भारत का इतिहास हिन्दुओं का इतिहास है
भारत का इतिहास हिन्दुओं का इतिहास है
डॉ. सुब्रह्मण्यम् स्वामी
सुब्रह्मण्यम स्वामी के एक लेख ने बहुत हल्ला मचाया हुआ है. ये महोदय सर्दियों में आस्ट्रेलिया के नामी गिरामी यूनिवर्सिटी में पढ़ाते हैं.बताते चलें कि पिछले दिनों वहां के छात्रों ने इनको यूनिवर्सिटी से निकालने की बात की थी. छात्रों का आरोप था कि इन महोदय से साम्प्रदायिकता की बू आती है. एक समय ये महोदय पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की पार्टी में भी रह चुके हैं. वह तो घोषित समाजवादी युआ तुर्क थे, लेकिन उनका यह चेला दीनदयाल उपाध्याय का शिष्य हो गया है. जब आस्ट्रेलिया में छात्रों ने इनको यूनिवर्सिटी से निकलने के लिए आन्दोलन किया, तो महोदय ने कहा- यह सब कम्युनिष्टों का किया धरा है. अब भारत के मुसलमान स्वामी के खिलाफ आन्दोलन कर रहे हैं. आप लोग खुद फैसला करें इसलिए स्वामी का लेख लगा रहा हूँ. - देवेन्द्र प्रताप
दीनदयाल जी ने चिति और भौतिकवाद अर्थात भौतिक विकास और अध्यात्मिकता के संमिश्रण या समन्यवय की बात की है। दीनदयाल जी की जो सबसे महत्वपूर्ण सकल्पनाएँ है उन पर बहुत अधिक चर्चा हो चुकी है। मैं चिति के बारे एक-दो शब्द और जोड़ना चाहता हूँ।
चिति बहुआयामी कल्पना है, लेकिन उसमें यह भी है कि हम जिस धरती पर रहते हैं, जिसको भारत वर्ष कहते हैं, उससे हमारा क्या सम्बन्ध है, हम कौन हैं। एक साधारण बात लोग कह दिया करते हैं कि हमारी अनेक पहचान है। हम किसी के पति हैं, हम किसी के भाई हैं, किसी के पुत्र हैं इत्यादि। लेकिन राष्ट्र स्तर पर हमारी एक पहचान है उसको हमें स्पष्ट रूप से समझना चाहिए। आज अपने आप को सेक्युलर कहलाने वाले लोग कहते हैं कि हम इण्डियन हैं। इण्डियन माने कौन, जिसका पासपोर्ट इण्डियन है? पासपोर्ट की मान्यता 1947 से हुई है, लेकिन हमारा इतिहास लगभग दस हजार वर्ष से भी अधिक प्राचीन हैं। इसके साथ भारतीय (Indian) का क्या सम्बन्ध है? यह दस हजार पुराना इतिहास तो हिन्दुओं का ही इतिहास है। मैं समझता हूँ कि बाद में भी सत्ता किसी की भी रही हो लेकिन इतिहास हिन्दू का ही है।
इस इतिहास की विशेषता मुझे एक सऊदी अरेबिया के विद्वान (Scholar) ने समझाया, जिससे मेरी भेंट हावर्ड में हुई थी। वह मुझसे यह पूछने के लिए मिला कि क्या बात है कि हिन्दू अभी तक झुका नहीं। मैंने कहा हमारे इतिहास में यह पढ़ाया जाता है कि हम रोज झुकते हैं, रोज पिटते हैं, बाहर से कोई भी आता है यहाँ राज्य करके चला जाता है। अरब से आते हैं, अफगानिस्तान से आते हैं और कभी-कभी इटली से भी आ जाते हैं। उसने कहा हम ऐसा नहीं मानते। मैंने कहा, क्यों? उसने कहा मुसलमान ईरान गये और पन्द्रह सालों में सौ प्रतिशत ईरान को मुस्लिम बना