भारत-पाक तनाव : किसके हाथों खेल रहे हैं मोदी

मनोज कुमार झा

भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव लगातार बढ़ता ही चला जा रहा है और लगता है कि किसी छोटे-मोटे युद्ध की परिस्थितियाँ बन रही हैं।
अगर युद्ध होता है तो यह दोनों देशों के शासकों के लिए संजीवनी का काम करेगा।
पाकिस्तान के साथ भारत के रिश्ते कभी सामान्य नहीं रहे, यद्यपि दोस्ती बनाए रखने की कोशिशें भी कम नहीं हुईं।
उल्लेखनीय है कि जब पहली बार भाजपा सत्ता में आई थी और अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने थे, तो उन्होंने पाकिस्तान के साथ दोस्ताना रिश्तों पर जोर डाला था। आडवाणी भी पाकिस्तान से दोस्ताना रिश्ते बनाए रखने के पक्षधर थे।
पर सच्चाई तो यह है कि कांग्रेस के शासन के दौरान भी कभी पाकिस्तान के साथ भारत के संबंध सहज नहीं रह सके। दोनों देशों के संबंधों के बीच बार-बार कश्मीर का सवाल आ जाता है।
अभी हाल में भारत और पकिस्तान के बीच जो तल्खी बढ़ी है, उसके पीछे भी कश्मीर का ही सवाल प्रमुख है। जबकि कश्मीर में जो सरकार है, उसमें भाजपा पीडीपी के साथ शामिल है। लेकिन उसकी भूमिका विध्वंसक किस्म की है।
आज यदि पीडीपी की नेता महबूबा मुफ्ती मुख्यमंत्री के पद पर बनी हुई हैं, तो निश्चित ही अपना ज़मीर बेच कर, क्योंकि कश्मीर में भाजपा के साथ गठबंधन के कारण जनभावना उनके विरुद्ध है।
कतिपय अवसरों पर महबूबा ने भी अपना असंतोष जाहिर किया है, लेकिन यदि वह सत्ता छोड़ती हैं तो वहां केंद्र का सीधा शासन स्थापित होने के सिवा दूसरा कोई विकल्प नहीं रह जाएगा।
बहरहाल, कश्मीर में स्थितियाँ तब से ज्यादा खराब होने लगीं जब वहां कथित आतंकी वुरहान वानी की अर्द्धसैन्य बलों ने हत्या कर दी। वह आतंकी था या नहीं, यह संदिग्ध है। जो भी हो, उसकी हत्या के बाद कश्मीर में जन असंतोष भड़क गया और अर्द्धसैन्य बलों पर लोगों ने हमले शुरू कर दिए। यह एक नई परिस्थिति थी। पहले कश्मीर में कभी ऐसा नहीं हुआ। आम जनता कभी आतंकवादियों के समर्थन में नहीं आई, यद्यपि वह आधी सदी से ज्यादा से भारतीय सैन्य-अर्धसैन्य बलों का, साथ ही पाकिस्तानी घुसपैठिये आतंकियों का जुल्म सहती आ रही है। एक तरफ भाड़े के आतंकी उन पर जुल्म करते हैं, उनकी बहू-बेटियों के साथ बलात्कार करते हैं, वहीं भारतीय सैन्य-अर्द्ध सैन्य बल भी उनकी इज्ज्त से खेलते हैं।
कश्मीरी जनता जुल्म की दोहरी चक्की में पिसने को मजबूर है।
लंबे समय से यह उसके अनुभव में शामिल हो गया है। वहां के लोगों खास कर नवजवानों का भविष्य अंधकार में है। अशिक्षा और बेरोजगारी के साथ दोहरा आतंक झेलना उनकी मानो नियति बन गई है।
बहरहाल, मोदी जी के नेतृत्व में भाजपा ने वहां के लोगों के बहुत सब्ज़बाग दिखाए, बहुत जुमलेबाजी की। पर कश्मीर की जनता भाजपा पर भरोसा नहीं करती। लेकिन विकल्प नहीं होने से और जोड़-तोड़ कर पीडीपी से गठबंधन कर जो टूटा भी और कुछ महीने तक राष्ट्रपति शासन लागू रहने के बाद फिर अस्तित्व में आया, भाजपा ने वहां सत्ता में भागीदारी कर ली।
ऐसा करने के बाद भाजपा ने अपना असली चेहरा दिखाया, जो पीडीपी के लिए भी शर्मनाक हो गया। उसके लिए भी मुंह छुपाना मुश्किल हो गया।
भाजपा के रणनीतिकारों खासकर, अमित शाह ने जो साजिशों की राजनीति करता है और मुसलमानों के खिलाफ घृणा की भावना से प्रेरित है, आतंकियों के खात्मे के नम पर निर्दोष युवकों की हत्या करवानी शुरू कर दी।
परिणामस्वरूप जो जनाक्रोश उभरा वह अभूतपूर्व था।
कश्मीर के इतिहास में इतनी भारी संख्या में आम जनता सेना और अर्द्धसैन्य बलों के दमन के खिलाफ इतने बड़े स्तर पर कभी सड़कों पर नहीं उतरी थी। हथियारबंद जवानों के लिए अपनी जान बचानी भी मुश्किल होने लगी।
कश्मीर में अब तक सबसे लंबा कर्फ्यू लगा। पैलेट गनों से लोगों के शरीर बींधे डाले जाने लगे, जिसका पूरी दुनिया में ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट्स ने विरोध किया।

