मसीहुद्दीन संजरी

भीम सेना पर मायावती के बयान को गंभीरता से लेने की ज़रूरत है। संघ/ भाजपा हमेशा ऐसे मौकों की तलाश में रहते हैं जिससे वह अपने विरोधियों पर हिंसक हमले का तर्क गढ़ सकें और पुलिस प्रशासन में उनके लोग उसी नाम पर कानून का दुरूपयोग करें।

भीम सेना अभी तो सही तरीके से प्रतिक्रियावाद समूह के रूप में भी नहीं उभर पाई है।

जिस तरह से प्रदेश सरकार और प्रशासन का रूख दलित सेना को लेकर है उससे लगता है कि वह इसे बजरंगदल या विश्व हिंदू परिषद सरीखा कोई संगठन समझती है। हालांकि वह खूब जानते हैं कि दलित सेना में दंगा फसाद करने या कानून को ठेंगा दिखाने की वैसी क्षमता बिल्कुल भी नहीं है। फिर पुलिस प्रशासन द्वारा उसे इतना महत्व देने के पीछे की साज़िश को समझने की कोशिश ज़रूर करनी चाहिए। हालांकि इस सम्बंध में मायावती की प्रतिक्रिया भी समय से पहले आती हुई प्रतीत होती है। हो सकता है कि उनके पास इस तरह की कोई खबर हो या अपनी राजनीति को खतरा समझकर उन्होंने यह बयान दिया हो। लेकिन भीम सेना का अचानक उभार और फिर जंतर मंतर पर बहुत कामयाब प्रदर्शन अन्ना के आन्दोलन की याद दिलाता है।

वैसे भी बहुजन राजनीति को दफन करना भाजपा के एजेंडे में सबसे ऊपर है क्योंकि उसके सपने के रामराज्य में मुसलमानों की तरह यह समाज भी फिट नहीं बैठता।