हिन्दू तालिबान-50
भंवर मेघवंशी
अन्ना टीम लोकतंत्र की भले ही बड़ी बड़ी बातें करती रही हो लेकिन उसका स्वयं का चरित्र ही कभी लोकतान्त्रिक नहीं रहा। उन्हें अपनी स्वस्थ आलोचना भी कभी सहन नहीं हुयी। जब उनके जन लोकपाल और अन्ना अनशन को लेकर लोगों ने लिखना और बोलना शुरू किया तो टीम अन्ना की ओर से साफ तौर पर कहा गया कि जिन जिन समाचार पत्रों और मीडिया हाउसेस ने अन्ना आन्दोलन के खिलाफ लिखा या बोला है, उनकी सूची तैयार कर ली गयी है, जल्दी ही इन्हें नोटिस भेजे जायेंगे। यह गांधीवादी अन्ना के आन्दोलन का फासीवादी लक्षण था। उस सूची में मैं भी शामिल था। वैसे तो मैं प्रारम्भ से ही अन्ना के पूरे आन्दोलन पर प्रश्न उठाते हुए निरंतर लिख रहा था, लेकिन जैसे-जैसे टीम अन्ना के लोग देवत्व को प्राप्त हो कर महान बनने लगे उन्हें सवाल अखरने लगे। जब संघ से उनके सरोकारों की बात जाहिर की गयी तो वे बौखला गए। इस सम्बन्ध में लिखा गया मेरा आलेख कई जगहों पर प्रकाशित हुआ, लेकिन सबसे पहले इसे अमलेन्दु उपाध्याय द्वारा सम्पादित होने वाले हस्तक्षेप डॉट कॉम ने पब्लिश किया, सो उसी को आधार बना कर अन्ना के अंध भक्तों ने रालेगन सिद्दी में एक प्रस्ताव पारित कर घोषित किया कि मेरे विरुद्ध कानूनी कार्यवाही की जायेगी। इस बाबत नामजद समाचार भी कई राष्ट्रीय समाचार पत्रों में प्रकाशित हो चुकने के बाद मैंने काफी समय तक कानूनी नोटिस का इंतजार किया, पर वह नहीं मिला।
नोटिस मिलने से पहले ही नोटिस देने वाले मिल गए
हुआ यह कि 5 नवम्बर 2011 को अन्ना टीम के सदस्य प्रशांत भूषण लोकतंत्र शाला भीम में लोकपाल पर बात करने के लिए आये। जब उनका सत्र चला तब मैं किसी गाँव में था। पहुंचते-पहुंचते केवल सवाल-जवाब का दौर बचा था, जहाँ एक किसी साथी ने संघ परिवार की मदद लेने के बारे में उनसे सवाल किया, जिसका जवाब देते हुए भूषण ने कहा कि – ‘आर एस एस एक साम्प्रदायिक संगठन है, जिसका समर्थन हमें आन्दोलन में मिला है, मगर वह निस्वार्थ एवं ईमानदार लोगो का संगठन है।’ इसके पश्चात प्रतिरोध डॉट कॉम के संपादक पाणिनी आनंद ने यह कहते हुए कि लोकपाल पर चौथा पक्ष दलित बहुजन बुदिजिवियों का भी है, हम आप सबको भंवर मेघवंशी द्वारा सम्पादित डायमंड इंडिया का लोकपाल विशेषांक दे रहे हैं, ताकि उनका पक्ष भी सबको पता चल सके। हमारे साथियों ने डायमंड इंडिया का अंक सबको दिया, आर टी आई मंच जयपुर के सदस्य मुकेश गोस्वामी ने प्रशांत भूषण को भी उक्त अंक की प्रति दी। उन्होंने पूछा –इसका संपादक कौन है ? मुकेश जी ने बताया कि भंवर मेघवंशी, तो प्रशांत भूषण बोले– मुझे उनसे मिलना है।
इसके बाद प्रशांत और मैं सभा भवन के बाहर आमने सामने हुए। उस वक़्त वहां पर काफी लोग मौजूद थे, संयोग से एक कैमरामेन भी वहां था, जो सारी बात को रिकॉर्ड कर रहा था। प्रशांत भूषण ने आते ही नाराज़गी के साथ कहा कि– यह तुमने क्या लिख दिया कि अरविन्द आर एस एस का आदमी है !.