ऐसी स्थिति में सीमापार से आतंकवादियों का सक्रिय होना स्वाभाविक ही कहा जाएगा।
आतंकवादी वहां लगातार सक्रिय रहे हैं। उनसे सरकारें निपटती भी रही हैं, पर आतंकवादियों का खात्मा करने के नाम पर जब निरीह युवकों को मारा जाने लगा तो जनता कहां तक बर्दाश्त करेगी।
हर बात की हद होती है। सरकार फेल हो गई, यह इस बात से साबित होता है कि उसे दो महीने तक कश्मीर में कर्फ्यू लगाना पड़ा और दमन उसका एकमात्र औजार बना रहा।

इस सबका परिणाम यह हुआ कि कश्मीर की जनता अब भारत सरकार पर भरोसा नहीं करती, न ही उसका भरोसा पीडीपी मुफ्ती सरकार पर रह गया है, पर इसका मतलब तो यह नहीं है कि वह सीमा पार कर आने वाले आतंकियों का समर्थन करते हैं। वे तो आतंकवादियों के शिकार हैं। वे करें तो क्या करें, यह उनकी समझ से बाहर है। पर मोदी सरकार अब कश्मीर के आम नागरिकों को आतंकवादी घोषित कर रही है। यह उसकी फासीवादी नीति है।

मोदी सरकार शुरू से ही कूटनीति के मोर्चे पर फेल रही है।
दरअसल, इसकी अपनी कोई नीति है ही नहीं। मोदी जी ने सत्ता संभालते ही विदेशों की यात्रा कर और वहां रहने वाले भारतीयों से मोदी-मोदी के नारे लगवा कर अपनी बहुत ही हास्यास्पद छवि बना ली। बड़े देशों के कूटनीतिज्ञ समझ गए कि यह आदमी मानसिक तौर पर दिवलिया है और इसेक माध्यम से अपने हित बहुत ही आसानी से साधे जा सकते हैं।
रहे विदेश विभाग के आला अफसर तो उनमें से किसी में इतना दम नहीं कि वह मोदी को सही सलाह दे सके। संभवत: यह उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर भी आता हो और उन्हें डर भी हो कि प्रतिकूल बात करने पर यह शख्स उन्हें सत्ता के केंद्र से बाहर न कर दे। इसलिए मोदी जी ऊटपटांग हरकतें करते रहे। कभी चीनी प्रधानमंत्री को झूला झुलाया, कभी जापानी प्रधानमंत्री के साथ गंगा आरती की तो कभी अमेरिकी राष्ट्रपति को मित्र बराक बराक करते रहे, पर किसी ने इन्हें जरा भी अहमियत नहीं दी, क्योंकि वे इनके मानसिक स्तर को समझ चुके थे और केवल अपना उल्लू सीधा करने की फिराक में लगे रहे।
मोदी जी बिना किसी राजनयिक मर्यादा का पालन किए पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की नातिन की शादी में बिना किसी आमंत्रण के शामिल होकर चले आए और 15 अगस्त को लाल किले से बलूचिस्तान की मुक्ति की बातें करने लगे।

