भाजपा सांसद मीनाक्षी लेखी की पोस्ट पर रवीश कुमार ने साधा निशाना, बोले- सांसद की जरा भी समझ होती तो वे…
भाजपा सांसद मीनाक्षी लेखी की पोस्ट पर रवीश कुमार ने साधा निशाना, बोले- सांसद की जरा भी समझ होती तो वे…
नई दिल्ली। टीवी पत्रकार व एंकर रवीश कुमार ने भारतीय जनता पार्टी की सांसद मीनाक्षी लेखी पर अपनी सरकार की नीतियों से अनभिज्ञ होने का आरोप मढ़ा है।
दरअसल भाजपा सांसद मीनाक्षी लेखी ने द गार्जियन की एक खबर California city confiscates toilets from homeless residents – forcing them to use buckets शेयर करते हुए माइक्रोब्लॉगिंग साइट ट्विटर लिखा था कि भारत और बांग्लादेश जैसे कम अमीर देश गरीबों और बेघरों के लिए मुफ्त टॉयलेट बनाते हैं। कोई अदालत जाए।”
इससे ठीक पहले उन्होंने अमेरिका में Adjunct लेक्चरर्स की हालत पर गार्जियन की एक और खबर Facing poverty, academics turn to sex work and sleeping in cars का लिंक शेयर किया। इसके साथ उन्होंने लिखा, ”सच में, पागल दुनिया पर दुखी हूं।”
रवीश कुमार ने अपने आधिकारिक फेसबुक पेज पर लिखा है कि
”ट्वीट के प्रति सांसद की नीयत ठीक है मगर अपनी सरकार की योजनाओं को इसमें ठेल देने की उनकी समझ सीमित है। उन्हें नहीं पता जिस बात के लिए अमरीका का मज़ाक उड़ा रही हैं, वही नीति भारत में भी है और भारत के लाखों अस्थायी शिक्षकों को शहरी ग़रीबी के हालात से गुज़रना पड़ रहा है। घटिया शिक्षा नीतियों के प्रति सांसद की ज़रा भी समझ होती तो वे ट्वीट करते समय ध्यान रखतीं कि यह मामला स्वच्छता अभियान के महत्व को उजागर करने का नहीं है और न ही दुनिया पागल है। कोई लेक्चरर पागलपन में अपना जिस्म नहीं बेच रही, कोई पागलपन में सड़क पर शौच नहीं कर रहा है।”
मीनाक्षी लेखी का ट्वीट : एक अधूरा प्रसंग
अमरीका का Adjunct लेक्चरर यानी भारत का Adhoc लेक्चरर। बीजेपी सांसद ने गार्डियन अख़बार की Adjunct लेक्चरर की एक स्टोरी ट्वीट करते हुए कहा है कि वे इस पागल दुनिया पर दुखी हैं। अगले ट्वीट में कहती है कि भारत और बांग्लादेश जैसे ग़रीब मुल्क भी सबके लिए शौचालय बना रहे हैं और कैलिफ़ोर्निया जैसा शहर बेघरों के लिए शौचालय बंद कर देता है। मजबूर करता है कि वे बाल्टी में ही शौच करें।
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ट्वीट के प्रति सांसद की नीयत ठीक है मगर अपनी सरकार की योजनाओं को इसमें ठेल देने की उनकी समझ सीमित है। उन्हें नहीं पता जिस बात के लिए अमरीका का मज़ाक उड़ा रही हैं, वही नीति भारत में भी है और भारत के लाखों अस्थायी शिक्षकों को शहरी ग़रीबी के हालात से गुज़रना पड़ रहा है। घटिया शिक्षा नीतियों के प्रति सांसद की ज़रा भी समझ होती तो वे ट्वीट करते समय ध्यान रखतीं कि यह मामला स्वच्छता अभियान के महत्व को उजागर करने का नहीं है और न ही दुनिया पागल है। कोई लेक्चरर पागलपन में अपना जिस्म नहीं बेच रही, कोई पागलपन में सड़क पर शौच नहीं कर रहा है।
