अजीब हमारा लोक है और गजब हमारे लोक मुहावरे।
अब्दुल्ला कोई माहीवाल, रांझा, मजनूं, फरहाद नहीं है, लेकिन दीवाना मशहूर हो गया।
अब्दुल्ला का जिक्र अलीबाबा चालीस चोर की अरब कथा के सिलिसिले में जरुर होता है, लेकिन वहां उसकी दीवानगी का कोई सबूत मिलता नहीं है। बहरहाल अलीबाबा अब एशिया का सबसे संपन्न ब्रांड है और भारत दखल को निकला है।
कमसकम हमें तो अब्दुल्ला के दीवाना होने का सबूत मिला नहीं है।
सेकुलर देश का मुहावरा भी सेकुलर है और आम आदमी का यह प्रतीक लेकिन मुसलमान है।
शत प्रतिशत हिंदू देश होने पर शायद यह मुहावरा भी बदल दिया जायेगा जैसे इतिहास भूगोल बदला जा रहा है।
बहरहाल बेमतलब जश्न के खिलाफ चेतावनी बतर्ज अब्दुल्ला अब भी दीवाना बना हुआ है जो शायद इस कयामत समय में भी बहुतै दीवाना है।
मसलन अपने सोदपुर पानीहाटी मेले में रविवार की रात कविता कृष्णमूर्ति की धूम रही। तृणमूल कांग्रेस ने चालीस साल बाद नगरपालिका पर कब्जा किया है।
नागरिक सुविधाओं का आलम यह है कि लोगों को पानी पीना पड़ता है नकद भुगतान के बदले। जलनिकासी होती नहीं है।
बार-बार मौसम बदलने के साथ रास्तों की नये सिरे से मरम्मत क्यों हो रही है, यह जरुर पहेली है। तमाम सड़कें खुदी पड़ी रहती हैं कि जलापूर्ति के लिए पाइप लाइनें बिछायी जा रही हैं, लेकिन हाल यह है कि पेयजल मयस्सर नहीं है।
तमाम तालाब पोखर और पुश्तैनी मकान अब बहुमंजिली आवासीय परिसर हैं ।
या फिर शामिंग माल हैं या मार्केट हैं।
एजुकेशनल हेल्थ हब हैं।
बीटीरोड के दोनों तरफ के तमाम कल कारखाने बंद हैं लेकिन मजदूर बस्तियां जो जस की तस रही हैं, तेजी से बेदखल होती जा रही हैं।
वहां कारों के शो रूम, ढाबे, रेस्त्रां बार वगैरह-वगैरह हैं।
मंजर क्या है समझ लीजिये कि अरसे बाद मछली बाजार गया तो दाम थोड़ा ज्यादा लगा तो एक युवा मछली कारोबारी से पूछ ही लिया मछलियां इतनी महंगी क्यों हैं।
उसने जो कहा हैरतअंगेज है।
बोला वह, मछलीवाले सारे दम तोड़ रहे हैं। इसलिए मछलियां महंगी हैं।
चाचा, आप तो इस बाजार में सबको पहिचानते हैं।
नजऱ उठाकर देख लीजिये कि आपके जानने पहचानने वाले हम मछलीवाले किधर मर खप गये।
मैंने पूछा कि तुम इस तरह बात कर रहे हो, पढ़ लिख गये हो क्या?
बोला आधा तीतर आधा बटेर हूं। अधपढ़ रह गया। बीच में छोड़ दिया।
मैंने पूछा, क्यों?
