भारत की नीतिगत विकलांगकता मुक्ति महोत्सव जापान में !!!
भारत की नीतिगत विकलांगकता मुक्ति महोत्सव जापान में !!!

क्योंकि मुनाफा वसूली के लिए युद्ध से बेहतर कोई दूसरा साधन नहीं
कारपोरेट वकील एवं केसरिया हिंदू राष्ट्र के एकाधार एकाधिकारी वित्त प्रतिरक्षा मंत्री अरुण जेटली का बयान कि राष्ट्र अब मुकम्मल तौर पर नीतिगत विकलांगकता यानि पॉलिसी पैरालिसिस से मुक्त है, का जश्न टोक्यों में मानया जा रहा है।
हिटलर और मुसोलिनी के सहयोगी जापान तकनीकी क्रांति में अमेरिका से दो कदम आगे है और तकनीकी क्रांति का सीधा मतलब है विनियंत्रण, विनिवेश, विनियमन, श्रम हत्या, उत्पादन प्रणाली का अंत, कृषि और कृषि समाज का सफाया, देश में विदेश का मजा, हैव और हैव नाट्स का वर्गीकरण, ऑटोमेशन और छंटनी।
नीतिगत विकलांगकता दूर करने से वित्तीय प्रतिरक्षा मंत्री का आशय यही है।
इसी तरह रघुपति राजन रिजर्व बैंक के अवस्थान से घोषणा कर चुके हैं कि बैंकों के खराब लोन की हालत आशंकाजनक नहीं है।
नायक कमिटी की सिफारिशें लागू करने और सरकारी बैंकों के बेसरकारीकरण अभियान के बरअक्स रिजर्व बैंक के गवर्नर का यह बयान लोमहर्षक है जबकि वित्तीय समावेश के नाम समस्त देशवासियों का बैंक खाता खुलवाकर उन्हें आधार डेबिट कार्ड धरवाने में सिर्फ सरकारी बैंक खाते से जो पचहत्तर करोड़ रुपये का न्यारा वारा हो रहा है त्योहारी सांढ़ संस्कृति की अंधी दौड़, बाजार में नकदी प्रवाह जारी रखने के लिए, उसकी रिकवरी का दूर-दूर तक कोई अंदेशा नहीं है।
इस नकदी प्रवाह को समताल रखने की मौद्रिक कवायद ही भारतीय वित्तीय प्रणाली की एकमेव गतिविधि है बाकी रेटिंग और कारपोरेट लाबिइंग की महिमा अपरंपार।
वैसी भारत की वित्तीय व्यवस्था वित्त मंत्रालय, सेबी और रिजर्व बैंक के साझे चूल्हे पर पकने वाली तंदूरी है जो महामहिम संप्रदाय के लिए भले ही सींक कबाब हो, लेकिन आम जनता के लिए महज ख्याली पुलाव है। वैसे बाजार में बुल रन थमने का नाम ही नहीं ले रहा है।
भारत में ख्याली पुलाव का पक्का इंतजाम करके नीतिगत विकलांगकता दूर करने के लिए हिटलर मुसोलिनी और आफसपा, सलवा जुड़ुम शासक तबके के केसरिया कारपोरेट पंत प्रधान दूसरे चरण के आर्थिक सुधारों के पौराहित्य के लिए जापानी साम्राज्यवाद को न्यौतन गये हैं। इसी सिलसिले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को प्रधानमंत्री कार्यालय में जापान के लिए विशेष दल बनाने की घोषणा की।
कोरिया और चीन में जापानी साम्राज्यवाद ने जो गुल खिलाये, उससे शायद स्वदेशी सूरमाओं को खास एतराज नहीं है। जैसे उन्हें एफडीआई राज, प्रोमोटर बिल्डर माफिया राज से कोई परहेज नहीं है और भष्टाचार विरोधी अभियान को इस्लाम विरोधी इजराइल, अमेरिकापरस्त, आरक्षण विरोधी, संविधान विरोधी नागरिक और लोकतंत्र विरोधी, अति देशभक्त अभियान में बदलने में और तमाम जनांदोलन, सामाजिक कार्यकलापों को रस्मी हिंदुत्व में तब्दील करने में उनकी कोई सानी नहीं है।
पश्चिम के बाजार में जो जापानी तकनीक की धूम है, उसमें अपने महा गौरवान्वित निराधार आधार आईटी कंपनियों का हश्र क्या होगा, गाड़ी और इलेक्ट्रॉनिक सेक्टर में जापानी वर्चस्व के बावजूद, पड़ोस में बांग्लादेशी अर्थव्यवस्था पर जापानी शिकंजे की वास्तविकता के बावजूद केसरिया अर्थशास्त्रियों और मीडिया महारथियोम के साथ कृपाप्रार्थी विद्वतजनों को इसकी खास परवाह जाहिर है, नहीं है।
