भाजपा को बंगाल में इतनी सफलता कैसे मिली ?
भाजपा को बंगाल में इतनी सफलता कैसे मिली ?

How did BJP get so much success in Bengal?
अजीब स्थिति है वाम के सत्ताइस प्रतिशत वोट कम हुए और भाजपा के इतने ही वोट बढ़े, सन् 2016 में वाम-कांग्रेस की 72 सीट थीं, भाजपा की तीन, इसबार भाजपा को 76 सीट मिली हैं। वाम कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली। वाम-कांग्रेस की सभी सीट भाजपा के खाते में। गजब राजनीतिक ट्रांसफर है।
सवाल उठता है बंगाल में भाजपा को इतनी सीटें कैसे आईं ?और किन लोगों ने वोट दिए ? इन दो सवालों के उत्तर में छिपी है बंगाल की प्रतिगामी राजनीति की असल तस्वीर।
BJP has emerged as the main opposition in Bengal, it is very dangerous
वैचारिक पक्षधरता से हटकर बंगाल के इस बदले हुए चरित्र को समझने की जरूरत है। यह सही है टीएमसी जीत गई, वाम-कांग्रेस का सफाया हो गया, लेकिन बंगाल में भाजपा मुख्य विपक्ष बनकर उभरा है, यह बेहद खतरनाक है। इसकी जड़ें तलाशने की जरूरत है। भाजपा को इतनी सीटें मिलना स्वयं में खतरनाक है।
टीएमसी की जीत की खुशी में भाजपाजनित खतरे को कम करके न देखें। भाजपा को 77 सीटें मिली हैं और यह चिन्ता की बात है।
यह सच है टीएमसी ने हिन्दू-मुसलिम ध्रुवीकरण होने नहीं दिया। ममता को सभी वर्गों और समुदायों में वोट मिले हैं, इसके बावजूद बंगाली समाज के एक हिस्से को साम्प्रदायिकता के नशे में व्यस्त रखने में भाजपा को सफलता मिली है।
खासकर सन् 2011 के बाद से भाजपा के जनाधार में क्रमशः इजाफा हुआ है, भाजपा के जनाधार में कमी नहीं आई है।
सवाल यह है वे कौन लोग हैं जो निरंतर भाजपा को वोट दे रहे हैं ? और उनकी संख्या क्यों बढ़ती जा रही है ? भाजपा ने बंगाल के मध्यवर्ग और निम्न मध्यवर्ग के बड़े अंश को स्थायी तौर पर अपनी विचारधारा की गिरफ्त में ले लिया है। इसके अलावा महिलाओं में एक बड़ी संख्या है जो भाजपा के नशे में हैं,लेकिन इन सबको भाजपा से विमुख करने में सभी राजनीतिक दल असफल रहे हैं। भाजपा के साथ गए लोगों में एक अंश उनलोगों का भी है जो एक जमाने में वामदलों को वोट देते थे लेकिन वामशासन से उत्पीड़ित होते थे, इन लोगों को वाम या टीएमसी आज तक आकर्षित नहीं कर पाए हैं।
इसके अलावा मोदी ब्रांड के प्रभाव में नवोदित वोटरों का बड़ा हिस्सा मोदी के साथ गया है। भाजपा को वोट देने वालों की संख्या में कायदे से गिरावट आनी चाहिए लेकिन भाजपा निरंतर 30 फीसदी और उससे ऊपर वोट बरकरार रखे हैं, जबकि उसके पास 2011 के पहले 7-8 फीसदी वोट थे।
भाजपा की निरंतर वोट बढ़ोत्तरी में पैसे की भी बड़ी भूमिका है।
भाजपा लगातार मतदाताओं में पैसे-दारू आदि बांटती रही है। दूसरी ओर बंगाल के आर्थिक पिछड़ेपन ने प्रतिगामी और विभाजनकारी विचारों के लिए जनाधार मुहैय्या कराया है। चिटफंड आदि करप्शन में डूबे नेता और उनके एजेंट बहुत बड़ी संख्या में वोट लाने वाले एजेंट बने हैं। इतने व्यापक नेटवर्क का खड़ा होना ही अपने आप में बहुत बड़ी चुनौती है। यह बंगाल के पतन की सूचना है।
टीएमसी को इतनी बड़ी जीत इसलिए मिल पाई क्योंकि सभी दलों के कार्यकर्ताओं ने, खासकर वाम-कांग्रेस आदि दलों ने मतभेद भुलाकर ममता को वोट दिया जिससे धर्मनिरपेक्ष मतों का विभाजन नहीं हो पाया।
जगदीश्वर चतुर्वेदी
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