मंदी मायने मुनाफा वसूली तो बुलरन मतलब बटोर लो, दिनदहाड़े डकैती
मंदी मायने मुनाफा वसूली तो बुलरन मतलब बटोर लो, दिनदहाड़े डकैती
पलाश विश्वास
थोड़ा याद 2009 के उस चमत्कार को करें इस खबर के मध्य कि शेयर बाजार में आने वाले समय में हलचल बढ़ सकती है। भारतीय बाजार महंगा है और कुछ वैश्विक घटनाक्रमों के चलते विदेशी निवेशक यहां प्रॉफिट बुकिंग कर सकते हैं यानी कुछ मुनाफा निकाल सकते हैं। यूपीए की जीत के जश्न में चंद मिनटों में शेयर बाजार में दो हजार अंकों की उछाल कर दी साढ़ों ने। तो अब नमोसुनामी बुलरन के अटूट सिलसिले के बावजूद वह चमत्का दोहरा नहीं पाया तो गम न करें क्योंकि इतिहास की पुनरावृत्तियां चमत्कार नहीं हैं। जिस दुश्चक्री तिलिस्म में फंसे हैं वह गैस चैंबर है दरअसल और यहां इसी हिमालय, किसी महाअरण्य और संजीवनी सुधामय जलस्रोत के आक्सीजन भंडार से कोई सप्लाई होने की संभावना नहीं है।
The Sensex recorded its fastest ever 2,000 points surge in history, taking not more than a few minutes to jump from 12,173.42 to 14,284.21, as the bulls stormed the bourses following the Congress-led UPA front getting a strong mandate in the general elections 2009.
यह जनादेश का धमाल नहीं था। बिक्रीयोग्य सार्वजनिक उपक्रमों के शेयर अचानक तेज हो गये। ज्यादा मुनाफा विनिवेस की पात्रता है। इसी पात्रता की दिशा में यह एक भारी कदम रहा है। ताजा सांढ़ धमाल में भी नवरत्न कपनियों की पूजा अर्चना जारी है कसाईबाड़े में।
सोशल मीडिया में मेरी प्रोफाइल तस्वीर के साथ एक वीडियो किसी भी महत्वपूर्ण मुद्दा पोस्ट करने के बाद बार बार पोस्ट किया जा रहा है। यह स्पैम है। ऐसा कोई वीडियो हमारा है भी नहीं। हम पारिवारिक क्षणों को शेयर करने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग नहीं करते। यू ट्यूब पर मेरे जो वीडियो हैं, वे मुद्दों पर भाषण और साक्षात्कार के हैं। जिसमें हमारे परिजन हैं ही नहीं। फेसबुक ने हाल में प्रोफाइल वीडियो जारी जरूर किया है, लेकिन हमें हमारे किसी प्रोफाइल वीडियो की जानकारी नहीं है। मित्रों को इस वीडियो स्पैम की चेतावनी के साथ यह रोजनामचा आज का।
डालर से नत्थी मुक्तबाजारी भारतीय अर्थव्यवस्था मोदी सुनामी, विकास कामसूत्र, विनिवेश, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, निर्माण विनिर्माण, विनियंत्रण और विनियमन के साथ अबाध विदेशी पूंजी के अनंत प्रवाह के लिए जारी आर्थिक सुधारों के दूसरे पद्मप्रलयी चरण और सांढ़ों की बेमिसाल उछलकूद और अर्थशास्त्रियों की मीडिया जुगाली और विश्वव्यवस्था की जायनी रेटिंग और इशारों से सुधरने वाला नहीं है।
प्रणवमुखर्जी के हालिया 67 फीसद की बेरोजगारी वाले बयान से साफ जाहिर है कि संख्याएं, आंकड़े, सूचनाओं और विश्लेषण किस हद तक भ्रामक हैं।
दरअसल विकास दर कोई अर्थव्यवस्था और भारतीय जनगण की विकास वृद्धि को अभिव्यक्त नहीं करती।
