आप का घोषणापत्र का सार- एक विश्लेषण
सूर्योदय पासवान को भीम-सलाम
मित्रों , दिल्ली विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दलों की मुद्दविहिनता देखकर मैं इतना स्तब्ध था कि कुछ कहते नहीं बन रहा था। लिहाजा मीडिया में चुनावी जंग की खबरें देखकर सिर नोचता रहा। किन्तु आज के अख़बारों में जब दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए जारी आप का घोषणापत्र का सार पढ़ा तो यह टिप्पणी लिखने से खुद को नहीं रोक पाया।
वैसे तो मैं केजरीवाल को भारतीय राजनीति का निकृष्टतम तत्व मानते हुए बराबर उसके सम्मोहन से लोगों को मुक्त रहने की अपील करता रहा हूँ। किन्तु आज जब उसकी पार्टी का घोषणापत्र पढ़ा तो लगा ‘आप’ मेरे अनुमान से भी बहुत गयी गुजरी पार्टी है। इसके पहले तो केजरी और उसके साथी भ्रष्टाचार के कारण और निवारण की सही जानकारी के बिना भी अंततः ‘भ्रष्टाचार’ को सबसे बड़ा मुद्दा बताते रहे। किन्तु इस बार तो यह मुद्दा भी सिरे गायब दिख रहा है। अब उसकी जगह आधी दर पर बिजली और मुफ्त का पानी ही आप वालों के लिए बड़ा मुद्दा बन गया है। आधी दर पर बिजली और मुफ्त पानी के साथ ही एनजीओ वालों ने झुग्गी-झोपड़ी में रहने वालों को पक्का मकान देने का वादा किया है। इसके बाद उनका सबसे अहम् एलान दिल्ली में 15 लाख सीसीटीवी कैमरे लगाने का है। इसके जरिये वे दिल्ली की महिलाओं का जीवन निरापद करना चाहते हैं।
मित्रों पता नहीं ‘आम आदमी पार्टी‘ के घोषणापत्र आपको कैसा लगा किन्तु मुझे अच्छा लगा। कारण, इस घोषणापत्र ने एनजीओ गैंग के सरगना के प्रति मेरी नफरत में और इजाफा कर दिया। मैं इस सरगना को भारतीय लोकतंत्र के लिए सबसे घातक तत्व इसलिए मानता रहा हूँ क्योंकि घोर सवर्णवादी कजरी के एजेंडे में आर्थिक और सामाजिक गैर-बराबरी के खात्मे की कोई जगह है ही नहीं। यह सवर्णों का हित पोषण करने में सवर्णवादियों की ‘ए’ और ‘बी’ टीम भाजपा और कांग्रेस से भी काफी आगे है। आप का घोषणापत्र यह साबित कर दिया है कि कांग्रेस-भाजपा का अनुसरण करते हुए एनजीओ गैंग भी भीख और राहतनुमा घोषणाओं के सहारे चुनाव जीतना चाहता है। आर्थिक और सामाजिक गैर-बराबरी का खात्मा अगर अन्य सवर्णवादी दलों के एजेंडे में कुछ है भी तो आपके घोषणापत्र में वह ढूंढते रह जायेंगे। ऐसे में कहा जा सकता है एनजीओ गैंग का घोषणापत्र भारतीय लोकतंत्र के ध्वंस की दिशा में एक और बड़ा कदम है। कल के अख़बारों में दिल्ली की सत्ता की प्रबल दावेदार भाजपा के घोषणापत्र की भी झलक शायद देखने को मिलेगी। अगर मोदी-राज में भाजपा के चाल-चलन को ठीक समझ पाया हूँ, तो दावे के साथ कहूँगा कि उसके घोषणापत्र में भी आर्थिक और सामाजिक विषमता के खात्मे का कोई नक्शा नहीं होगा। ऐसे में मुझे संख्यानुपाती भागीदारी पार्टी की फिर याद आ रही है। वर्तमान भारत में यही एक छोटी सी पार्टी है जो भारतीय लोकतंत्र को ध्वंस से बचाने के लिए सभी सामाजिक समूहों के संख्यानुपात में अवसरों के बंटवारे की घोषणा किये जा रही है। हालांकि यह पार्टी दिल्ली विधानसभा चुनाव में कम्पीट नहीं कर रही है, पर बिहार के सीमित क्षेत्र में यह लगातार लोकतंत्र के सबलीकरण की दिशा में सही मुद्दे मुद्दे उठा रही है। पिछले लोकसभा चुनाव में जिस तरह तमाम दलों ने आर्थिक और सामाजिक विषमता के खात्मे से आंखे मूंदे भीख और राहतनुमानुमा घोषणाओं पर निर्भर रहकर चुनाव लड़ा था उससे मुझे ‘ लोकसभा चुनाव :2014 : भारतीय लोकतंत्र के ध्वंस की दिशा में एक और कदम’ जैसी 184 पृष्ठीय पुस्तक निकालने के लिए बाध्य होना पड़ा था। उस किताब के पृष्ठ 77-79 पर मैंने स्थापित दलों के लोकतंत्र विरोधी कर्मसूचियों को देखते हुए ‘सूर्योदय पासवान को भीम सलाम‘ शीर्षक से एक लेख भी छापा था। आज एनजीओ गैंग सहित दिल्ली विधानसभा चुनाव में उतरे बाकी दलों के लोकतंत्र विरोधी घोषणाओं को देखते हुए संख्यानुपाती भागीदारी पार्टी के सूर्योदय पासवान की फिर बहुत याद आई। लिहाजा ‘सूर्योदय पासवान को भीम सलाम वाले’लेख के आखरी दो पैरे आप मित्रों के लिए फिर पोस्ट कर रहा हूँ। यह लेख मैंने 23 अप्रैल, 2014 को लिखा था। आप उस अंश को एक बार फिर देखे और भारतीय लोकतंत्र की सलामती के लिए कुछ कदम उठायें।
