पलाश विश्वास
कोलकाता। रविवार को कोलकाता के नजदीक बारासात में निखिल भारत बंगाली उद्वास्तु समिति के कैडर कैंप के सिलसिले में देश भर के कार्यकर्ताओं की बैठक में भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रान्तिकारी व इंडियन रिपब्लिकन आर्मी के संस्थापक और चटगांव विद्रोह के नेता, सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी सूर्यसेन यानी मास्टरदा के पौत्र राजा सेन के मुखातिब होना, आजादी की लड़ाई में क्रांतिकारी जुनून के जज्बे से दिलो दिमाग का सनसना जाना जैसा अनुभव है।
मास्टरदा के पोते राजा सेन कोलकाता में हैं और चटगांव से बेदखल मास्टरदा के सेनानी भी पूंर्वी बंगाल के शरणार्थियों में शामिल हैं। यह उपलब्धि जितना कलेजे को चाक-चाक कर गयी, उससे ज्यादा तसल्ली यह हुई कि इस महादेश के इस दुस्समय में बंगाल के बाहर देश भर में पांच से सात करोड़ बंगाली विभाजन पीड़ित शरणार्थियों को गोलबंद होने की जैसी मार्मिक अपील उनने कर दी।

मास्टर दा सूर्यसेन के पोते की नजर में भारत विभाजन के बाद भी यह महादेश आज भी अखंड भारत है।
वे भारत से अलग हुए अखंड भारत के उन हिस्सों में बसी मनुष्यता के लिए उतने ही छटपटाते हैं, जितने कि मास्टरदा और उनके सेनानी आत्मबलिदान का संकल्प लेते हुए छटपटा रहे होंगे।
राजा सेन ने कहा कि बांग्लादेश में जो अल्पसंख्यक उत्पीड़न के शिकार हो रहे हैं, जो असम में डिटेंशन कैंप में डीलोटर और संदिग्ध विदेशी करार दिये जा रहे हैं या दंगों-फसाद के शिकार हो रहे हैं, वे सारे लोग भारत के नागरिक हैं और शरणार्थियों के लिए कोई आधार वर्ष हो नहीं सकता, क्योंकि वे अखंड भारत के नागरिक हैं। उनके मुताबिक भारत के अल्पसंख्यकों की तरह बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों की जान माल के लिए भी भारत सरकार की जिम्मेदारी है।
मास्टर सूर्यसेन के पोते ने बांग्लादेश की ताजा वारदातों को उतना ही खतरनाक बताया, जितना खतरनाक अल्फा के शिकंजे में फंसे असम के हालात हैं और उनने इस महादेश में अमन चैन के लिए भारतवासियों से अपील की है कि मनुष्य जीवन में एकबार ही मरता है तो इंसानियत के मुल्क को बचाने के लिए जरुरी हुआ तो हमें अपने पुरखों की तरह सर कटाने की नौबत भी आ सकती है और अगर हम इसके लिए तैयार नहीं है तो न देश बचेगा और न इंसानियत का मुल्क, न हम बचेंगे और न हमारे लोग। धर्मोन्मादी कट्टर आतंकवाद सब कुछ जलाकर तबाह कर देगा और हमें जात पांत भूलकर, राजनीति हमारी जो भी हो, इस दुस्समय के लिए गोलबंद होना चाहिए।
निखिल भारत उद्बास्तु समन्वय समिति के अध्यक्ष डॉ. सुबोध विश्वास और महासचिव सुप्रीम कोर्ट के एटवोकेट अंबिका राय ने चेतावनी दी है कि शारणार्थी समस्या सुलझाने के लिए समिति लगातर केंद्र और राज्य सरकारों और संबंद्ध राजनीतिक दलों के साथ निरंतर संवाद करेगी, लेकिन इसके साथ ही असम और बंगाल के बिगड़ते हालात के खिलाफ दिल्ली के जंतर मंतर से लेकर कोलकाता के राजमार्ग तक धरना प्रदर्शन और लोकतांत्रिक आंदोलन का सिलसिला जारी रहेगा। इससे भी अगर बांग्लादेश में अलप्संख्यकों का उत्पीड़न न थमा और असम में पूर्वी बंगाल से आकर बसने वाले शरणार्थियों को विदेशी करार देने की कोशिशें जारी रहीं तो समिति इसका जबरदस्त प्रतिरोध करेगी।