इस सीधे सीधे मुनाफावसूली दर कहें तो बात ज्यादा समझ में आ सकती है।
इसके साथ यह भी समझ लें कि मंदी कोई अर्थव्यवस्था का संकट नहीं है, जैसा कि आम तौर पर बताया जाता है और न यह जनगण का संकट है। मंदी दरअसल मुनाफावसूली का पुख्ता इंतजाम है।
यूपीए की पहली और दूसरी सरकारों ने इस मंदी की आड़ में जनसंहारी सुधारों का बवंडर ही रचा है और देशी विदेशी लंपट आवारा पूंजी के हित साधने का स्थाई बंदोबस्त किया है।
अनिममित अनियंत्रित विदेशी निवेशकों की मुनाफावसूली की वजह से कृत्तिम संकट खड़ा होता है, जो दरअसल संकट है ही नहीं। जबकि बुलरन सरासर दिनदहाड़े डकैती है।
विदेशी निवेशक सरकारी पहल पर बाजार में पैसा झोंकते हैं और आम लोग इस वसंत बहार में अपनी जेबें भारी करने के फिराक में जमा पूंजी बाजार के हवाले कर देते हैं।
बाजार में विदेशी निवेशकों की दिलचस्पी भी इसलिए औचक बढ़ गयी है क्योंकि जमा पूंजी ही नहीं, अब भविष्यनिधि,पेंशन और ग्रेच्युटी को भी सरकार बाजार में झोंक रही है।
इसका नतीजा बीमा प्रीमियम की गुमशुदगी की निजी अभिज्ञता से समझ लें।
विदेशी निवेशक बाजार में रुक रुक कर सांढ़ों का कार्निावाल इसलिए शुरु करती है कि छोटी और मंझोली निवेशक मछलियों के चारा यही है।
वे चारा निगल लें तो फिर मुनाफावसूली शुरू।
डालर से नत्थी मुक्तबाजारी अर्थव्यवस्था भारतीय उत्पादन प्रणाली से किसी तरह जुड़ी नहीं है। भारतीय रिजर्व बैंक औद्योगिक कृषि मैनुफैक्चरिंग विकास दरों और मुद्रास्फीति मूल्यवृद्धि के मद्देनजर मौद्रिक कवायद के तहत तो ब्याज दरों में फेरबदल करती है वह न राष्ट्रहित में है और न जनहित में। सिरे से यह कारोबार मुनाफा वसूली की चांदमारी है।
आर्थिक सुधार जो हो रहे हैं वह एकध्रुवीय विश्वव्यवस्था के हितों के मुताबिक हैं जो न राष्ट्रहित हैं और न जनहित।
भारत सरकार अपनी वित्तीय नीतियों पर चलती नहीं है और न उसकी इस मुक्तबाजारी अर्थव्यवस्था में कोई वित्तीय नीति है।
विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष. यूरोपीय समुदाय, विश्व व्यापार संगठन, रेटिंग एजंसियां और भारत की देशी और बहुराष्ट्रीय कंपनियां मौद्रिक और वित्तीय नीति तय करती हैं।
मसलन सब्सिडी खत्म करने पर वैश्विक आर्थिक संगठनों का सबसे ज्यादा जोर है। लेकिन स्वतंत्र संप्रभू लोकगणराज्य भारत की सरकार और भारत की संसद के कार्यक्षेत्र में यह मामला नहीं है, विश्व व्यापार संगठन को भारत में सब्सिडी का भविष्यतय करना है और खाद्य सुरक्षा का क्या होगा, इसका फैसला बाराक हुसैन ओबामा करेंगे।
भारतीय खुदरा कारोबार की दश दिशा भी ओबामा की मेहरबानी।
जैसे कि विदेशनीति और राजनय तेलअबीब और वाशिंगटन से तय होते हैं।
जैसे कि प्रतिरक्षा और आंतरिक सुरक्षा अमेरिका, ब्रिटेन और इजराइल के नेतृत्व में पारमाणविक गठजोड़ के हवाले है, जिसमें अपने ही देश की जनता के खिलाफ युद्धरत सैन्य राष्ट्र भारत शामिल है।