‘’पटना से भरतपुर की यात्रा के दरम्यान लगातार वर्तमान लोकसभा चुनाव को लेकर सोचता रहा और सोचकर परेशान होता रहा। पता नहीं विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के महापर्व को लेकर आप क्या सोच रहे हैं। मेरे लिए तो यह चुनाव डराने वाला लग रहा है। कारण, इस चुनाव में लोकतंत्र के विस्फोटित होने लायक कुछ और सामान स्तुपीकृत हुआ है। ऐसा इस लिए कि भीषणतम विषमता के चलते बारूद की ढेर पर पड़े लोकतंत्र की सलामती की उपेक्षा फिर तमाम राजनीतिक दलों ने कर दिया। आर्थिक और सामाजिक गैर-बराबरी, जिसके निकटतम समय में खात्मे का आह्वान संविधान के प्रमुख शिल्पी बाबासाहेब ने 25 नवम्बर, 1949 को किया था, के प्रति राजनीतिक दलों को कोई चिंता नहीं है। आर्थिक और सामाजिक विषमता के खात्मे के लिए बाबासाहेब साहेब द्वारा दी गयी कसौटी के आधार पर मैं पंडित नेहरु, इंदिरा गाँधी, राजीव गाँधी, नरसिंह राव, अटल बिहारी वाजपेयी, जेपी, ज्योति बसु, मनमोहन सिंह इत्यादि को विशुद्ध लोकतंत्र विरोधी मानता हूँ। कारण इन कथित महान नेताओं ने जिस तरह विषमता से आंखे मूंदे रखकर विश्व में सर्वाधिक विषमता की जमीन भारत में तैयार किया, उसके आधार पर उन्हें लोकतंत्रप्रेमी कहना लोकतंत्र का मजाक से भिन्न कुछ कहा ही नहीं जा सकता। उन्हीं के नक्शेकदम पर उनके वर्तमान अनुसरणकारी भी चल रहे हैं। इनके विषमता के खात्मे के एजेंडे पर आने के लिए बहुजन बुद्धिजीवियों द्वारा वर्षो से जो अक्लांत प्रयास किया गया, उसका कोई खास असर ही नहीं हुआ। उन्होंने प्रकारांतर में सोलहवीं लोकसभा चुनाव में लोकतंत्र के ध्वंस का सामान ही जमा किया है। मुख्यधारा के बुद्धिजीवियों को तो आर्थिक और सामाजिक विषमता से कुछ लेना-देना नहीं है, ऐसे में वे मतदान का प्रतिशत मात्र बढ़वाकर ख़ुशी से नाच रहे हैं। दोष सिर्फ शक्तिसंपन्न समाज के हितों के पोषक राजनीतिक दलों और बुद्धिजीवियों का नहीं है, बहुजनवादी दल भी विषमता की समस्या से पूरी तरह आंखे मूंदे हुए हैं। ऐसे में लोकसभा चुनाव-2014 तो मेरे लिए तो प्रहसन बनकर रहा गया है। यही कारण है मैंने एकाधिकार बार अपने लेखों में ‘नोटा’ पर बटन दबाने का आह्वान किया है।
मित्रों, प्रहसन बन चुके इस चुनाव में थोड़ी राहत मिली है तो ‘ संख्यानुपात भागीदारी पार्टी ‘ से। देश की सबसे बड़ी समस्या शक्ति के स्रोतों (आर्थिक-राजनीति और धार्मिक)पर सदियों के विशेषाधिकारयुक्त व सुविधासंपन्न अल्पजनों का 80-85 प्रतिशत कब्ज़ा है। इस कब्जे को तोड़कर शेष वंचित समाजों को शक्ति के स्रोतों में शेयर सुलभ कराने में ही लोकतंत्र की दीर्घजीविता निहित है। भारत के शक्तिसंपन्न तबकों की नुमाइंदगी करने वालों की बात जाने दें, विपन्नों की लड़ाई लड़ने वाले वाले भी उनको वाजिब हिस्सेदारी दिलाने में रूचि नहीं ले रहे हैं। ऐसे में संख्यानुपात पार्टी का वजूद में आना सोलहवीं लोकसभा चुनाव की सबसे सुखद घंटनाओं में एक रहा। हम इसके लिए एकनिष्ठ आंबेडकरवादी सूर्योदय पासवान को भीम-सलाम बजाते हैं जिन्होंने अत्यंत अभावों में रहकर भी 4 जगह से लोकसभा प्रार्थी खड़ा कर विषमतावाद की आंधी के खिलाफ तनकर खड़ा होने का जज्बा दिखाया। हम उनके जज्बे को सलाम करते हैं। उन्होंने पाटलिपुत्र, पटना साहिब, मुंगेर , नालंदा से कैंडीडेट खड़े किये। खगड़िया से तकनीकी कारणों से प्रार्थी खड़े होते-होते रह गया और भागलपुर से खड़े बिरेन जी अंत में सरेंडर कर दिए। सूर्योदय जी एमपी इलेक्शन की बात भूलकर अब बिहार विधानसभा की तैयारियों में जुट गए हैं। सूर्योदय जी और प्रमोद निराला जी आगे बढ़ें, मुझ जैसे लोग आपके साथ हैं। ’
एच. एल. दुसाध
एच. एल. दुसाध, लेखक प्रख्यात बहुजन चिंतक व बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।

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