प्रकाश कारात
भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की 19-20 मार्च को नई-दिल्ली में हुई बैठक ने देश की धर्मनिरपेक्ष-जनतांत्रिक ताकतों के साथ टकराव और तेज करने का रास्ता अपनाया है। भाजपा अध्यक्ष, अमित शाह के भाषण और भाजपा कार्यकारिणी द्वारा स्वीकार किए गए राजनीतिक प्रस्ताव का यही संदेश है।
भाजपा हमलावर राष्ट्रवाद के अपने ही प्रारूप से आगे बढ़ाने जा रही है, जो वास्तव में हिंदू राष्ट्रवाद है। राजनीतिक प्रस्ताव में कहा गया है कि ‘‘भारत माता की जय’’ कहने से इंकार करना, संविधान का ही निरादर करना है। हाथ की सफाई दिखाते हुए, संविधान रखे गए ‘भारत’ शब्द को, ‘भारत माता’ के साथ जोड़ दिया गया है। भाजपा ने एलान कर दिया है कि यह सिर्फ एक नारा नहीं है बल्कि, ‘‘संविधान की सर्वोच्चता को कायम रखने की, नागरिकों के तौर पर हमारी जिम्मेदारी की पुनर्पुष्टि है।’’ इस तरह, भाजपा के हिसाब से ‘‘भारत माता की जय’’ बोलना, हरेक देशवासी का संवैधानिक कर्तव्य बन जाता है।
आरएसएस के नेतृत्ववाली हिंदुत्ववादी पलटन, जिसने देश की आजादी की लड़ाई में कोई भूमिका ही नहीं निभाई थी, अगर राष्ट्रवाद पर कोई दावा कर सकती है, तो उसके हिंदू सांप्रदायिक प्रारूप पर ही दावा कर सकती है। सचाई यह है कि हमारे देश की आजादी की लड़ाई के दौरान साम्राज्यवादविरोधी राष्ट्रवादी कई नारे लगाते थे, जिनमें जय हिंद और इंकलाब जिंदाबाद जैसे नारे भी शामिल हैं। न तो आरएसएस-भाजपा की ‘‘भारत माता की जय’’ बोलने को अनिवार्य बनाने की चीख-पुकार इस देश में विकसित हुए राष्ट्रवाद की वास्तविक प्रकृति को प्रतिबिंबित करती है और न असदुद्दीन ओवैसी का इसका जवाब राष्ट्रवाद को प्रतिबिंबित करता है।
अपने भाषण में अमित शाह ने एलान किया कि भाजपा ‘‘राष्ट्रविरोधी’’ तत्वों से लोहा लेगी और उन्होंने आरएसएस की इस मांग को ही प्रतिध्वनित किया कि विश्वविद्यालयों में ‘‘राष्ट्रविरोधी’’ गतिविधियों से सख्ती से निपटा जाए।
इस तरह भाजपा ने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत द्वारा इससे पहले इसी महीने में उठायी गयी इस मांग को और आगे बढ़ा दिया है कि, ‘‘हम वक्त आ गया है कि हमें नयी पीढ़ी को भारत माता की जय बोलना सिखाना होगा।’’ भाजपा ने तथाकथित राष्ट्रविरोध के खिलाफ अपने अभियान को आगे बढ़ाने का फैसला लिया है। उसे उम्मीद है कि इस तरह, राष्ट्रवाद को हिंदू राष्ट्रवाद में तब्दील करने के जरिए, वह देश का धु्रवीकरण कर लेगी। भाजपा का प्रतिगामी राष्ट्रवाद, वास्तव में उसी चीज का उदाहरण है, जिसके खतरे के संबंध में जवाहरलाल नेहरू ने आगाह किया था। उन्होंने बताया था कि हमारे देश में बहुमत की सांप्रदायिकता आसानी से राष्ट्रवाद के आवरण में सामने आ सकती है।
भाजपा कार्यकारिणी के राजनीतिक प्रस्ताव में, राष्ट्रविरोधी तत्वों का समर्थन करने के लिए वामपंथ पर खासतौर पर हमला किया गया है। इसके पीछे असली मंशा यही है कि मोदी सरकार की ‘‘राष्ट्रविरोधी’’ आर्थिक नीतियों के खिलाफ बढ़ते विरोध की काट की जाए। हाल ही में आये बजट में अप्रत्यक्ष करों में बढ़ोतरी करने और महसूल लगाने के जरिए, जनता पर और भारी बोझ डाले गए हैं। इसके साथ ही इस बजट में शिक्षा, स्वास्थ्य तथा अन्य सामाजिक सेवाओं के क्षेत्र में सार्वजनिक खर्चों मेंं कटौतियां करने के पिछले दो बजटों से जारी रुझान को ही जारी रखा गया है।
भाजपा द्वारा अपनायी गयी ‘‘राष्ट्रविरोधी’’ लफ्फाजी का मकसद यही है कि मोदी सरकार की, घरेलू व विदेशी, दोनों तरह की नीतियों के जनविरोधी तथा राष्ट्रविरोधी पहलुओं की ओर से ध्यान हटाया जाए। इसके साथ ही उग्रतर हिंदू राष्ट्रवादी मुद्रा को और गति प्रदान की जा रही है ताकि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण पैदा किया जा सके और उसे गहरा बनाया जा सके। यह पांच राज्यों के लिए आने वाले चुनावों को निगाहों में रखकर किया जा रहा है और सबसे बढक़र उत्तर प्रदेश के अगले साल के शुरू मेंं होने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए किया जा रहा है, जो भाजपा के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हैं।