दिया। फिर वह बेबीलोन गया, जिसे आज ईराक कहते हैं और वहाँ 17 सालों में सौ प्रतिशत मुसलमान बना दिया। इसी प्रकार उन्होंने मिस्र में भी किया। क्रिश्चियन ने 50 सालों में सम्पूर्ण यूरोप को सौ प्रतिशत क्रिश्चियन बना दिया, लेकिन भारत में हजार वर्षों तक इनके राज करने के बाद भी अभी तिरासी प्रतिशत हिन्दू हैं और अखण्ड भारत में पचहत्तर प्रतिशत हिन्दू हैं। हम लोग सऊदी अरब में इस विषय पर शोध कर रहे हैं कि इसके पिछे क्या रहस्य है। तब समझ में आया कि हम हिन्दू पिटे नहीं।
भारत का इतिहास हिन्दू का इतिहास है और यहीं हमारी पहचान है। अब प्रश्न उठता है कि मुसलमानों और क्रिश्चियनों का क्या करें? तो मैं यह कहता हूँ कि मुस्लिम और क्रिश्चियन के पूर्वज भी हिन्दू हैं। यह बात वे स्वीकार करें कि धर्म बदलने से भी संस्कृति नहीं बदलती। इसलिए यह भारत वर्ष जिसे दुनिया भर में हिन्दुस्थान के नाम से पुकारते हैं यह हिन्दुओं का और अन्य उन लोगों का जो गर्व से स्वीकार करते हैं कि उनके पूर्वज हिन्दू हैं, उन सभी का है। जो गर्व से स्वीकार नहीं करते उन्हें हिन्दुस्थान में नहीं रहना चाहिए उन्हें वोट देने का अधिकार भी नहीं प्राप्त होना चाहिए
"हमारा इतिहास लगभग दस हजार वर्ष से भी अधिक प्राचीन हैं। यह दस हजार वर्ष पुराना इतिहास तो हिन्दुओं का ही इतिहास है। बाद में भी सत्ता किसी की भी रही हो लेकिन इतिहास हिन्दू का ही है।... हजार वर्षों तक मुसलमानों के राज करने के बाद भी अभी भारत में तिरासी प्रतिशत हिन्दू हैं और अखण्ड भारत में पचहत्तर प्रतिशत हिन्दू हैं।"
डॉ. सुब्रह्मण्यम् स्वामी, जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व विधि मंत्री, भारत सरकार।
यह बात हमें साम, दाम, दण्ड और भेद इनमें कोई भी उपाय करके हमारे देश में स्वीकार कराना चाहिए। यह भावना उत्पन्न होनी चाहिए कि हमारे पूर्वज हिन्दू हैं इसलिए संस्कृत में बोलना कोई बुरी बात नहीं है तथा संस्कृत में नाम रखना कोई गलत कार्य नहीं है। ईरान में पर्शियन शब्द बोलते हैं। पर्शियन तो मुस्लिम भाषा नहीं है, यह तो पारसियों की भाषा है, जो उन्होंने उनके देश में कब्जा करके ले लिया। अत: मेरा यही मानना है कि हमारी सही पहचान हिन्दू या जिनके पूर्वज हिन्दू हैं यही हो सकती है।
अंग्रजों ने हमें आर्य और द्रविड़ियन सिद्धान्त सिखाया, वह बिल्कुल निराधार है, जिसकी पुष्टि डी.एन.ए. टेस्ट के आधार पर भी हो चुकी है। डी.एन.ए. टेस्ट के अनुसार भारत में रहने वाले हिन्दू, मुसलमान और क्रिश्चियन सब एक ही डी.एन.ए. संरचना (Structure) के है, कोई बाहर से नहीं आया है। आर्य नाम का तो कोई शब्द ही नहीं है। हमारे यहा आर्य शब्द का प्रयोग सज्जन व्यक्ति (Gentleman) के लिये हुआ है और द्रविड़ तो पहले किसी समुदाय का नाम ही नहीं था।
