भारत के मेहनतकशों के असल नेता बाबासाहेब थे
भारत के मेहनतकशों के असल नेता बाबासाहेब थे
कब तक होंगे हम गोलबंद?
जियेंगे तो साथ , मरेंगे तो साथ, मई दिवस का संकल्प यही है।
हिंदू राष्ट्र में खत्म हो रहे मेहनतकशों के वे हकहकूक, जो बाबासाहेब ने दिलवाये, तो फासिज्म के राजकाज के खिलाफ बहुजनों को ही मेहनतकशों की लड़ाई का नेतृत्व करना होगा।
हम अपनी ताकत नहीं जानते और संसाधन हमारे हैं और देश भी हमारा है, हम यह भी नहीं जानते।
पलाश विश्वास
75 साल के सफाई कर्मचारी यूनियन के नेता की चेतावनीः पढ़े लिखे लोगों की चमड़ी वातानुकूलत हो गयी है और वे किसी भी तरह के जनसरोकार से कोई वास्ता नहीं रखते और न किसी मिशन, विचारधारा या आंदोलन में उनकी कोई दिलचस्पी है और वे तमाम कार्यक्रमों की रस्म अदायगी के जरिये सत्ता से नत्थी होकर अपना मोल बढ़ाने के फिराक में बाबासाहेब का नाम लेकर रस्म अदायगी करते हैं और देश में कहीं अंबेडकरी आंदोलन जैसे नहीं है वैसे ही मजदूर आंदोलन भी नहीं है। मेहनतकशों की हक हकूक की लड़ाई आखिरकार इन पढ़े लिखे लोगों के भरोसे हो नहीं सकती और हर कीमत पर दुनिया के गरीबों को गोलबंद होना होगा वरना हम सारे लोग मारे जायेंगे।
हिंदू राष्ट्र में खत्म हो रहे मेहनतकशों के वे हकहकूक, जो बाबासाहेब ने दिलवाये, तो फासिज्म के राजकाझ के खिलाफ बहुजनों को ही मेहनतकशों की लड़ाई का नेतृत्व करना होगा।
मध्य कोलकाता के बुद्ध मंदिर में कल हमने मई दिवस मनाया कोलकाता में और जल जंगल जमीन नागरिकता और मानवाधिकार की लड़ाई जारी रखने के लिए देश के भीतर, सरहदों के आर पार समूचे विश्व में मानव बंधन बनाने की संकल्प लिया। तपती हुई दुपहरी से लोग देर शाम तक विचार विनिमय करते रहे तो उधर हिमालय जलकर राख होता रहा कि जल जंगल जमीन से जनता को बेदखल करने के लिए आपदाएं भी अब कारपोरट आयोजन हैं।
वक्ताओं ने विस्तार से यह रेखांकित किया कि मई दिवस की शहादत के पीछे मेहनतकशों के हक हकूक की जो मांगें उठीं, अमेरिका की उस सरजमीं पर उन्ही हक हकूक के खात्मे के लिए ग्लोबल मनुस्मृति राज का वैश्विकत्तर मंत्रयंत्र का मुख्यालय है और आजाद भारत उसका मुकम्मल उपनिवेश है।
वक्ताओं ने बाबासाहेब की मूर्तियां बनाने के अभूतपूर्व अभियान के तहत बाबासाहेब के आंदोलन, उनके विचार और उनके मिशन को खत्म करने के केसरिया आंतकवाद के आगे आत्मसमर्पण की आत्मघाती बहुजन राजनीति पर तीखे प्रहार भी किये। इसी सिलसिले में बंगाल के केसरियाकरण को पूरे देश के लिए बेहद खतरनाक माना गया।
बंगाल के युवा सामाजिक कार्यकर्ता शरदिंदु विश्वास ने मई दिवस के इतिहास और मई दिवस के चार्टर और शहादतों की विस्तार से चर्चा की और वक्ता इस पर सहमत थे कि भारत के मेहनतकशों के असल नेता बाबासाहेब थे, इसलिए मेहनतकशों की लड़ाई में अंबेडकरी अनुयायियों को बाबासाहेब के जाति उन्मूलन के मिशन को प्रस्थानबिंदू मानकर हक हकूक की लड़ाई का हीरावल दस्ता बनना चाहिए।
रिसड़ा से आये सफाई मजदूरों के राष्ट्रीय नेता वे पेशे से शिक्षक पचत्तर वर्षीय ईवी राजू की भड़ास से तमाम लोग जो बंगला के विभिन्न हिस्सों में सक्रियअंबेडकरी संगठनों, मजदूर संगठनों के सक्रिय नेता कार्यकर्ता थे, हतप्रभ रह गए।
पढ़े लिखे लोगों की चमड़ी वातानुकूलत हो गयी है और वे किसी भी तरह के जनसरोकार से कोई वास्ता नहीं रखते और न किसी मिशन, विचारधारा या आंदोलन में उनकी कोई दिलचस्पी है और वे तमाम कार्यक्रमों की रस्म अदायगी के जरिये सत्ता से नत्थी होकर अपना मोल बढ़ाने के फिराक में बाबासाहेब का नाम लेकर रस्म अदायगी करते हैं और देश में कहीं अंबेडकरी आंदोलन जैसे नहीं है वैसे ही मजदूर आंदोलन भी नहीं है। मेहनतकशों की हक हकूक की लड़ाई आखिरकार इन पढ़े लिखे लोगों के भरोसे हो नहीं सकती और हर कीमत पर दुनिया के गरीबों को गोलबंद होना होगा वरना हम सारे लोग मारे जायेंगे।
निरंकुश सत्ता के मुकाबले तमाम सामाजिक शक्तियों की साझा मोर्चाबंदी के बिना बाबासाहेब के मिशन को अंजाम देना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।
गौरतलब है कि ब्रिटिश भारत में 1942 मे श्रममंत्री बने बाबासाहेब 1946 तक मेहनतकशों के हक हकूक के लिए मई दिवस के चार्टर के मुताबिक सारे कायदे कानून बनाये तो भारतीय संविधान की रचना के वक्त भी श्रमजीव वर्ग और औरतों, वंचितों और आदिवासियों के हक हकूक के लिए रक्षा कवच के प्रावधान भी किये। उनने भारत में ब्रिटश राज में इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी बनायी तो मेहनकशों की हक हकूक की लड़ाई के बिना बाबासाहेब के नाम किसी भी तरह का आंदोलन बेमानी है।
गौरतलब है ब्रिटिश राज में बाबासाहेब ने जो कानूनी हकहकूक मेहनतकशों के लिए सुनिश्चित कर दिये, मुक्तबाजारी हिंदू राष्ट्र में संपूर्ण निजीकरण, संपूर्ण बाजारीकरण और अबाध पूंजी निवेश के कयामती आलम में वे सारे कायदे कानून खत्म हो गये तो न मजदूर यूनियनों ने इसका प्रतिरोध किया और न पूना समझौते के तहत राजनीतिक आरक्षण से चुने हुए प्रतिनिधियों ने इसका किसी भी स्तर पर विरोध किया।


