9 मार्च, हिन्दी भवन, नई दिल्ली। “भाषा एक संबंध है जो इतिहास, भूगोल सबकी दूरियों को पाट देती है।“
यह उद्गार हिंदी के प्रख्यात आलोचक एवं साहित्य अकादमी दिल्ली के अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने व्यक्त किए। वे शुक्रवार शाम यहां हिंदी भवन में सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’ के कहानी संग्रह ‘सरहदों के पार’ के विमोचन के अवसर पर मुख्य अतिथि के तौर पर साहित्य प्रेमियों को संबोधित कर रहे थे।
श्री तिवारी ने कहा कि दिल्ली अब साहित्य की भी राजधानी हो गई है। छोटे शहरों से रचनाकार की ओर यह सोचकर रुख करते हैं कि जब तक वे दिल्ली में कुछ नहीं करेंगे तब तक उनका प्रमोशन नहीं होगा जबकि दिल्ली के लोग उनकी उपेक्षा करते हैं। इसके विपरीत सत्यता यही है कि छोटे शहरों में ही उत्तम साहित्य सृजन हो रहा है।
श्री तिवारी ने कहा कि सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’ की कहानियों को देखने से लगता है कि उनकी कहानियाँ समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर करती हैं। उन्होंने आगे कहा कि शरद आलोक जी को किसी आलोचक से अपनी न भूलने वाली सजीव कहानियों के लिए प्रमाणपत्र लेने की आवश्यकता नहीं है। भीतर से जो चीज़ निकलती है वह महत्वपूर्ण होती है और सहज भी होती है, शरद आलोक की कहानियां दिल से निकली हैं।
सुप्रसिद्ध कहानीकार नासिरा शर्मा ने सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’ की कहानियों की चर्चा करते हुए कहा उन्होने लेखन में ईमानदारी दिखाई है। उन्होंने अपनी कहानियों का अन्त स्वाभाविक किया है न कि आमतौर पर फिल्म की तरह जबर्दस्ती उसे असहज समाप्त नहीं किया है। उन्होंने आगे कहा कि सेक्स का वर्णन आज कहानी के स्तर को गिरा रहा है वहीं बिना सेक्स का वर्णन किए इनकी अनेक कहानियाँ याद रहने वाली हैं। ‘मदरसे के पीछे’ में अफगानिस्तान के नारी विमर्श, ‘सरहदों से दूर में’ खुर्द लड़की बड़े संवेदनशील वर्णन से उसे उत्कृष्ट कहानी में उन्हें खड़ा कर देती हैं।
सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’ ने कहा कि ‘विदेशों में हिन्दी के पाठकों की संख्या बढ़ रही है। भारतीय अविभावकों ने अपने बच्चों को मात्रभाषा के रूप में हिन्दी, पंजाबी पढ़ाना शुरू किया है जिससे हिन्दी रोजगार की भाषा बन रही है। वह दिन दूर नहीं जब विदेशों में रचे जा रहे हिन्दी साहित्य को विदेशों में समुचित स्थान मिलेगा।
विनोद बब्बर ने कहा कि उन्हें उनकी कहानी ‘आदर्श एक ढिंढोरा’ का एक संवाद बहुत सामयिक है ‘आदर्श मदिरा की तरह है कम पियो तो आनंद और अधिक पियो तो बदहज़मी।‘
हरी सिंह पाल ने कहा कि उनकी कहानियों में पात्रानुसार भाषा का प्रयोग किया गया है। ‘वापसी’ और ‘लाहौर छूटा अब दिल्ली न छूटे’ कहानी में पंजाबी भाषा का पुट कहानी को ज्यादा सजीव बनाता है।
जामिया मीलिया के उबईदुर रहमान हाशमी ने कहा कि सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’ एक सोशल एक्टिविस्ट हैं और उन्होने अपनी कई कहानियों में सामाजिक न्याय की बात उठाई है।
सत्येन्द्र कुमार सेठी ने कहा कि मैंने ‘शरद आलोक’ को विदेशों में रचनाएँ पढ़ने के बाद हाथोंहाथ उनकी अनेक पुस्तकें बिकते देखा है। इनकी कुछ कहानियों में अंधविश्वास के लिए मानवतावादी जागृति दिखाई देती है। शरद आलोक जी के आदर्श लेखकों में प्रेमचंद और नाटकों में हेनरिक इबसेन हैं जिनके अनेक नाटकों का लेखक ने अनुवाद भी किया है।
शुभकामनायें भेजने वालों में ओम थानवी, संगम पाण्डेय, प्रेम भारद्वाज और डॉ विद्या विंदु सिंह थीं।
उपस्थित होने वाले लेखकों में डॉ श्याम सिंह शशि, डॉ गिरिराज शरण अग्रवाल, शेष नारायण सिंह, किशोर श्रीवास्तव, अमलेन्दु उपाध्याय, भरत तिवारी, प्रीति शर्मा, अंजना एवं रंजना सेठी और पूनम माटिया मुख्य थे।