चतरा में हुआ आदिवासी अधिकार सम्मेलन
20 को राबर्ट्सगंज में घरना प्रदर्शन
चतरा 19 सितम्बर 2016, भाजपा की केन्द्र में सरकार थी और आदिवासियों के आरक्षण के सवाल को केन्द्र सरकार ही हल कर सकती थी क्योंकि यह संसद द्वारा विधेयक पारित करके ही हो सकता था। अपने समाज के हितों के लिए मैने भाजपा में जाकर विष पिया और जब पता चला कि इस पार्टी की सरकार ने हमारा संवैधानिक अधिकार छीन लिया तो एक क्षण में भाजपा को छोड़ दिया।

यह बातें आज चतरा के करवनिया गांव में आयोजित आदिवासी अधिकार सम्मेलन में पूर्व विधायक व मंत्री विजय सिंह गोंड ने कहीं।
श्री गोंड ने कहा

“हमने भाजपा रहकर देखा कि मोदी सरकार आदिवासी, दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यकों की विरोधी है। यह सरकार जब से सत्ता में आई है इन तबकों के संवैधानिक अधिकारों, उनकी अस्मिता और अस्तित्व पर हमले कर रही है। इसने डा0 अम्बेडकर द्वारा बनाए संविधान और उसमें दिए अधिकारों को खत्म करने का ही काम किया है। मूल अधिकारों में वर्णित समता के अधिकार पर यह हमला कर रही है। इन तबकों के समूल नाश के आरएसएस के गुप्त एजेण्डे पर यह सरकार काम कर रही है।
हमें ऐसी सरकार और इनकी नीतियों से सावधान रहना है और इसका डटकर मुकाबला करना है।“

सम्मेलन की अध्यक्षता राम खेलावन सिंह गोंड़ ने और संचालन रामजग ने किया।
विजय सिंह गोंड ने कहा कि मोदी सरकार बननें के दो माह के अंदर आदिवासी आरक्षण विधेयक वापस लिया गया, दलितों के प्रोन्नती में आरक्षण के संवैधानिक अधिकार के लिए संसद में लम्बित विधेयक को खत्म कर दिया, पिछड़ों के बैकलाक को भरने पर रोक लगा दी गयी है और अल्पसंख्यकों को निशाना बनाकर उनकी हत्याएं की जा रही है। इस सरकार ने आदिवासियों, दलितों व अन्य वनाश्रित जातियों के पुश्तैनी वन भूमि पर अधिकार के लिए संसद द्वारा बने वनाधिकार कानून को खत्म कर जमीन पर मालिकाना पाने की हमारी आस को भी खत्म कर दिया। उन्होंने 20 तारीख को राबर्ट्सगंज में आयोजित घरने में शामिल होने की अपील करते हुए कहा कि यह आंदोलन इस इलाके के समग्र विकास और आम नागरिकों के जीवन की बेहतरी का आंदोलन है।

आदिवासियों की व्यवस्था में आस्था खत्म कर रही मोदी सरकार - दिनकर
सम्मेलन में आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट (आइपीएफ) के प्रदेश महासचिव व आदिवासी अधिकार मंच के संयोजक दिनकर कपूर ने कहा कि आदिवासियों के आरक्षण को दिलाने के लिए आइपीएफ के राष्ट्रीय संयोजक अखिलेन्द्र प्रताप सिंह ने मनमोहन सरकार के समय ही दिल्ली की संसद के सामने दस दिन तक अनशन किया था। पर कांग्रेस की सरकार ने इसे अटका दिया और मोदी की सरकार ने तो इसे हमेश के लिए ही दफना दिया।
उन्होंने कहा कि यह महज आदिवासी समाज का आंदोलन नहीं है बल्कि यह देश के हर उस नागरिक का आंदोलन है जो संविधान में विश्वास रखता है। संविधान में आदिवासी, दलित समुदाय को उनकी संख्या के अनुपात में लोकसभा व विधानसभाओं में राजनीतिक प्रतिनिधित्व देने का प्रावधान है। इसके अनुपालन का आदेश सर्वोच्च न्यायालय तक ने दिया है। मोदी सरकार अपनी कार्यवाहियों से आदिवासी समाज की संविधान और इस व्यवस्था में आस्था को खत्म कर रही है जो लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है।
सम्मेलन को भगवानदास गोंड़, नईम अख्तर, राम नारायन, रामेश्वर, रामबली गांेड़, सुख्खन सिंह गोंड़ इंद्रदेव खरवार आदि ने सम्बोधित किया।