडिया ने भी कोई खास बहस नहीं करवाई। लेकिन नरेन्द्र मोदी ने वहां पहुंच कर संकट पर सियायत का जो सिलसिला शुरु किया वह अभी तक थमने का नाम नहीं ले रहा।

वह जहाज़ से उतरे ही थे कि गुजरात के पन्द्रह हज़ार तीर्थयात्री बचा लिए गये। बचाये सेना ने फोटो मोदी का। फिर बयान आया कि वे अपने गुजरात से आपदा प्रबन्धन के माहिर बेहतर अफसर भेजने को तैयार हैं। यहां भी लोग धोखा खा जायेंगे कि नरेन्द्र जी कितने चिन्तित हैं देश की जनता को बचाने के लिए। इस अर्द्धसत्य का झूठ छिपा नहीं रहता जब वे गुजरात के अफसरों को बेहतर बताते हैं जिसका मतलब हुआ कि उत्तराखण्ड के जो अफसर वहां काम कर रहे हैं या सेना जिस मुस्तैदी से डटी हुई है उसके अफसर उनसे बेहतर हैं। इसके अलावा उन्होंने हैलीकाप्टर की खेप भेजने की पेशकश भी की लेकिन जिन चीजों की आपदाग्रस्त जनता को ज़रुरत होती है जैसे दवाइयां भोजन सामग्री कपड़े वगैरह उसका नाम नहीं लिया। और अंत में इन्हें केदारनाथ मन्दिर के आाधुनिक ढंग से निर्माण के लिए अपने राज्य की सेवाएं प्रस्तुत करते हुए जनता के मन में अपने धर्मध्वजाधारी होने का प्रचार किया उससे इनकी पोल जल्दी ही खुल गई जब मीडिया में उनके इस मानवविरोधी बयान की सार्वजनिक तौर पर निन्दा का सिलसिला चला। समय जब हज़ारों लोग आपदा से घिरे हुए हैं जिन्हें वहां से निकाल कर सुरक्षित स्थान तक पहुंचाने में भारतीय सेना के जवान दिन रात बिना थके मेहनत कर रहे हैं पांच जवान शहीद हो गये लेकिन भावी प्रधानमन्त्री के पद का दावा करने वाला नेता भगवान के मदिर बनाने का ठेका मांग रहा है ? गुजरात के कारीगिरों को देश में सबसे बढि़या बता कर उत्तराखण्ड की आपदा में भी गुजरात के श्रेष्ठतव को स्थापित करने वाले मोदी देश के प्रधानमन्त्री होने के काबिल नहीं है क्योंकि वे रूपे देश को गुजरात जैसा बना देंगे ऐसा उनका संकल्प लगता है। मंदिर बनाने से पहले वहां तक श्रद्धालुओं के पहुंचने के लिए सड़कें और पुल बनाने ज़रूरी हैं

जिन लोगों के घर बार बह गये हैं उनके पुननिर्माण की चिन्ता मन्दिर से पहले होनी चाहिये। लोग बचेंगे तो भगवान बचेंगे बिना जनता के भगवान का अस्तित्व कैसे बच सकता है?

इससे पहले कि जनता महंगाई और बेरोज़गारी की मार से दुःखी होकर वोट देने जाये उसे सभी राजनीतिक दलों की कथनी और करनी का लेखा-जोखा परख लेना चाहिए। हम गुस्से में विवेक खो कर मतदान करेंगे तो इस लोकतन्त्र में प्रतिरोध की जितनी कर गुंजाइश बची है उससे भी वंचित हो जायेंगे जब हम किसी तानाशाह को सिर्फ उसके कथनी पर विश्वास करते हुए सत्ता सौंप देंगे। मोदी के अर्द्धसत्य केदारनाथ की त्रासदी तक ही सीमित नहीं है। ये तो उनके धर्म सम्बन्धी अर्द्धसत्य हैं जब कि राजनीति के जुमले तो और भी चौंकाने वाले हैं। इस मामले में उनका तरीका है कि पहले श्रोता समूह लक्षित करते हैं फिर उस समूह की मनभावनी बातें तलाश करके परोसते हैं ताकि श्रोता गदगद हो जायें। महिलाओं में जेस्सूबेन का किस्सा सुनाया और तालियां बटोरी लेकिन यह तरीका हाल ही में बुलाई गई मुस्लिम समुदाय के श्रोताओं की सभा में पासा पलट गया और उन्हें एक प्रतिभागी ने वो खरी खरी सुनाई कि सब सुनने के बाद इतना ही कह पाये कि मैं इस पर विचार करुंगा।

क्या 2002 के नरसंहार के बारे में मुख्यमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने कभी सोचा ही नहीं या इस पर विचार करना ही उचित नहीं समझा ? यह ऐसा अर्द्धसत्य था जिसे वीडियों के ज़रिये पेश किया गया था इसलिए तत्काल ना नुकर करने की गुंजाईश नहीं थी। उसे टाल दिया गया। लेकिन बात जब खुली है तो यहीं रुक थोड़े जायेगी?

अपने एक और भाषण में मोदी जी ने देश की आर्थिक समस्याओं के समाधान के लिए विकास की बात कही है। इस बात से कौन असहमत है? वास्तव में असहमति तो विकास के स्वरूप को लेकर है। आज़ादी के पैंसठ सालों में विकास तो हुआ ही है इसमें देश में नये मध्यमवर्ग का उदय हुआ जिसने पुरानी पीढ़ी के सामाजिक सरोकारों को विदा करके वैश्वीकरण केनये जीवन मूल्य स्वीकार कर लिए हैं। लेकिन इस विकास में आज भी एक चैथाई जनता निरक्षर है जो अपने अस्तित्व की खुद हिफाज़त करने में असमर्थ है। तीन लाख के करीब किसान विकास की दौड़ में हांफ कर आत्महत्या कर चुके हैं। करोड़ों आदिवासी अपने ज्रगल जल और ज़मीन बचाने के लिए हिंसा पर उतर आये हैं? इस सब को मिला कर जो विकास हुआ है क्या नरेन्द्र मोदी उससे अलग किस्म का विकास करने की बात करते तो कुछ समझ में भी आता लेकिन जो विकल्प वे अपने गृहराज्य में अपना रहे हैं उसमें भी वे सभी नीतियां हैं जो कांग्रेस सरकार की भी नीतियां हैं। अम्बानी टाटा और अडानी जैसी कम्पनियों को हज़ारों एकड़ ज़मीन कारखानों के लिए देकर आप कौन सा विकल्प पेश कर रहे हैं? विकास के मोदीमन्त्र का छिपा हुआ झूठ यह है कि विकास के नाम पर वैश्विक पूंजी को देश की बची हुई प्राकृतिक सम्पदा की लूट के अवसर कर दुनिया में गुजरात को बाईब्रेंट गुजरात के तौर पर पेश करना।