उसने कहा कि पढ़ लिख जाता तो मछली बेचने की हैसियत लेकर जी नहीं पाता और नौकरी तो मिलती नहीं।
फिर आस पास के मछलीवाले भी बर्र के छत्ते में पत्थर मारने के बाद जो होता है, उसी तरह बोलने लगे।
उन्होंने कहा कि हमें बेदखल करने की पूरी तैयारी है साब।
मैंने पूछा तो उन्होंने बताया कि मछली बाजार सब्जी बाजार सब उखाड़े जाने हैं। यहां माल का नक्शा तैयार है।
शापिंग माल में अब मिलेंगी मछलियां और सब्जियां भी।
किसी ने कहा, उनतीस मंजिली इमारत होगी और उसमें बाजार सजेंगे। लेकिन हम न होंगे। हममें से कितने होगे, किसी को नहीं मालूम।
मुझे मालूम है कि वे जो कह रहे हैं, सच कह रहे हैं।
सोदपुर में सब्जियों का जो हाट है, वहां सीमावर्ती इलाकों से भी किसान मछलियां सब्जियां लेकर पहुंचते हैं। तमाम मेहनतकश औरतें आती हैं घरबार संभालकर घर परिवार के लिए आक्सीजन बटोरने।
जबकि माहौल अब भोपाल गैस त्रासदी है।
फिर भी सर छुपाने की जगह है नहीं है और सारा जहां हमारा है।
भोपाल गैस त्रासदी अब सिर्फ औद्योगिक दुर्घटना नहीं है, मुक्त बाजार में उसका बहुआयामी विस्तार हुआ है।
रेडियोएक्टिव परमाणु ऊर्जा के लिए जनपदों में परमाणुघरों का जाल बिछाया जा रहा है तो ऊर्जा प्रदेशों के लिए गांवों और घाटियों को डूब में शामिल कराया जा रहा है।
छत्तीसगढ़ में नई राजधानी के लिए पुखरौती के पास जो सैकड़ों गांव आदिवासियों के उखाड़े गये हैं, वैसा ही नजारा राजधानी दिल्ली, नये कोलकाता, चेन्नई, नवी मुंबई, कोयंबटूर, अहमदाबाद, गुवाहाटी, भुवनेश्वर, नागपुर, बंगलुर, हैदराबाद से लेकर कच्छ के रण, हिमालय के पर्यटन केंद्रों, धर्मस्थलों, चारों धामों, देश के तमाम तीर्थस्थलों, छोटे बड़े नगरों से लेकर अपने बसंतीपुर की दसों दिशाओं में तेजी से पांव पसार रहे सीमेंट के जंगल में देखता रहा हूं।
मिथाइलआइसोसाइनाइट (मिक) नामक जहरीली गैस बह रही है हवाओं में, पानियों में और स्त्री पुरुष बच्चे बेमौत बेआवाज मर रहे हैं, चारों तरफ लाशों की सड़ांध हैं और इंद्रियों से बदखल हमें कोई अहसास तक नहीं है।
हम फिर वही बेदखल कौम के बेवाज हिंदुस्तानियों के बीच मुक्त बाजार के सांढ़ों नाल मौज कर रहे हैं। बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना का जैसा हाल हो सकता है, वही यह कार्निवाल है।
इसी शत प्रतिशत हिंदुओं के भारत के मध्य प्रदेश राज्य के भोपाल शहर मे 3 दिसम्बर सन् 1984 को एक भयानक औद्योगिक दुर्घटना हुई। इसे भोपाल गैस कांड, या भोपाल गैस त्रासदी के नाम से जाना जाता है।
भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड नामक कंपनी के कारखाने से एक ज़हरीली गैस का रिसाव हुआ जिससे लगभग 15000 से अधिक लोगों की जान गई तथा बहुत सारे लोग अनेक तरह की शारीरिक अपंगता से लेकर अंधेपन के भी शिकार हुए।
भोपाल गैस काण्ड में मिथाइलआइसोसाइनाइट (मिक) नामक जहरीली गैस का रिसाव हुआ था। जिसका उपयोग कीटनाशक बनाने के लिए किया जाता था।