द्रविड़ शब्द का सबसे पहले प्रयोग आदि शंकर ने मण्डन मिश्र के साथ शास्त्रार्थ में वाराणसी में किया था। उन्होंने अपने विषय में कहा कि मैं द्रविड़ शिशु हूँ। द्रविड़ दो शब्दों का सन्धि है, जिसके माने जहाँ तीन समुद्रों की सन्धि हो। त्रय और विद् अर्थात तीन समुद्रों का मिलन स्थल। यही शब्द बाद में बदलकर द्रविड़ बन गया। जैसा हम सभी को पता है कि दक्षिण में अरब सागर, बंगाल की खाड़ी और हिन्द महासागर यह तीनों मिलते है। अत: इसी के आधार पर यह द्रविड़ शब्द बना है।
एम. करूणानिधि ने एक बार मुझसे कहा कि हम सभी द्रविड़ियन हैं और ब्राह्मण आर्यन्, उन्होंने यह भी कहा कि रावण उनका हीरो है। मैने उनको समझाया कि रावण एक ब्राह्मण था और उसका वध करने वाले राम एक क्षत्रिय थे, लेकिन सारे हिन्दुस्थान के ब्राह्मण क्षत्रिय की पूजा करते हैं, उस ब्राह्मण की पूजा नहीं करते जिसका वध हुआ था। अब वे रावण की प्रशंसा तो नहीं करते, लेकिन राम की बुराई आज भी करते हैं, परन्तु मेरा यह मानना है कि जब उनकी राम से भेंट होगी तो वह ठीक हो जायेंगे।
इन सभी को देखते हुये मेरा स्पष्ट मानना है कि हिन्दुस्थान गणराज्य हिन्दू राष्ट्र है, यही उसकी पूर्ण पहचान है। इसमें हमें किसी से कुछ पूछने की आवश्यकता नहीं है। इसकी हमें रक्षा करनी है। एक बात और कहना चाहता हूँ कि हम संख्या पर गर्व न करें, क्योंकि संख्या से रक्षा नहीं हो सकती। हजार बकरियों के बीच में यदि एक शेर आ जायेगा तो सभी बकरियां भाग जायेंगी, लेकिन सर्कस में चार, पाँच सिंह होते हैं और एक रिंग मास्टर उनको अपने वश में किये रहता है। वह जो आज्ञा देता है उस आज्ञा को सभी सिंह मानते हैं। यह माइंड सेट का विषय है। यदि आपका ब्रेन वाश (Brain Wash) हो जायेगा तो आप सर्कस के सिंह हो जायेंगे। आप जंगल के सिंह बनो।
एक बार मेरी भेंट श्री गुरूजी से हुई थी, तब उन्होंने कहा था कि चरित्र दो प्रकार के होते हैं, व्यक्तिगत चरित्र और राष्ट्रीय चरित्र। जैसा कि डा. मनमोहन सिंह को देखते हैं उनका व्यक्तिगत चरित्र बहुत अच्छा है, परन्तु राष्ट्रीय चरित्र नहीं। अत: जो राज्यकर्ता है उनका राष्ट्रीय चरित्र होना चाहिए। यह चिति के आधार ही सम्भव है। अत: मेरा यह मानना है कि हम सभी को प्रयत्नपूर्वक उन राज्यों में जहाँ हमारा प्रभाव है एकात्म मानववाद (Integral Humanism) को पढ़ने की व्यवस्था करनी चहिए।
एकात्म मानववाद के ऊपर प्रान्तीय सरकारों द्वारा आलेख प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया जाना चाहिए और जो सबसे अच्छा लेख लिखे उसे एक लाख रूपये का पुरस्कार भी दिया जाए। इनमें से कुछ लेखों को प्रकाशित भी किया जाये। इस प्रकार विद्वानों को हम प्रोत्साहित कर सकते हैं।
साभार -100 flowers