भारत में कालेज और स्कूल के स्तर पर लाखों अस्थायी शिक्षकों की यही हालत है। इसके लिए मीनाक्षी लेखी अकेले ज़िम्मेदार नहीं हैं, वे सभी हैं जो सरकार चलाते हैं और नीतियाँ बनाते हैं। मीनाक्षी जी को ज़रा भी यह पता होता कि भारत में भी यही सिस्टम कई साल से है और शिक्षकों की हालत बदतर है तो वे सहम जातीं।
भारत में शिक्षक दिवस पर महिमामंडन एक फ्राड कार्यक्रम है। पूरे साल शिक्षक का ख़ून चूसा जाता है, उसे असुरक्षा के साथ जीना पड़ता है, एक दिन हम उनके लिए कार्ड बनाकर ख़ुश हो लेते हैं कि बड़ा सम्मान कर लिया। नेता नैतिक शिक्षा देकर चल देता है कि शिक्षक समाज के निर्माता है। भोली जनता मूर्ख बनकर ख़ुश हो लेती है कि वाह क्या बात कही है नेता जी ने। शिक्षा मित्रों की हालत देख ली होती कम से कम। बीएड करके भी शिक्षक बेरोज़गार है और ग़रीब है।
कितना तमाशा हुआ था 2014 के साल में शिक्षक दिवस पर। घंटों पहली बार हो रहे उस तमाशे पर चर्चा हुई थी। यही डेटा दे दीजिए कि आपकी सरकार में कालेजों में कितने शिक्षतों की पूर्णकालिक नियुक्तियां हुई है? कितने पद ख़ाली हैं और कितने भरे जाने हैं? भारत के स्कूलों में कई लाख पद ख़ाली हैं। हमने इसका भी ज़िक्र प्राइम टाइम में किया था।
भारत की सांसद अमरीकी कालेजों के अस्थायी शिक्षकों की दुर्दशा पर दुखी हैं। यह अच्छी बात है। क्या उन्हें पता है कि उनकी ही पार्टी की सरकार जहां जहाँ हैं वहाँ अस्थायी शिक्षकों की आर्थिक स्थिति कैसी है? उनके विरोधी दलों की सरकारें जहाँ बची हैं, वहाँ भी यही हालात है। पंजाब चुनाव के दौरान अस्थायी शिक्षक मिले थे, आधी सैलरी मिलती है, कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं, बता रहे थे कि हमारे पास शादियों में जाने के लिए अच्छे कपड़े तक नहीं। इसलिए नहीं जाते हैं। कालेजों में चाय पीने तक के पैसे नहीं होते हैं चालीस चालीस साल से पढ़ा रहे हैं मगर जीने लायक पैसे नहीं हैं।
मैं अमरीकी प्रोफ़ेसरों के अस्थायी शिक्षकों के हालात से अवगत हूँ। कभी pro publica नाम की वेबसाइट पर पढ़ा था कि ज़्यादातर Adjunct लेक्चरर ग़रीबी रेखा से नीचे जीते हैं।जी मालिक। सरकारी योजनाओं पर आश्रित रहते हैं और बेघर हैं। इस सूचना का इस्तमाल प्राइम टाइम में भी किया था। तब से इस स्टोरी को वहाँ और भारत में ट्रैक कर रहा हूँ । ये सभी कई साल से कालेज में पढ़ा रहे हैं। अमरीका में शिक्षा का सरकारी बजट भारत की तरह लगातार कम होता जा रहा है।
आप दिल्ली विश्व विद्यालय के हज़ारों तदर्थ शिक्षकों की कहानी में उतरेंगे तो अमरीका जैसा ही भयावह मंज़र दिखेगा। वे छुट्टियों के उन दो महीनों में क्या करते हैं, कैसे दुबक कर रहते हैं आप जानते भी नहीं। यहाँ के शिक्षक भी ग़रीबी की हालत में जीते हैं। तनाव में रहते हैं और कालेज उनका ख़ूब शोषण करता है। घंटों काम कराता है।
