भ्रष्टाचार केवल आर्थिक अपराध भर नहीं
भ्रष्टाचार केवल आर्थिक अपराध भर नहीं
यह केवल आर्थिक अपराध भर नहीं
It is not only the economic crime
वीरेन्द्र जैन
पिछले दिनों आन्ध्र प्रदेश की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा ने एक आई ए एस अधिकारी के यहाँ छापा मारा जो उप परिवहन आयुक्त के पद पर नियुक्त था। उसके यहाँ से छापे में आठ सौ करोड़ से अधिक की सम्पत्ति बरामद की गई, जिसमें दो किलो सोना, पाँच किलो चाँदी, चौदह फ्लैटों के कागजात, 4700 मीटर जमीन, हैदराबाद के पाश जुबली हिल्स इलाके में चार मंजिला इमारत, दर्जनों बैंक एकाउंट आदि सम्मलित हैं। उसकी बड़ी बेटी के नाम आठ कम्पनियां हैं जिनकी कीमत सौ से एक सौ बीस करोड़ के बीच आंकी गई है।
मध्य प्रदेश में ऐसे छापे लगभग प्रति सप्ताह पड़ते रहते हैं और आईएएस ही नहीं पटवारियों, चपरासियों ड्राइवरों तक के यहाँ से बड़ी बड़ी रकमें बरामद होती रहती हैं। इस तरह के मामलों में सरकार और समाज की जो उदासीनता देखने को मिल रही है उससे लगता है कि यह आखिरी मामला भी नहीं होगा। यह धारणा है कि जो राशि पकड़ी जाती है वह सम्बन्धित के वास्तविक भ्रष्टाचार से बहुत कम होती है और उसका एक बड़ा हिस्सा वह पहले ही खर्च कर चुका होता है।
मुझे एक आयकर अधिकारी ने बताया था कि राजनेताओं के जनप्रतिनिधि रहते हुए उन पर छापा न मारने की एक अलिखित नीति सी है इसलिए वे लोग बहुत कुछ जानते हुए भी राजनेताओं के यहाँ छापा नहीं मारते।
सौ में से केवल चार मामले पकड़े जाते हैं और उनमें से केवल एक को ही सजा हो पाती है
Only four out of a hundred cases are caught and only one of them is the conviction
विजीलेंस आयुक्त ने कभी कहा था कि सौ में से केवल चार मामले पकड़े जाते हैं और उनमें से केवल एक को ही सजा हो पाती है।
मैंने एक व्यापारी से सवाल पूछा था कि किसी अधिकारी के रंगे हाथों पकड़े जाने के कुछ महीने तक तो उसका उत्तराधिकारी साफ सुथरा व्यवहार करता होगा।
मेरी इस बात पर उसने हँसते हुए कहा था कि अगले दिन से ही उसका उत्तराधिकारी बँधे हुए रेट से पैसे लेने लगता है और अपने पूर्वाधिकारी को अकुशल मानता है जिस कारण वह पकड़ा गया। उसका अपनी भाषा में कहना था कि यह व्यक्ति का नहीं व्यवस्था का मामला है।
भूल यह हो रही है कि हम ऐसे प्रत्येक मामले को व्यक्ति तक सीमित करके देखते हैं और उसको सजा दिलवाने की कमजोर सी कोशिश का दिखावा ही हमारा लक्ष्य बन कर रह जाता है। जाँच करने से लेकर सजा दिलाने तक अनेक कमजोर कड़ियां होती हैं जो अपनी कीमत लेकर आरोपी को मुक्त कर देने में रुचि रखती हैं। यही कारण है कि ऐसे कुछ पदों पर नियुक्तियों, प्रमोशनों, और पदस्थापनाओं के लिए बड़ी बड़ी बोलियां लगने की बातें बाहर तक सुनी जाती हैं। पकड़े गये ज्यादातर मामलों में जमानत मिल जाती है, और निलम्बन के दौरान पहले छह महीने तक आधा और फिर तीन चौथाई वेतन पाने वाला अधिकारी/ कर्मचारी तनावमुक्त होकर पूर्ण विलासता का जीवन गुजारते हुए समाज को जीभ चिढ़ाता रहता है, क्योंकि न्याय की प्रक्रिया बहुत लम्बी होती है।
