आरएसएस प्रमुख श्री मोहन भागवत का बयान आया है कि आरक्षण नीति पर पुनर्विचार की आवश्यकता है। उनका कहना है कि आरक्षण का राजनीतिक उपयोग किया गया है और उन्होंने सुझाव दिया कि ऐसी अराजनीतिक समिति गठित की जाए, जो यह देखे कि किसे और कितने समय तक आरक्षण की जरूरत है। भारतीय जनता पार्टी ने अपने को इस बयान से अलग कर लिया है।
भागवत के बयान के आने के बाद लालू ने ट्वीट कर कहा, 'तुम आरक्षण खत्म करने की बात कहते हो, हम इसे आबादी के अनुपात में बढ़ायेंगे। माई का दूध पिया है तो खत्म करके दिखाओ। किसकी कितनी ताकत है पता लग जाएगा।'
यह भी पढ़ें -

#आरक्षण के विरोध में उतरा #आरएसएस
लालू का डरपोक भाजपाइयों को चैलेंज, माई का दूध पिया है तो आरक्षण खत्म करके दिखाओ
भागवत के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए आरजेडी के लालू प्रसाद ने कहा है कि अगर आरएसएस और बीजेपी में हिम्मत है, तो ये आरक्षण को हटा कर देखें और इसके बाद पिछड़े समुदाय और दलित वर्ग के गुस्से का सामना करने के लिए तैयार रहें।
इस प्रतिक्रिया के आने के बाद बिहार चुनाव को देखते हुए तुरंत भारतीय जनता पार्टी ने अपने को इस बयान से अलगकर लिया है और कहा कि 'जनसंघ के समय से बीजेपी की यह दृढ़ प्रतिबद्धता रही है कि सामाजिक एवं आर्थिक विकास और सशक्तिकरण के लिए अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अति पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण जरूरी है। बीजेपी इन वर्गों को दिए गए आरक्षण पर किसी तरह के पुनर्विचार के पक्ष में नहीं है।'
यह भी पढ़ें समाज को तोड़ रहे हैं आरएसएस और मोदी
भाजपा ने कहा कि इस बात पर चर्चा का स्वागत है कि गरीबों और ऐसे पिछड़े वर्गों में जो वर्ग विकास के लाभ पाने से वंचित रह गए हैं, उनके लिए और क्या किया जा सकता है। भाजपा प्रवक्ता ने हालांकि कहा कि बीजेपी मौजूदा सभी आरक्षण लाभों को जारी रखने के पक्ष में है। उन्होंने कहा, 'निश्चित तौर पर बीजेपी इस बारे में पूरी तरह स्पष्ट है कि आरक्षण के मुद्दे पर पुनर्विचार करने की कोई जरूरत नहीं है और न ही बीजेपी ऐसी किसी मांग का समर्थन करती है।'
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का राजनीतिक मुखौटा पहले जनसंघ था और फिर भारतीय जनता पार्टी के रूप में नया मुखौटा लगाया गया। जनसंघ या भारतीय जनता पार्टी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का अनुवांशिक संगठन है और भारतीय राजनीति में सवर्ण तबके की पार्टी रही है। इस कारण यह हमेशा जातिगत आरक्षण की विरोधी रही है। इसकी मंशा हमेशा यह रही है कि दलितों व पिछड़ों को मनुस्मृति के हिसाब से भारतीय समाज में रहना चाहिए, लेकिन सत्ता पर कब्ज़ा करने के लिए वोटों के लिए वह तरह-तरह के मुखौटे व गुंजलक बातें करती है और आज जब पूरी तरह से केंद्र की सत्ता पर काबिज है तो जातिगत आरक्षण समाप्त कर आर्थिक आधार पर आरक्षण को लागू करना चाहती है। जिससे गरीब सवर्ण आर्थिक आधार पर हुए आरक्षण में शेष सरकारी नौकरियों के ऊपर कब्ज़ा कर सके। पिछड़े व दलित जाति के लोग सरकारी सेवाओं में न आ सकें ।
भारतीय समाज में यह कहावत है कि जब मुसीबत आती है तो भेड़िये के बच्चे उसका साथ छोड़ देते हैं जो उसी के शिकार से भोजन करते हैं। केंद्र में भारतीय जनता पार्टी को सत्तारूढ़ करने में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की महत्वपूर्ण भूमिका रही है और आज वह वोटों के लालच में अपने मात्र संगठन के विचार से अपने को अलग करने की घोषणा कर रही है। यह इनकी पुरानी नीति है। गाँधी की हत्या के बाद संघ ने यही झूठ दोहराया था कि उसका कोई सदस्य नहीं, क्यूंकि उसके संगठन की कोई सदस्यता रजिस्टर नहीं है।