भुखमरी से साफ इंकार-सत्ता की राजनीति को विकास महोत्सव में इसकी कोई परवाह ही नहीं
भुखमरी से साफ इंकार-सत्ता की राजनीति को विकास महोत्सव में इसकी कोई परवाह ही नहीं
भुखमरी से साफ इंकार
बंगाल में चावल उत्पादकों की भुखमरी से साफ इंकार किया जाता रहा है।
बंगाल में बंद कलकारखानों में दम तोड़ती जिंदगी के सच से इंकार किया जाता रहा है।
बंगाल में चाय बागानों से निकलते मृत्यु जुलूसों सको दशकों से नजरअंदाज किया जाता रहा है।
सुंदरवन इलाके में विधवाओं की बस्तियों से, सीमा क्षेत्रों में औरतों, विदेशी मुद्रा, सोना और नशा के फलते फूलते कारोबार से इंकार किया जाता रहा है।
इन तमाम परिस्थितियों में सारी राजनीति इन्हीं क्षेत्रों में माफिया राज के शिकंजे में है और आम जनता की कोई सुनवाई नहीं है।
हिमघर पर्याप्त है नहीं, जितने हैं, वहां भी राजनीति और माफिया का वर्चस्व है।
नतीजतन बंपर आलू उत्पादन की कीमत बतौर जनपदों में मौतों की वर्षा हो रही है और सत्ता की राजनीति को विकास महोत्सव में इसकी कोई परवाह ही नहीं है।
कामरेड ज्योति बसु के अवसान पर बंगाल के खेतों, गांवों और जनपदों को कोलकाता में समाहित करने के लिए जो विषवृक्ष रोपे जाते रहे हैं, उनके फल अब तैयार हैं।
कुपोषण और भुखमरी और किसानों की थोक आत्महत्याओं के सही आंकड़े कभी नहीं मिलते हैं।
तथ्यों को झुठलाकर बाल स्वास्थ्य के जिंगल से महमहाता हुआ यह देश हैं।
भिन्न ग्रह का कोई प्राणी अगर भारतीय टीवी चैनलों के खुशबूदार विज्ञापनों और भारतीय फिल्मोंं को गलती से देखता रहे, तो उसे यही लगेगा कि इस धरती पर न कोई काली स्त्री है और न कोई अस्वस्थ स्त्री है। हर स्त्री की कदकाठी एकदम नाप एक मुताबिक गढ़ी हुई हैं। हर स्त्री गोरी है। हर स्त्री सुखी संपन्न है और या सास या बहू बनकर दुनिया पर राज कर रही है, जिसके जीवन में जीवन साथी बदलने और नये पुराने संगी के साथ तालमेल बिठाने के अलावा और परिवार में अपना वर्चस्व बहाल रखने के अलावा रोजमर्रे की जिंदगी की कोई समस्या नहीं है।
जैसे हमारी सारी स्त्रियां फैशन कांशस गोरी लंबी छरहरी कामकाजी हैं और हमारे खेतों, खलिहानों और खदानों में, रोजगार कीभट्ठियों में, गंदी बस्तियों में, बेरहम सड़कों पर कोई स्त्री है ही नहीं।
जैसे यह सारा देश नई दिल्ली, नये, कोलकाता, नवी मुंबई , बंगलूर जैसे चमचामाता शहर है, जहां न धुआं है, न कोई मेहनतकश जिंदगी है, न उनके चेहरे पर पसीना कहीं है और उसकी खूबसूरती संगीतबद्ध काव्यधारा में गोबर माटी की कोई महक है।
जैसे खूबसूरत विदेशी लोकेशन ही भारत का नैसर्गिक सौंदर्य है और फिल्मी नायिकाओं के गाल की तरह दमकते राजमार्गों के आस पास न कोई खेत हैं, न कोई बस्ती है और न इंसानियत कहीं है।
पलाश विश्वास