भारत माता की जय के बाद अगला नारा गाय को ‘राष्ट्रमाता’ बनाने का होने जा रहा है। गोकशीविरोधी आंदोलन के जरिए पहले ही मुसलमानों को निशाने पर ले लिया गया है। इस नारे को किस तरह सांप्रदायिक जहर में तब्दील किया जा सकता है, इसकी हौलनाक याददिहानी झारखंड में लातेहर की ताजातरीन घटना करती है। दो मुसलमानों को, जिनमें एक तो 12 साल का बच्चा ही था, उस समय पीट-पीटकर मार डाला गया, जब वे बैलों का एक रेवड़ लेकर, एक पशु मेले के लिए जा रहे थे। दादरी की घटना और हिमाचल प्रदेश व जम्मू की घटनाओं के बाद, झारखंड का हत्याकांड दिखाता है कि किस तरह देश भर में सांप्रदायिक कट्टïरता बढ़ रही है।
भाजपा की सरकार ने एक तरह का श्रम विभाजन कर लिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी सरकार के मुख्य मुद्दे के तौर पर विकास, विकास और सिर्फ विकास की बात करेंगे, जैसा उन्होंने भाजपा की राष्टï्रीय कार्यकारिणी के अपने भाषण में भी किया। दूसरी ओर, अमित शाह तथा सरकार के अन्य मंत्रिगण हिंदुत्ववादी एजेंडा को आगे बढ़ाते रहेंगे और कथित ‘‘राष्ट्रविरोधी’’ तत्वों के खिलाफ लगभग खुल्लमखुल्ला सांप्रदायिक अभियान जारी रखेेंगे। इस तरह के कार्यविभाजन में तालमेल आरएसएस द्वारा संभाले जाने सच तब साफ हो गया, जब भाजपा की राष्टï्रीय कार्यकारिणी की बैठक से मुश्किल से हफ्ते भर पहले राजस्थान में नागौर में आरएसएस की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की सालाना बैठक हुई। आरएसएस की इस बैठक में, भाजपा समेत उसके सभी बाजुओं तथा मोर्चा संगठनों ने हिस्सा लिया। अमित शाह इस बैठक में शामिल हुए और उन्होंने पिछले एक साल में भाजपा की गतिविधियों की विस्तृत रिपोर्ट भी पेश की। उन्होंने आरएसएस को भरोसा दिलाया कि केंद्र सरकार या भाजपा के किसी भी निर्णय में, संघ परिवार की मूल विचारधारा पर कोई समझौता करने का सवाल ही नहीं उठता है। उन्होंने इसका भरोसा दिलाया कि सरकार के सभी कदम, उस विचारधारा तथा उन सिद्घांतों से ही संचालित होंगे, जिनके लिए (आरएसएस द्वारा) भाजपा की स्थापना की गयी थी।
हिंदू राष्ट्रवाद के हथियार का सहारा लेकर, आरएसएस-भाजपा द्वारा किए जा रहे हमले का सीधे-सीधे मुकाबला करना होगा और उसकी काट करनी होगी। लेकिन, उनके इस फर्जी अति-राष्ट्रवाद ने कुछ पूंजीवादी धर्मनिरपेक्ष पार्टियों और ताकतों को बचाव की मुद्रा अपनाने के लिए मजबूर कर दिया है। यह स्तब्ध करने वाली बात है कि महाराष्ट्र विधानसभा ने, ‘‘भारत माता की जय’’ बोलने के लिए, एमआइएम के एक विधायक को निलंबित ही कर दिया। यह बहुत ही निंदनीय है कि कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस के विधायकों ने, एमआइएम विधायक का निलंबन कराने के लिए, भाजपा तथा शिव सेना के विधायकों के साथ वोट डाले थे। इसी प्रकार, मध्य प्रदेश विधानसभा में यही नारा लगाने से इंकार करने के लिए ओवैसी की निंदा करने का प्रस्ताव, कांग्रेस के एक विधायक ने रखा था। भाजपा ने इस प्रस्ताव का अनुमोदन किया और उसे सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया। इसी प्रकार, हिंदुत्वविरोधी ताकतों को राष्ट्रविरोधी करार देने के भाजपा के अभियान को उत्तर प्रदेश में न तो समाजवादी पार्टी ने चुनौती दी है और न बसपा ने। धर्मनिरपेक्ष, गैर-वामपंथी पार्टियों को यह समझना होगा कि वे इस तरह के मुद्दों से मुंह चुराकर, भाजपा का राजनीतिक रूप से मुकाबला नहीं कर सकती हैं। आने वाले दिनों में इस हिंदुत्ववादी हमले के खिलाफ और धर्मनिरपेक्ष, जनतांत्रिक मूल्यों की हिफाजत करने के लिए, जबर्दस्त विचारधारात्मक लड़ाई होने जा रही है। इसके लिए तमाम वामपंथी, जनतांत्रिक तथा धर्मनिरपेक्ष ताकतों की एकता और उनकी व्यापक गोलबंदी जरूरी है।