नेपाल से लौटकर नमो महाराज ओबामा महाप्रभू को नेपाल में हिंदू राष्ट्र और राजतंत्र की बहाली मुहिम की प्रगति की जो रपट सौंपेंग, सो सौपेंगे, उन्हें विनिवेश विदेशी प्रत्यक्षनिवेश, सब्सिडी वगैरह वगैरह विशुद्ध भारतीय अऱ्थव्यवस्था और उत्रापदन प्रणाली के मुद्दों और दूसरे चरण के आर्थिक सुधारों के मामले में व्हाइट हाउस से दिशा निर्देश लेने हैं।
हालात बेहद गंभीर हैं। संसदीय सौदेबाजी के तहत विपक्ष का नेता अभी तय नहीं हो पाया है और कांग्रेस का जनहित यही है तो क्षत्रपों और वामदलों के जनहित भी अलग अलग हैं। इसलिए इस सोमवार को राज्यसभा में बीमा बिल पेश हो नहीं रहा है। यह मामला शीत सत्र तक टल सकता है जो अमेरिकी हितों का सरासर उल्लंघन है।
मल्टी ब्रांड का खामियाजा तो सिंगल ब्रांड और ईकामर्स से पूरा कर दिया गया है।
प्रतिरक्षा में शत प्रतिशत एफडीआई का रास्ता भी खुल गया है तो एसबीआई और एलआईसी कसाईबाड़े में कैद हैं।
फिर भी बीमा और सब्सिडी मामले में अमेरिकी खूब नाराज हुआ जाये रे।
कारपरेट लाबिइंग में भारत में बुरी तरह फेल अमेरिकी विदेश मंत्री कैरी साहेब बेहद नाराज होकर चले गये हैं। मोदी महाराज को सारे अमेरिकी सवालों का जवाब पेश करना है।
इससे यह भी साबित हुआ कि संसद में केसरिया कारपोरेट बहुमत उतना भी नहीं है, जितना कि हल्ला बहुत है। विपक्ष के हित सधे तो कायदा कानून बदलने बिगाड़ने में केसरिया ब्रिगेड को नाकों चने चबाने पड़ सकते हैं।
जैसा कि बीमा बिल के मामले में हो रहा है।
मजे की बात है कि तेईस सालों के आर्थिक सुधार जमाने में लोकसभा में बहुमत पाने वाली पार्टी की यह पहली सरकार है। लेकिन जैसे कि हम आप जानते हैं कि सुधार अश्वमेध यज्ञ के पुरोहित रंगबिरंगे भेष में तमाम पार्टियों, विचारधाराओं और अस्मिताओं के ही हाड़ मांस के लोग हैं जो संजोग से ज्यादातर या अरबपति हैं या फिर सत्ता जमात के पंचायत प्रधानों की मौजूदा औकात यानी कि कमसकम करोड़पति हैं, तो कामर्शियल ब्रेक के बाद फिर वही कामेडी विद कपिल है या फिर जोधा अकबर या कौन बनेगा करोड़पति।
विकास कामसूत्र का अनंत पाठ रुकने वाला नहीं है।
अब भूमि अधिग्रहण कानून में जरूरी तब्दीली के साथ गुजराती पीपीपी माडल के साथ पूंजी के लिए सस्ती दरों पर जमीन दिलाने का कार्य़भार है और देशव्यापी बेदखली अभियान की तैयारियों की नई खेप का इंतजमा भी सरदर्द सबब है।
नई भूमि अधिग्रहण नीति के तहत सरकारी और सरकारी उपक्रमों की गैर कृषि भूमि की अभूतपूर्व बंदरबांट होनी है। खास जमीन का भी पूंजी में तब्दील कर दने की पूरी तैयारी है।
भारतीय स्टेट बैंक, ओएनजीसी, सेल, कोल इंडिया, पंजाब नेशनल बैंक और दूसरे बैंक के कर्मचारी सातवें वेतन आयोग के वेनमान के लिए प्रतीक्षा कर ही सकते हैं क्योंकि फिलहाल हिस्सेदारी बेचने की रणनीति है। एकमुशत् हलाल करने के बजाय जोर का झटका धीरे से लगे, ऐसा चाकचौबंद इंतजाम है।
विदेशी प्रत्यक्ष निवेश का मामला भी अब भारत सरकार का कार्यक्षेत्र नहीं है, इसके नार्म अब आंतर्जातिक है और इसका मतलब बूझकर बताइयेगा।