उनके हालात के बारे में किसी सांसद को पता नहीं। मीनाक्षी लेखी भी नहीं जानती होंगी। पता भी होता तो अस्थायी तौर पर रखे जाने की नीतियों का विरोध करने की हिम्मत नहीं जुटा पातीं। बाकी सांसदों का भी यही हाल होता। अब सांसदों का काम नेता की योजनाओं का झंडा बैनर लगाकर फोटो खींचाना ही रह गया है। नीति निर्माण में उनकी भागीदारी का ट्वीट कहाँ दिखता है किसी को। बहुत से शिक्षक भी नेता को देखते ही हिन्दू मुस्लिम करने लगते हैं, अपने हालात की बात कम करते हैं ।
हम शिक्षा नीतियों पर ध्यान नहीं देते। नेता ने हिन्दू मुस्लिम और फर्ज़ी राष्ट्रवाद के टापिक में झोंक कर हमारी हालत भेंड़ जैसी कर दी है। हम दूहे जाते हैं, ऊन के लिए धागे देते हैं और हमीं माँस के लिए जान भी देते हैं। आज भारत के तमाम कॉलेज अस्थायी शिक्षकों से चल रहे हैं। डिपार्टमेंट के डिपार्टमेंट ख़ाली हैं। आप दिल्ली वि वि के साथ अपने ज़िले के कालेज का ही पता कर लीजिए। ज़रूरत हर जगह है मगर हर जगह अस्थायी या ठेके के शिक्षकों से काम चलाया जा रहा है। फेसबुक के इसी पेज पर लिखा था कि बिहार के कालेजों में सत्तर फीसदी पद ख़ाली हैं। यूपी से लेकर मध्य प्रदेश तक यही हाल होगा, आप पता कर लीजिए।
गार्डियन की स्टोरी भयानक है। कालेज से पढ़ाकर निकलने वाला लेक्चरर कम कमाई के कारण कार में रहता है। एक लेक्चर जीने के लिए जिस्मफरोशी करती है। डरती है कि कहीं उसका कोई छात्र न चला जाए। कोर्स का लोड कम हो जाने के कारण कमाती कम हो गई है। ये भारत में भी होता है। कोर्स का लोड कम हुआ, लेक्चरर सड़क पर। एक लेक्चरर की माँ मर गई। अगले दिन सुबह आठ बजे क्लास में थीं । भर्राई आंखों से पढ़ाती रही और जब निकली तो एक पार्क में गिर गई। कई टीचर कालेज में काफी बेहतर माने जाते हैं, उन्हें पढ़ाना ही अच्छा लगता है और यही एक काम जानते हैं। गार्डियन की स्टोरी पढ़ेंगे तो आप आख़िर तक नहीं पहुँच पाएँगे।
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ज़्यादातर शिक्षक अस्थायी हैं तो पूरी तनख़्वाह नहीं मिलती है। स्थाई शिक्षक बहुत कम होते हैं, उनका वेतन बहुत ज़्यादा होता है। उन्हें पूरी सुरक्षा मिलती है। अस्थायी शिक्षकों को हफ्ते में आधी कमाई पर चालीस घंटे से भी ज़्यादा काम करना पड़ता है। कमाई का बड़ा हिस्सा शिक्षा लोन चुकाने में चला जाता है। लिंक दे रहा हूँ । पढ़ियेगा।
Really SAD at the MAD world !
Facing poverty, academics turn to sex work and sleeping in cars https://t.co/QGIWGbN1OW— Meenakashi Lekhi (@M_Lekhi) September 30, 2017
Not so rich countries like India & Bangladesh make free toilets for their poor & homeless, someone please approach the courts, Human dignity !California city confiscates toilets from homeless residents – forcing them to use buckets https://t.co/w2l9sgIgsj
— Meenakashi Lekhi (@M_Lekhi) October 1, 2017