मैंने कहा कि अरविन्द संघ का व्यक्ति है, यह तो नवज्योति अख़बार की लीड न्यूज़ है, मैंने तो सिर्फ यह लिखा है कि अन्ना का आन्दोलन संघ परिवार की कार्य योजना का हिस्सा है। इस पर भूषण और भड़क गए, वो जोर से बोले कि अन्य अख़बार क्या लिख रहे हैं, इससे हमें कोई मतलब नहीं है, पर तुमने उस खबर को रिप्रोडुएस कैसे कर दिया ? मैंने कहा– इसमें बुराई क्या है ? हर कोई लिख रहा है, केवल मैं ही नहीं हूँ जो आर एस एस से उनके संबंधों पर लिख रहा हो। प्रशांत बहुत गुस्सा हो गए और उन्होंने धमकी वाले अंदाज़ में कहा –तुम नहीं जानते कि हम तुम्हारे खिलाफ क्रिमिनल केस करेंगे। मैं भी भिड़ने के मूड में ही था, मैंने कहा कि– वैसे तो आप मुझे मानहानि का नोटिस भी भेजने वाले थे, मगर अभी तक तो नोटिस मिला नहीं ? इतना सुनना था कि गांधीवादी अन्नावादी विद्वान अधिवक्ता प्रशांत अशांत हो गए और नाराज़गी से कांपते हुए उन्होंने तीन बार कहा –नोटिस अब आएगा, अब तो आएगा, अब तो आएगा ही। मैंने भी कह दिया– भेज देना, भेज ही देना। अब तो भेज ही देना।
मामला बढता देख कर बीच-बचाव करने साथी पंहुच गए, वे प्रशांत भूषण को मेस की और ले गए और मामला तात्कालिक रूप से शांत हो गया। लेकिन मुझे मालूम था कि प्रशांत भूषण दिल्ली पंहुचते ही नोटिस रवाना करेंगे। हुआ भी यही।उन्होंने जाते ही यह सद्कर्म किया और एक हफ्ते में ही नोटिस मिल गया, जिसमें अन्ना हजारे के आन्दोलन का साम्प्रदायिक चरित्र नामक लेख के लिए मुझसे माफ़ी मांगने को कहा गया, अन्यथा मानहानि का मुकदमा करने की धमकी दी गयी। मैंने अपने वरिष्ठ साथियों से राय मशवरा किया, सब लोगों से सार्वजानिक रूप से भी पूछा कि क्या मुझे माफ़ी मांग लेनी चाहिए ? सबने एक स्वर में इसे अस्वीकार कर दिया। तब हमने उक्त कानूनी नोटिस का जवाब देने की बात सोची, मैं नोटिस लेकर राजस्थान के सुप्रसिद्ध मानव अधिकार कार्यकर्त्ता, साहित्यकार और अधिवक्ता प्रेम कृष्ण शर्मा के यहाँ पंहुचा, उन्होंने प्रशांत भूषण का नोटिस पढ़ा और एक जोरदार जवाब उन्हें भेज दिया, जिसमें साफ लिखा गया कि माफ़ी मांगने का तो सवाल ही नहीं उठता है। उक्त जवाब का जादुई असर रहा, फिर ना तो और कोई नोटिस मिला और ना ही मानहानि का मुकदमा ही हुआ।
बाद में टीम अन्ना मुझे भूल गयी और राजनीति की राहों पर चल निकली। शीघ्र ही आम आदमी पार्टी बन गयी और अन्ना वहीँ वापस पंहुच गए जहाँ से लाये गए थे। टोपी पर अब मैं अन्ना मांगता के बजाय मुझे अरविन्द चाहिए या मुझे जन लोकपाल चाहिए जैसे जुमले आ गए। ऊपर टोपी और हाथ में झाड़ू लिए भारत का मध्यम वर्ग राजनीति के ज़रिये देश को साफ करने निकल पड़ा। चुनाव की रणभेरी बज चुकी थी, दिल्ली के चुनाव के दौरान हम लोग दिल्ली गए, तब हमारा आकलन था कि या तो आप को बहुत कम सीट मिलेगी या बहुमत ही मिल जायेगा, क्योकि दिल्ली में 15 वर्षों से कांग्रेस सत्तासीन थी, जिस पर कई प्रकार के आरोप लगाये जा चुके थे, वहीँ डीऍमसी में भाजपा बैठी थी, जिससे भी जनता त्रस्त थी, हर हाल में तीसरे विकल्प की तलाश जनता को थी, अरविन्द केजरीवाल लम्बे समय से दिल्ली में कार्यरत थे ही, उनके तमाम अभियान भी यहीं पर चले। मीडिया ने उनकी महानायक की छवि बना ही रखी थी, जिसके चलते दिल्ली की जनता ने उन पर भरोसा जाहिर किया और सरकार बनाने का मौका उन्हें मिल गया। मगर उनके गैर राजनितिक तौर तरीके और अपरिपक्व निर्णय उनके लिए घातक साबित हुए। जनता से पूछ कर सरकार बनाने वाले केजरीवाल बिना जनता से पूछे ही इस्तीफ़ा दे आये और अपने जीवन की सबसे महत्वपूर्ण भूल कर बैठे।