दोनों ने नागरिकता कानून में फौरन संशोधन करके विभाजन पीड़ितों के उत्पीड़न का यह सिलसिला फौरन बंद करने की अपील केंद्र सरकार से की है।
बंगाल राज्य इकाई के अध्यक्ष संदीप विश्वास और तमाम जिला अध्यक्ष और कार्यकर्ता वक्ताओं में शामिल नहीं थे, क्योंकि मुद्दों पर चर्चा होती रही और बंगाल से बाहर से आये तमाम प्रतिनिधियों के उनके राज्यों के हालात बताने का मौका देना था। इसी तरह मेदिनीपुर की खास कार्यकर्ता मिनती गोलदार को भी मंच से बोलने का मौका नहीं दिया जा सका।
इस मौके पर बांग्लादेश की आजादी के बाद बंगबंधु मुजीब की गठित प्रथम संसद की सदस्य श्रीमती कणिका विश्वास खास मेहमान थीं।
समन्वय समिति की ओर से बांग्लादेश के ताजा हालात का ब्यौरा पेश करते हुए साहित्यकार कपिल कृष्ण ठाकुर ने मांग की कि नेहरु लियाकत के समझौते के तहत विभाजन के दौरान खून खराबा रोकने के लिए जैसे पूर्वी पाकिस्तान, पश्चिम बंगाल, असम और त्रिपुरा में अल्पसंख्यकों की जान माल की सुरक्षा के लिए अल्पसंख्यक आयोग का गठन किया गया था, वैसे ही बांग्लादेश और असम में हालात में दोबारा अल्पसंख्यकों और शरणार्थियों की सुरक्षा के लिए भारत सरकार फौरन कदम उठाये और भारत के तमाम नागरिक इसके लिए दबाव डालें।
इससे पहले अरुणाचल की सीमा पर बसे असम, अपर असम और लोअर असमे से आये प्रतिनिधियों नें असम में बार-बार होने वाले दंगों की आपबीती सुनायी और अस्सी के दशक में असम और त्रिपुरा के रक्त रंजित इतिहास के अध्याय खोले। आपबीती बताने वाले त्रिपुरा के शरणार्थी नेता भी थे।
असम में कांग्रेस मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने संदिग्ध विदेशी नागरिक करार देकर विभाजन पीड़ित हिंदुओं और मुसलमानों को हिटलर के नाजी जमाने की तरह डिटेनशन कैंप में रखना शुरु किया, जिसमें दशकों से नौकरी कर रहे शिक्षक और उनके परिजन भी हैं। संदिग्ध होने का नोटिस जारी किया जाता है, लेकिन वह नोटिस किसी तक पहुंचता नहीं है। टार्गेट अल्पसंख्यकों और हिंदू बंगाली शरणार्थियों को नागरिकता साबित करने का कोई मौका दिये बिना, उनकी सुनवाई किये बिना सीधे डीवोटर बनाकर डीटेनशन कैंप में डाल दिया जाता है, जहां उनके कोई नागरिक या मानवाधिकार नहीं होते।

तो अब असम और समूचा पूर्वोत्तर अल्फा के शिकंजे में है जो 1951 के बाद भारत में आये हिंदू ,मुसलमान या भारत के दूसरे राज्यों से असम में बसे किसी को भी विदेशी मानकर उन सबके सफाये पर तुला है।
नागरिकता रजिस्टर का काम पूरा करने के बहाने अस्सी के दशक में अल्फा कार्यकर्ता रहे मौजूदा केसरिया हुक्मरान ने करीब 86 लाख लोगों को विदेशी घोषित करके डीवोटर बनाकर डीटेनशन कैंप में डालने की तैयारी कर ली है और खास तौर पर अल्फा असम में रहने वाले बीस लाख हिंदू शरणार्थियों को विदेशी मानकर उनके सफाय़े का अभियान छेड़ चुका है।
असम के अखबारों और सोशल मीडिया में यह सार्वजनिक अभियान बेहद तेज है। असम के हालात गुजरात के नरसंहार और बांग्लादेश के वर्तमान के मुकाबले किसी रूप में कम भयंकर नहीं हैं।
बंगाल में दलित साहित्य आंदोलन के नेता मशहूर साहित्यकार कपिल कृष्ण ठाकुर, डा.नीतीश विश्वास और नकुल मल्लिक से लेकर मतुआ गवेषक पुष्प बैराग्य, मरीचझांपी नरसंहार के भोगा हुआ यथार्थ शेयर करने वाले उत्तराखंड के डॉ. सुनील हाल्दार, बाबासाहेब अंबेडकर और जोगेंद्र नाथ मंडल की टीम के साथी वयोवृद्ध आदित्य राय ने बांग्लादेश और असम के भयंकर परिस्थितियों के मुकाबले जादि धर्म राजनीति क्षेत्र निर्विशषे सभी भारतवासियों और खासतौर पर देश भर के शरणार्थियों और विस्थापितों की जोरदार गोलबंदी की अपील की है।
इस मौके पर शरणार्थियों, दलितों, पिछड़ों और मुसलमानों के हक हकूक की आवाज उठाने के लिए वैकल्पिक मीडिया और सोशल मीडिया की भूमिका की चर्चा हुई और हमारे लिए बहुतखुशी की बात यह है कि तमाम वक्ताओं ने खुलकर "हस्तक्षेप" की इस दिशा में की जा रही नेतृत्वकारी भूमिका की न सिर्फ सराहना की, बल्कि हस्तक्षेप की हर तरह से मदद करने का निर्णय भी हुआ और बाकी लोगों से सहयोग की अपील की गयी है।
इस मौके पर भारतीय राजस्व सेवा के दो बड़े अधिकारियों अमर विश्वास और बिराज मिस्त्री ने फंडिग की आवश्यकता पर जोर देते हुए स्वच्छ और पारदर्शी वित्तीय प्रबंधन के प्रस्ताव पेश किये, जो पास हो गये और इस पर सख्ती से अमल होगा। तय हुआ है कि कार्यकर्ताओं के समिति के कामकाज,आंदोलन और मीडिया के लिए, भाषा और संस्कृति के लिए और सामाजिक गतिविधियों के लिए केंद्र और राज्य के स्तर पर प्रशिक्षित किया जाएया और शरणार्थियों के संघर्ष का पूरा इतिहास लिखा जायेगा।
इस मौके पर नेताजी मुक्त विश्वविद्यालय के प्राध्यापक मनोशांत विश्वास ने भारत विभाजन के सभी वर्शन को संक्षेप में पेश किया तो संचालक आशीष हीरा ने मरीचझांपी आंदोलन,उसकी उपलब्धियों और विफलताओं का मार्मिक ब्यौरा पेश किया।

