भारत का विकास और बढ़ती आबादी
भारत का विकास और बढ़ती आबादी
अनिल सिंह
बहुत दिनों बाद एक व्यक्ति नरेन्द्र मोदी भारतीय राजनीति में आया है जिसने देशवासियों का खास कर नयी पीढ़ी का विश्वास जीता है- पूरा देश सामाजिक रूप से 3 वर्ग मे विभक्त है-
एक - जो 70 वर्ष के ऊपर के हैं, जिन्हें अपने देश, अपनी नई पीढ़ी को लेकर चिंता है, जिनके अन्दर नरेन्द्र भाई मोदी विश्वास की कौंध पैदा कर गये हैं।
दो - जो 21 वीं सदी में अपने सामर्थ-बौद्धिक, शारीरिक क्षमता का योगदान दे पाने में विश्वास प्राप्त कर रहे हैं, नरेन्द्र मोदी के भ्रष्टचार मुक्त राज्य व्यवस्था में।
तीसरा - वह वर्ग जो मात्र भ्रष्ट आचरण की जीवन शैली का अभ्यस्त हो गया है, जो अपनी पैनी दृष्ट से किसी चूक का अध्ययन कर रहा है जिससे उनकी शैली प्रभावी हो सके....!
मोदी राज्य में भ्रष्टाचार पर अंकुश का भरोसा तो है किन्तु अन्तर्राष्ट्रीय जगत में हो रहे तेजी से परिवर्तन जिनमें आतंकवाद का प्रमुख योगदान दिख रहा है उसके चलते भारत के अन्तरिक सुरक्षा के साथ साथ बाह्य सुरक्षा को भी खतरा है। कच्चे तेल का दाम इराक के गृह युद्ध से प्रभावित है, महंगाई न रूक पा रही है न ही उसके निकट भविष्य में रूक पाने की संभावना है। ऐसे में ‘‘अल्प शासन एवं सफल संचालन’’ (मिनीमम् गर्वंमेन्ट-मैक्सिमम् गर्वनेन्स) का लक्ष्य कैसे प्राप्त होगा। संसाधन, ढाँचागत सुविधा, कृषि उत्पादन, व्यवसाय, उद्योग व रोजगार के अवसर हेतु एक रोडमैप लेना होगा।
उक्त रोडमैप हेतु यह निर्धारित करना होगा कि हमारी आबादी का वर्तमान अनुपात यदि कायम रहा तो कितनी ढ़ाँचागत सुविधा, आगामी 10 वर्ष हेतु चाहिए-। कभी यह निर्धारण यथार्थ के धरातल पर नहीं आ सकता क्योंकि संसाधन पर आबादी का दबाव हमारे देश पर हमेशा बना रहता है।
बगैर आबादी को नियन्त्रित किये न तो अमेरिका ना ही यूरोप, न ही एशिया के विकसित देश जापान व चीन ही विकास दर के मानक को ले पाये हैं। हमारा लोकतन्त्र भी विकासशील अवस्था में है, हमारी अर्थ व्यवस्था भी विकास उन्मुख अवस्था में है। अतः आवश्यक है कि देश अपनी तेजी से बढ़ती आबादी पर नियंत्रण करे- यह समय राजनैतिक लाभ-हानि से ऊपर उठकर एक राष्ट्रीय इच्छा शक्ति लेने का है कि, देश कैसे अपने पड़ोसी चीन के बराबर विकसित हो सके। देश की संसद को इच्छा-शक्ति के साथ कानून बनाना चाहिए कि, भारतवर्ष में नागरिक कि अमूक आयु सीमा तक यदि सन्तान उत्पन्न हो जाती है तो प्रथम श्रेणी की सेवा में वह अपनी पात्रता खो देगा। इसके साथ-साथ यह भी उपबंध होना चाहिए कि एक निर्धारित आयु सीमा पर इतने ही बच्चे होने पर ही प्रमोशन का लाभ तथा अन्य शासकीय सुविधायें ली जा सकती हैं। यदि कुछ ऐसे ठोस प्रयासों को कानूनी जामा दिया जा सके तो भरोसा किया जा सकता है कि आबादी रोकी जा सकती है।
अब भारत दुनिया का सबसे युवा देश है। आबादी का बड़ा तबका (65%) 30 वर्ष से नीचे है। अब इस युवा शक्ति में अशिक्षित व अल्प शिक्षित की बड़ी संख्या है, इसके कौशल निर्माण योजना के अन्तर्गत इन्हें प्रशिक्षित कर उपयोग करते हुए हमें उत्पादन व उसकी कीमत पर अंकुश रखते हुए वैश्विक उपभोक्ता बाजार में उतरना होगा।
आबादी को नियन्त्रित करने के उपरान्त हमें नौजवानों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने पड़ेंगे, तब जाकर लगभग दो दश्क बाद हम कड़े अनुशासन के साथ चीन के बराबर जा सकते हैं। भारत, प्रधानमंत्री के शब्दों में ज्ञान गुरू हो सकता है, ज्ञान ही तो विकास व समृद्धता की कुंजी है।
उक्त परिपेक्ष्य में हमें मजहबी कमजोरी सें लड़ना होगा। परिवार, वंश, जाति, धर्म से ऊपर उठकर देश हेतु संकल्प लेना होगा। कदाचित मोदी जैसे दृढ़ इच्छा शक्ति के ईमानदार प्रयास को देश स्वीकार कर सके- तथा आंतरिक सुरक्षा का संकट समाप्त हो सके तो विकास के लक्ष्य को पाना कठिन न होगा।
हमें देखना है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल-क्षमता व नेतृत्व की कसौटी की परीक्षा अब से आरम्भ हो रही है। देश में बाढ़, सूखा, स्वास्थ्य-चिकित्सा, शिक्षा, बेरोगारी, बिजली, पानी, यातायात के साधनों के साथ-साथ आर्थिक रूप से स्वावलम्बी बनना ही लक्ष्य होना चाहिए। विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से मुक्त अर्थ व्यवस्था ही हमारी सम्पूर्ण आजादी होगी। इस हेतु कठिन परिश्रम हेतु देश को तैयार होना होगा- समर्थ नेतृत्व देश को प्राप्त है।
ब्रिक्स नेशन बैंक की स्थापना, स्वालम्बन एवं स्वाभिमान के साथ वैश्विक जगत को भारत की अगाज है। ब्रिक्स नेशन बैंक का अध्यक्ष पद भारत के हाथ में आना भी नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व की उपलब्धता है।