भ्रष्टाचार के कुछ दूसरे आयाम भी हैं, क्योंकि सरकारी स्तर पर किया गया भ्रष्टाचार पूरे समाज पर् दूरगामी मार करता है। सबसे पहले तो वह सरकार के विकास सम्बन्धी आंकड़ों को कटघरे में खड़ा करता है क्योंकि अधिकांश भ्रष्टाचार तो कार्य व विकास के झूठे आंकड़े बना कर, लक्ष्य से कम काम कराके ज्यादा दिखाने, या काम की गुणवत्ता खराब करके किया जाता है। सड़कें जल्दी उखड़ जाती हैं, पुल जल्दी गिर जाते हैं भवन रहने और काम करने लायक नहीं रहते। खेत असिंचित रह जाते हैं, सरकारी अस्पताल में इलाज नहीं मिल पाने के कारण प्रतिवर्ष हजारों लोग अकाल मृत्यु के शिकार हो जाते हैं, पर्याप्त टीकाकरण और स्वच्छता न मिल पाने के कारण लाखों करोड़ों लोग अपना स्वास्थ गिरा लेते हैं, उम्र घटा लेते हैं। न्याय की उम्मीद न होने के कारण लोग कानून अपने हाथ में लेने लगते हैं और अपराधी खुले आम अपराध करने लगते हैं। राजनीति में लोग पैसा कमाने के लिए आने लगते हैं व समाज सेवा के उद्देश्य से राजनीति से जुड़ने वालों को हाशिए पर खिसका देते हैं।
कहने का अर्थ यह है सारा भ्रष्टाचार जनता की सुख सुविधाओं में कटौती करके किया जाता है व विकास के झूठे प्रचार में करोड़ों रुपये फूंके जाते हैं। इसके विपरीत हमारी व्यवस्था धन सम्पत्ति के साथ पकड़ में आये व्यक्ति को सजा दिलवाने की जिम्मेदारी से अधिक नहीं सोचती। भ्रष्टाचार से हो रहे दूसरे नुकसानों, जिसमें लोकतांत्रिक व्यवस्था में घटती जाती आस्था भी सम्मलित है की कोई गिनती ही नहीं होती। निरीह आम जनता भी केवल उत्सुकता और आश्चर्य से तमाशा सा देख कर सब कुछ भुला देती है। लोग भ्रष्टाचारियों को यथावत सम्मान देते हैं व उनकी धन सम्पत्ति के प्रभाव में अपने परिवार का रिश्ता जोड़ने में कोई संकोच नहीं करते। विभिन्न तरह के चुनावों में उन्हें विजय दिलाते हैं, पद देते हैं, और उनके अधीन बने रहते हैं।
चीन में पिछले दिनों एक बैंक मैनेजर और उसे भ्रष्टाचार के लिए प्रोत्साहित करने वाली उसकी पत्नी को मौत की सजा सुनायी गई थी, क्योंकि वे उसको भ्रष्टाचार के लिए प्रोत्साहित करती थी। हमें यह सजा बहुत कठोर लग सकती है किंतु कानून के पालन का वातावरण बनाने का प्रभाव यह हुआ था कि हिदुस्तान के लोगों तक में उसकी धमक माहसूस की गई थी।
जब कोई भ्रष्टाचार में पकड़ा जाता है तो सम्बन्धित कार्यालय के कामकाज की कमजोरियां भी सामने आनी चाहिए किन्तु कभी नहीं सुना जाता कि उन कमजोरियों को रेखांकित किया गया है और दूर करने के कोई उपाय किये गये हैं, ना ही उसी सीट पर उससे पहले हुए वैसे ही काम या पूर्व पदस्थ रहे अधिकारियों के कार्यों व उनकी सम्पत्तियों को परखने की कोशिश की जाती है। यदि मध्यप्रदेश सरकार की कन्यादान योजना में नकली मंगलसूत्र पाये गये हैं तो क्यों नहीं अब तक के सभी हजारों विवाहों में दिये मंगलसूत्रों की कैरिटोमीटर से जाँच के आदेश दिये गये, जबकि यह तय है कि ये हरकतें पुराने समय से चली आ रही होंगीं। जब प्रदेश की लाखों भांजियों को यह पता कलेगा कि उनके कन्यादान के नाम पर किसका घर भरा जा रहा है तब क्या होगा? पर ऐसी जाँच सरकारी स्तर पर कभी नहीं होगी न ही प्रदेश में ऐसा कोई विपक्ष मौजूद है जो यह काम कराये। भ्रष्टाचार की पकड़ में आये लोग जिन स्थनों से सोना चाँदी खरीदते हैं, उनके यहाँ से दूसरे भ्रष्टाचारी भी खरीदते होंगे। फिर क्यों नहीं उनसे गहन पूछ्ताछ की जाती जबकि साइकिल चोरों को मार मार कर उससे सारी पिछली चोरियां कुबूल करा ली जाती हैं।
भ्रष्टाचारी कर्मचारी कभी अपने वर्ग की सेवा शर्तों में सुधार के लिए आन्दोलन नहीं करते और न ही किसी हड़ताल में मन से सम्मलित होते हैं। इस तरह वे अपने समकक्षों की सेवा शर्तों के सुधार हेतु सामूहिकता स्थापित नहीं होने देते जिस कारण मांगें पूरी नहीं हो पातीं। ट्रेड यूनियनों के बल में आने वाली कमजोरियों में भ्रष्टाचार की भी भूमिका रहती है।
हर भ्रष्टाचार जनता की जेब से कुछ चुरा रहा है और जनता यह समझ कर सो रही है चोरी दूसरे के यहाँ हो रही है।