यानी पूरी तरह अप्रासंगिक बातें।
भाजपा के कतिपय नेता कहने लगे कि कश्मीर तो छोड़ो, पाक के कब्जे वाला कश्मीर भी लेकर रहेंगे।
इस तरह की उकसावापूर्ण बातें इन्होंने इसलिए की ताकि घरेलू मोर्चे पर हर मामले में अपनी सरकार की असफलता को छुपा सकें और जनता का ध्यान दूसरी तरफ मोड़ सकें। इसमें ये सफल रहे।
परिणाम अब पाकिस्तान के साथ संबंध बहुत कटु हो चुका है। उड़ी में भारतीय सेना के कैम्पों पर हमले में 18 जवानों के मारे जाने से सेना की सुरक्षा व्यवस्था की भी पोल खुली और पता चल गया कि सेना कितनी अलर्ट रहती है। इसके बाद कभी पाकिस्तान में घुस कर वहां सेना के जवानों के मारे जाने का दावा किया जाता है, जो बाद में झूठा साबित हो जाता है, तो कभी वहां भारतीय सेना द्वारा सर्जिकल ऑपरेशन करने की बात की जाती है, जिसकी सत्यता पर भी सवाल खड़े होते हैं।

यानी झूठ हर तरफ हावी होता चला जा रहा है।
झूठ को सच बना कर पेश किया जा रहा है और यह काम मोदी जी के लिए भारतीय मीडिया का एक बड़ा हिस्सा कर रहा है, जिसने अपनी विश्वसनीयता लगभग खो दी है। यह मोदी जी के हाथों बिका हुआ मीडिया है, जिस पर जनता का भरोसा लगातार खत्म होता जा रहा है।
अब मोदी जी कभी जनरलों के साथ मीटिंग कर रहे हैं, कभी युद्ध की योजना बना रहे हैं, फ्रांस से राफेल के सौदे कर रहे हैं।
मीडिया कहता है कि पाकिस्तान को उसके घर में घुस कर मारेंगे। कुछ विश्लेषकों का कहना है कि मोदी जी काठ के पुतले हैं, वे स्वयं कोई निर्णय ले पाने में असमर्थ हैं और सिर्फ अपने आका अमेरिका के निर्देशों का पालन कर रहे हैं। वह उन्हें जैसे नचा रहा है, नाच रहे हैं।

2019 तो मोदी मुक्त भारत का वर्ष होगा
पाकिस्तान से युद्ध का हौवा खड़ा कर मोदी जी आगामी चुनावों में सफलता पाना चाहते हैं, पर यह उनकी बड़ी भूल है। आने वाले दिनों में उन्हें यूपी समेत उन तमाम राज्यों में हार का सामना करना पड़ सकता हैं जहां चुनाव होने हैं और 2019 तो मोदी मुक्त भारत का वर्ष होगा।
बहरहाल, यह भूलना नहीं चाहिए कि जिस उद्देश्य से साम्राज्यवादियों ने पाकिस्तान का निर्माण किया था, वह आज पूरा हो रहा है। आगे भी पूरा होता रहेगा।
विभाजन साम्राज्यवाद से निर्लज्ज समझौते का परिणाम था। इससे बड़ी ट्रैजिडी विश्व इतिहास में और क्या हुई! आज साम्राज्यवाद कभी पाक को तो कभी भारत को अपने मोहरे की तरह इस्तेमाल कर रहा है।

आतंकवाद का असल बाप तो साम्राज्यवाद ही है।
उसने न जाने कितने आतंकवादी संगठन खड़े किए। साम्प्रदायिकता चाहे बहुसंख्यक हो या अल्पसंख्यक, उसी की पैदाइश है। भूलना नहीं होगा कि एक समय राजीव गांधी भी पाकिस्तान को नानी याद दिला देने की बात कहते थे और आज सुषमा यूएन में तो मोदी देश में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ फ़िल्मी डायलॉगबाजी कर रहे हैं।
वहीं, पाकिस्तानी राजनेता भी भारत से हज़ार साल तक युद्ध करने की बात कह चुके हैं। इससे जनता को सबके लेने की जरूरत है।
पाकिस्तान और हिंदुस्तान की जनता एक है, उसकी संस्कृति एक है और उसकी समस्याएं, दुख-दर्द भी एक हैं, उसकी मुक्ति का रास्ता भी एक है।