ट्रंप का जो व्यक्ति प्रचार करे वह बुद्ध का कभी अनुयायी नहीं हो सकता

पीएम मोदी ने अपने साढ़े पांच साल के कार्यकाल में भारतीय उपमहाद्वीप में शांति स्थापना के लिए कोई पहल नहीं की, उलटे पहले के शांतिप्रिय माहौल को पाकिस्तान के साथ प्रतिस्पर्धा करते हुए खराब किया है। यह वे शांति के पक्षधर कभी नहीं रहे, उन्होंने हमेशा शक्ति और अहंकार के बल पर विदेश नीति को संचालित किया है। उनके आदर्श बुद्ध के आदर्श कभी नहीं रहे, उनके राजनीतिक आदर्श तो डोनाल्ड ट्रंप हैं, जिनको सैन्यनीति और सेना के एक्शन में विश्वास है। ट्रंप का जो व्यक्ति प्रचार करे वह बुद्ध का कभी अनुयायी नहीं हो सकता। ट्रंप ने सारी दुनिया को युद्ध और धमकी के अलावा कुछ नहीं दिया।

यूएनओ में भी भारत के आंतरिक विकास की बातें और वायदे पेश करके अंततः पीएम मोदी ने अपने निकटवर्ती चुनावी लक्ष्य को पूरा करने के लिए ही आज भाषण दिया। आमतौर पर संयुक्त राष्ट्रसंघ के अधिवेशन में विश्व समस्या पर ही नेतागण केन्द्रित रहते हैं और अपने देश की आंतरिक बातों को नहीं रखते। सिर्फ उन इलाकों के नेता आंतरिक बातों का जिक्र करते हैं जहां आम जनता के हकों पर बाहरी हमले हो रहे हों। लेकिन पीएम को स्थानीयतावाद और मैं के फ्रेमवर्क के बाहर निकलकर विश्व की समस्याओं पर बोलने और सोचने की आदत ही नहीं है।

विश्व हमारा है, विश्व के मंच विश्व की समस्याओॆ के लिए हैं, इसके लिए जरूरी है कि पीएम मोदी हिन्दुत्व के मैं और लोकलिज्म से बाहर निकलें, लेकिन उनके संस्कारों को देखकर यही लगता है कि वे लोकलिज्म में ही जीना चाहते हैं।

जगदीश्वर चतुर्वेदी

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