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वैश्वीकरण शब्द को विश्व की संस्कृतियों, अर्थव्यवस्थाओं तथा राज व्यवस्थाओं का एक दूसरे के ऊपर पड़ने वाले प्रभावों जिसमें सात्मीकरण एवं अलगाव दोनों सम्मिलित हैं, के क्रम में समझा जा सकता है। वैश्वीकरण के सुविधानुसार कई पर्याय बना दिये गये हैं, जिसमें भूमण्डलीकरण और उदारीकरण प्रमुख हैं।

प्रसिद्ध दार्शनिक ज्या बोद्रिला वैश्वीकरण और भूमण्डलीकरण में अन्तर करते हुए कहते हैं कि

‘‘वैश्वीकरण का सम्बन्ध मानवाधिकार स्वतंत्रता, संस्कृति और लोकतंत्र से है। वहीं भूमण्डलीकरण प्रौद्योगिकी, बाजार, पर्यटन और सूचना से ताल्लुक रखता है।’’

उदारीकरण का तात्पर्य प्रमुखतः अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से है, जिसमें सीमा-शुल्क में भारी कटौती की जाती है ताकि विदेशी सामान सस्ते दरों पर देश में बिक सके। राज्य मौलिक अधिकारों के माध्यम से नागरिक अधिकारों की रक्षा की गारण्टी देता है, अनुच्छेद -21 में प्रदत्त जीवन सुरक्षा का अधिकार आपातकाल के दौरान भी नहीं हटाया जा सकता। एक विश्व अर्थव्यवस्था की दिशा में कार्यरत वैश्वीकरण की प्रक्रिया बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के माध्यम से राज्य को कमजोर करती है।

ये कम्पनियाँ अपने मुनाफे के लिए एक तरफ राज्य की जैव विविधता एवं पर्यावरण का शोषण करती हैं, दूसरी ओर कमजोर मानवाधिकार कानूनों के कारण स्थानीय व्यक्तियों की स्वतंत्रताओं का हनन करती हैं। वस्तुतः विश्व वित्त बाजार राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं के नियंत्रण से काफी हद तक बाहर है। इससे राज्य, समुदाय एवं व्यक्ति की शक्तियों एवं स्वतंत्रताओं का क्षरण हुआ है। राज्य एकपक्षीय बनता जा रहा है, वह बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के हितों का प्रतिनिधित्व तो कर रहा है किन्तु नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करने एवं उनके हितों के प्रतिनिधित्व में असफल हो रहा है।

ठीक यही स्थिति सांस्क़ृतिक तथ्यों से जुड़ी है संस्कृति सापेक्ष होती है अर्थात् दूसरी संस्कृति की तुलना में

किसी और संस्कृति को अच्छा और बुरा नहीं कहा जा सकता है। किन्तु वैश्वीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें वृहद परम्परायें, लघु परम्पराओं को दबाने का काम करती है।

मीडिया एवं उपनिवेशवादी ताकतों के सहारे स्थानीय संस्कृतियों को उपेक्षणीय बना दिया जाता है, जैसे भारत में अभिजात्यवर्ग या उच्चमध्यमवर्गीय घरों में लोकगीतों का गाया जाना या अन्य सांस्कृतिक तथ्यों को लेकर किया जाने वाला उपेक्षणीय व्यवहार सांस्कृतिक असामन्जस्य क्षेत्रीय संघर्ष को जन्म देता है।

डॉ. पवन विजय


डॉ. पवन विजय ग्रेटर नोएडा में समाजशास्त्र पढ़ाते हैं एवं एक्टिविस्ट हैं।

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