इंफ्रा बूम बूम, बुलेट चतुर्भुज और स्मार्ट सेज महासेज, विदेश स्वदेश से किन कंपनियों का भला होने वाला है, यह सर्वविदित हैं चाहे उनके आका राजनीतिक बवाल की आशंका से तोक्यो में फिलवक्त बिजनेस फ्रेंडली प्रधानमंत्री के साथ नहीं हैं।
नीतिगत विकलांगकता से पार पाने के लिए अब भारत जापान शिखर वार्ता में असैन्य परमाणु संधे और रक्षा सहयोग पर भी निर्णायक समझौते हो रहे हैं।
रिसते परमाणु संयंत्रों की आवक से देश की अर्थव्यवस्था की जा बिकवाली होनी है सो तो होगी ही, भोपाल गैस त्रासदी की बारंबारता भी सुनिश्चित होगी और इसी के तहत वित्तीयघाटा पाटा जायेगा और वृद्धिदर भी तेज होगी।
वित्त मंत्रालय से रक्षा समझौते हो रहे हैं। वित्त मंत्रालय से पर्यावरण, प्रकृति और मनुष्य के लिए विनाशकारी परियोजनाओं को हरी झंडी दी जा रही है, तो उसे वित्तीय प्रबंधन की दाद देनी पड़ेगी।
सीबीआई दबिश से परेशान दीदी को अपने ही वध्य वाम के अवाम की परवाह सबसे ज्यादा है तो शिकंजे में हैं पोंजी नेटवर्क में सबसे शातिराना रोल प्ले करने वाले स्टार सुपरस्टार रिजर्व बैंक और सेबी के अफसरान जो फर्जी शोयरों के गोऱख धंधा बजरिये पोंजी पद्धति से देश की अर्थव्यवस्था साधते हैं शेषनाग की तरह।
देश में दसों दिशाओं में कालाधन की जय जयकार है, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के लिए मुक्तांचलों मसलन मारीशस और हांगकांग सिंगापुर होकर वही कालाधन अबाध पूंजी प्रवाह है और कालाधन निकालने के लिए केसरिया कारपोरेट सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है और यही फिलवक्त इकानामिक्स है।
मुश्किल यह है के वैज्ञानिक दृष्टि और इतिहासबोध के तरोताजा केसरिया विशेषज्ञ अफगानिस्तान, गंधार, चीन से लेकर श्रीलंका, सुमात्रा, जावा, बाली , कंपुचिया, सिंगापुर, म्यांमार तक को अखंड सनातन भारत का उपनिवेश बताते अघाते नहीं है। केसरिया सत्ता गुरु गोवलकर की तर्ज पर सिख, बौद्ध और जैन भूगोल को हिंदू राष्ट्र के भूगोल में समाहित करने के महान एजेंडे पर काम कर रहे हैं और नमो महाराज की बुद्धं शरणं गच्चामि बनारस स्मार्ट सिटी संकल्प के साथ इसी एजंडे के तहत है। लेकिन भारतीय महाद्वीप को एक आर्थिक, राजनीतिक ऐतिहासिक भौगोलिक ईकाई की तरह देखन की कोई दृष्टि नहीं है।
पाकिस्तान में गृहयुद्ध का सा नजारा शत्रुदेश का मामला है हमारे लिए, मध्यपूर्व के तेलक्षेत्र के दखल युद्ध का वसंदत वज्र निर्घोष नहीं है। मुक्ताबाजारी साम्राज्यवाद जो निशाने साध रहा है, उस चांदमारी में हम खुद को कवचकुंडलधारी कर्ण मानकर चल रहे हैं।
पाकिस्तान में लोकतंत्र कमजोर पड़ने के बाद सैन्य वर्चस्व की अनिवार्य परिणति भारत पाक युद्ध है, जो साम्राज्यवादी रणनीति तो है ही, उससे बड़ी आकांक्षा है सीमाओं के आर पार सत्ता वर्ग की, क्योंकि मुनाफा वसूली के लिए युद्ध से बेहतर कोई दूसरा साधन नहीं है।
शैतानी राकफेलर और राथ्सचाइल्ड घरानों का सदियों का इतिहास यही है, जिनके जिम्मे बारत में मुक्तबाजारी सुधारों को अंजाम देने का एजेंडा है।
पलाश विश्वास