डा. नीतीश विश्वास ने मातृभाषा आंदोलन का ब्यौरा दिया तो बंगाल में विभिन्न शरणार्थी कैंपों में पुलिस फायरिंग से बंगाल से बाहर जाने से इंकार करने वाले शरणार्थियों की शहादत को याद किया गया और उनकी याद में मौन रखा गया।
समिति के पूर्व सभापति आशीष ठाकुर ने शिकायत की कि आरक्षण जहां बंगाल के बाहर शरणार्थियों को मिल नहीं रहा है तो वहीं बंगाल में भी आरक्षण से दलितों और पिछड़ों का कुछ भी नहीं मिल पा रहा है। एक दो फीसद लोगों को इसका लाभ हो रहा है, जिनका कोई सामाजिक सरोकार नहीं है। उन्होंने कहा कि ये हालात जब तक नहीं बदलते बाबासाहेब के सपनों के मुताबिक समता और न्याय का लक्ष्य हासिल किया नहीं जा सकता।
इस मौके पर नमोशूद्र विकास समिति के विनय बोस ने शरणार्थियों के आंदोलन को पूरा समर्थन देते हुए कहा कि विभिन्न जातियों के जो सामाजिक संगठन हैं उनके साथ पूर्वी बंगाल में आजादी से पहले जैसे मिलजुलकर नमोशूद्र काम कर रहे थे, भारत में भी यह संगठन वही कार्यभार दलितों और पिछड़ों को एकजुट करने के लिए निभायेगा, ताकि संगठित तौर पर दलितों और पिछड़ों के हकहकूक की लड़ाई ग्रास रूट से संगठित की जा सकें।
इस मौके पर सम्मेलन को दिल्ली के डॉ. विनय विश्वास, उत्तर प्रदेश में समिति के अध्यक्ष आरएन दास, उत्तराखंड के डॉ. सुनील हालदार और किशोर हालदार, मध्य प्रदेश के निवारण विश्वास, छत्तीसगढ़ के अमूल्य बारुई, असम के कृपेश वैद्य और निखिल वैश्य, त्रिपुरा के सजल सरकार और एडवोकेट प्रकाश विश्वास ने भी संबोधित किया।
इस मौके पर खास बात यह कि विभिन्न शरणार्थी संगठनों के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने एकजुटता दिखायी। समयाभाव में मंच से सारे लोग नहीं बोले लेकिन यह एकजुटता अभूतपूर्व है मसलन पश्चिम बंगाल रिपब्लिकन पार्टी के अध्यक्ष मृत्युंजय मल्लिक अपने कार्यकर्ताओं के साथ हाजिर थे, जो शरणार्थी और आयोजनों में पिछले पच्चीस साल से लगातार मौजूद होते रहे हैं।

इसी तरह बांग्ला दलित साहित्य की नारीवादी कवियत्री व मतुआ कल्याणी ठाकुर पूरे वक्त मौजूद थीं। वे मंचों पर कम बोलती हैं और लिखती ज्यादा हैं।
इसी तरह सपत्नीक बामसेफ के कार्यकर्ता बिजन हाजरा भी मौजूद थे तो बंगाल में शरणार्थी और दलित आंदोलन के तमाम बुजुर्ग और जवान चेहरे साथ साथ थे।