... खैर, इन सब बातों पर भी मैं निरंतर लिखता रहा, अब तक का लिखा हुआ एक किताब जितना हो गया तो मैंने ‘आप का सच‘ नाम से उसे प्रकाशित करने की घोषणा कर दी, इस पुस्तक के कुछ अंश सोशल मीडिया पर भी रिलीज किये गए। जिन्हें पढ़ कर भीलवाड़ा के कुछ उद्योगपति आगे आये और उन्होंने इस पुस्तक की प्रतियाँ खरीदने में रूचि जाहिर की। मेरा माथा ठनका, मुझे कुछ दाल में काला लगा, ये वो लोग थे जो बिना मतलब के किसी को एक पैसा भी मदद नहीं करते थे, अचानक उन्हें मेरी किताब के प्रकाशन में अत्यधिक रूचि क्योंकर हो गयी, यह खोज का विषय हो गया।
ये वो दिन थे जब लोक सभा चुनाव का ऐलान हो रहा था। अरविन्द केजरीवाल गुजरात के दौरे पर थे और मोदी के विकास मॉडल पर सवाल खड़े कर रहे थे। उस वक़्त तक मोदी को महामानव और विकास पुरुष के रूप में स्थापित किया जा चुका था तथा मोदी के विरुद्ध बोलना राष्ट्रद्रोह समझा जाने लगा था। ऐसे में अरविन्द केजरीवाल का गुजरात जाना और मुख्यमंत्री मोदी को उसके ही घर में घेरना काफी साहस भरा कदम था। मैंने पहली बार सार्वजानिक रूप से अरविन्द के इस कदम की यह कहते हुए सराहना की कि मतभेद अपनी जगह पर है, लेकिन केजरीवाल ने यह अच्छा काम किया है। तत्पश्चात मोदी के विरुद्द केजरीवाल के बनारस से चुनाव लड़ने की खबरें मिडिया के एक हिस्से में आने लगी थी, मुझे अचानक भीलवाड़ा के उद्योगपतियों जिनके कारोबार गुजरात में थे, उनकी तरफ से कहा गया कि क्या आप द्वारा लिखित 'आप का सच' की एक लाख प्रतियाँ अहमदाबाद में सप्लाई की जा सकती हैं ? खोज करने पर जानकारी मिली कि दरअसल इन उद्योग जगत की हस्तियों की सीधी पंहुच गांधीनगर स्थित मुख्यमंत्री कार्यालय के उन लोगों तक थी जो मोदी की इमेज बिल्डिंग का काम संभाल रहे थे और केजरीवाल की छवि बिगाड़ने का काम कर रहे थे।
मेरे कान खड़े हो गए, मैंने विचार किया तो खुद पर ही सवाल खड़ा हो गया कि कहीं मैं भी आर एस एस की उसी योजना का हिस्सेदार तो नहीं बन रहा हूँ, जिसके कभी अन्ना अरविन्द बन गए थे। मैंने अचानक ही एक फैसला किया और तुरंत ही ‘आप का सच‘ का प्रकाशन रद्द करने की घोषणा कर दी, शायद मोदी के समर्थक चाहते थे कि हम सामाजिक क्षेत्र के लोगों के ज़रिये अरविन्द और आप पर सवाल खड़े करवाए जाये ताकि अरविन्द केजरीवाल द्वारा मोदी को दी जा रही चुनौती से जनता का ध्यान भटकाया जा सके। मैंने ना केवल सोशल मीडिया से आप का सच के अंश हटा लिए बल्कि पूरी पुस्तक के प्रकाशन को भी स्थगित कर दिया। मैं संघ की चाल को समझ रहा था। मैंने उनका हथियार बनने से अपने आपको बचा लिया था, हालाँकि आज भी अरविन्द केजरीवाल और आप पार्टी से मेरे रिश्ते सहज नहीं है और ना ही कभी हो पाएंगे। लेकिन मुझे संतोष है कि मैं आर एस एस की योजना का हिस्सा नहीं बना था। मैंने धर्म निरपेक्षता के आन्दोलन के साथ कोई गद्दारी नहीं की थी।
यह तो अन्ना, अरविन्द और आप के मामले का सच है, मगर इससे भी भयानक सच्चाई तो अभी सामने आना बाकी है, जो यह बताती है कि संघ परिवार ने कैसे योजनाबद्ध तरीके से देश के दलित आन्दोलन और कथित दलित नेताओं का सत्यानाश किया। मैं स्वयं इसका एक जीवंत उदहारण हूँ कि कैसे आर एस एस ने मुझ जैसे अपने घनघोर विरोधी को भी भाजपा में शामिल करने के लिए डोरे डाले, उसकी कथा आगे है, जिससे समझ आएगा कि संघ का दुश्चक्र किस तरह काम कर रहा था और कौन-कौन उसमे फंसकर बाबा साहब के मिशन का द्रोही हो गया। .......(जारी )
-भंवर मेघवंशी
(लेखक की आपबीती “हिन्दू तालिबान“ की पचासवीं किस्त )