कहा जाता है कि ऐसे खतरनाक जहरीले रसायनों के उत्पादन पर अमेरिका और पश्चिम में रोक है जहां शून्य प्रतिशत प्रदूषण की रियायत है और इसीलिए यूनियन कार्बाइड और डाउ जैसी कंपनियों के लिए वहां कारखाना लगाना और चलाना मुश्किल है। फिर औद्योगिक दुर्घटनाओं की जिम्मेदारी और मुआवजों की रकम इन कंपनियों के लिए पश्चिम में मौत की घंटी है।
इसके विपरीत जहर पैदा करने वाली बहुरष्ट्रीय कंपनियों को भारत में पूरी छूट है। हमारे यहां कैमिकल हब बनाये जा रहे हैं।
नंदीग्राम में ऐसा ही कैमिकल हब बनाया जाना था।
यूनियन कार्बाइड अब डाउ है जो लंदन ओलंपिक का प्रायोजक रही है।
कार्बाइड का जहरीला मलबा अब भोपाल का वजूद है जो पूरे भारत में फैलता जा रहा है।
यूनियन कार्बाइड के एंडरसन को भारत की सरकारें बचाती रही हैं और उनकी अब तो अमेरिका में सकुशल मौत हो गयी। उनकी आत्मा को शांति मिलेगी कि शत प्रतिशत हिंदुत्व के एजेंडे वाली हिंदुत्व की संघ सरकार ने अमेरिकी राष्ट्रपति बाराक ओबामा के भारत आने से पहले तमाम विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को परमाणु औद्योगिक दुर्घटनाओं के उत्तरदायित्व से मुक्त कर दिया है।
भोपाल के गैसपीड़ितों को अभी मुआवजा नहीं मिल पाया है जैसे विकास के नाम पर चलने वाली परियोजनाओं के विस्थापितों का कहीं पुनर्वास हो नहीं पाया है, जैसे नये भूमि सुधार कानून, नये खनन अधिनियम के तहत मुआवजा और रोजगार के प्रावधान खत्म हो रहे हैं।
हालांकि अकेले भोपाल गैस त्रासदी में मरने वालों के अनुमान पर विभिन्न स्त्रोतों की अपनी-अपनी राय होने से इसमें भिन्नता मिलती है। फिर भी पहले अधिकारिक तौर पर मरने वालों की संख्या 2, 259 थी।
मध्यप्रदेश की तत्कालीन सरकार ने 3, 787 की गैस से मरने वालों के रुप में पुष्टि की थी। अन्य अनुमान बताते हैं कि 8000 लोगों की मौत तो दो सप्ताहों के अंदर हो गई थी और लगभग अन्य 8000 लोग तो रिसी हुई गैस से फैली संबंधित बीमारियों से मारे गये थे। 2006 में सरकार द्वारा दाखिल एक शपथ पत्र में माना गया था कि रिसाव से करीब 558, 125 सीधे तौर पर प्रभावित हुए और आंशिक तौर पर प्रभावित होने की संख्या लगभग 38, 478 थी। 3900 तो बुरी तरह प्रभावित हुए एवं पूरी तरह अपंगता के शिकार हो गये।
देश भर में अब जो कीड़े मकोड़े के रुप में भारतीय नागरिक मर रहे हैं और विदेशी पूंजी के हित में हर तरह के कानून बना बिगाड़कर थोक मृत्यु उत्सव की मृत्यु उपत्यका की विकास परियोजना है, विकास गाथा है, वहां से अबाध पूंजी की तरह भोपाल वाली गैस मिथाइलआइसोसाइनाइट (मिक) और दूसरी दीगर गैस जो अबाध निंतर बह रही है, वह हमारी नाक के दायरे से बाहर है।
बेदखल हो रहे लोग लेकिन जान रहे हैं, जैसे सोदपुर के सब्जीवाले और मछलीवाले जान रहे हैं कि उनके साथ क्या सलूक होने वाला है।
वे रो भी रहे हैं। चिल्ला भी रहे हैं। चीख रहे हैं वे। लेकिन राम के नाम का शोर इतना तेज है, रामलीला के अलावा कहीं कुछ दीख ही नहीं रहा है।
सारा भारत मूक है। आवाजें गुम हो रही हैं। सुनवाई के लिए कहीं कोई कान नहीं है।
O- पलाश विश्वास