मदर्स डे - सुरक्षित मातृत्व स्वास्थ्य की चुनौतियां... दुनिया की हर तीसरी बालिका वधू भारत में है
मदर्स डे - सुरक्षित मातृत्व स्वास्थ्य की चुनौतियां... दुनिया की हर तीसरी बालिका वधू भारत में है

मदर्स डे - सुरक्षित मातृत्व स्वास्थ्य की चुनौतियां... दुनिया की हर तीसरी बालिका वधू भारत में है
मदर्स डे 10 मई पर विशेष प्रस्तुति Special presentation on Mother's Day 10 May
इस बार 10 मई को मदर्स डे (Mother's Day on 10 May) के रूप में मनाया जा रहा है, बाजार गिफ्टों से पटा पड़ा है। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडि़या ने भी इस दिन के लिए खास तैयारी कर ली है। कहते हैं कि जब महिला बच्चे को जन्म देती है तो वह इतनी पीड़ा से गुजरती है कि एक तरह से उसका पुनः जन्म होता है, लेकिन क्या देश में इन माताओं की स्थिति अच्छी है? क्या उन्हें सुरक्षित मातृत्व (Safe motherhood) मिल रहा है? क्या उनको स्वास्थ्य सुविधाएं मिल पा रही है? क्या उनकी उन स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच है? क्या उन्हें स्वास्थ्य संबंधी जानकारी है? क्या सरकार द्वारा चलायी जा रही योजनाओं का वो लाभ उठा पा रही हैं?
सुरक्षित मातृत्व क्या है What is safe motherhood
इस मदर्स डे पर इन सब बातों को जानने समझने की कोशिश करते हैं।
बात आगे बढ़े उसे पहले हमें सुरक्षित मातृत्व के बारे में जानना होगा। किसी भी महिला की प्रसव के दौरान या अगर गर्भपात हुआ है तो उसके 42 दिनों बाद तक उस महिला की मृत्यु न हुई हो, यही सुरक्षित मातृत्व है।
लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश अभी भी पूर्ण सुरक्षित मातृत्व के लक्ष्य को प्राप्त नही कर पाया है। भारत दुनिया के उन 10 देशों में शुमार है, जहाँ दुनिया की 58 फीसदी मातृ मृत्यु होती हैं। 2014 में आई संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2013 में दुनिया में 2.89 लाख महिलाओं की मृत्यु प्रसव और शिशु जन्म के समय आयी जटिलताओं के कारण हुई है, इन कुल मौतों का 17 प्रतिशत यानी 50 हजार मातृ मृत्यु अकेले भारत में हुई हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूनिसेफ, विश्व बैक और संयुक्त राष्ट्र के जनसंख्या विभाग की इंटर एजेंसी ग्रुप रिपोर्ट 2013 के अनुसार भारत को मातृ मृत्यु दर के ट्रेंड के आधार पर एक सौ अस्सी देशों में एक सौ छब्बीसवें स्थान पर रखा है। रिपोर्ट में भारत में महिलाओं में खून की कमी (एनीमिया) को लेकर भी चिंता है।
इसी प्रकार “सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य की स्थिति रिपोर्ट 2014” के अनुसार भारत सरकार ने मातृ मृत्यु दर का लक्ष्य 2015 तक 109 तक लाने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन अनुमान है कि यह केवल 140 तक ही पहुंच पायेगी। वही देश में 2015 तक प्रशिक्षित स्वास्थकर्मी के द्वारा डिलिवरी कराने का लक्ष्य शत प्रतिशत रखा गया था, लेकिन जिस तरह से देश में स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति है उसे देख कर अनुमान है कि केवल 62 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं की डिलिवरी प्रशिक्षित स्वास्थकर्मी द्वारा हो सकेगी।
प्रिंस्टन विश्वविद्यालय के रुडो विल्सन स्कूल ऑफ पब्लिक एंड इंटरनेशनल अफेयर्स के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पाया कि भारतीय महिलाएं जब गर्भवती होती हैं तो उनमें से 40 फीसदी से अधिक गर्भवती महिलाएं सामान्य से कम वजन की होती हैं। भारत में गर्भधारण के दौरान औसत महिलाओं का वजन केवल सात किलोग्राम बढ़ता है, जबकि सामान्यतया गर्भवती महिला का वजन इस दौरान 9 से 11 किलोग्राम तक बढ़ना चाहिए। गर्भावस्था के दौरान वजन कम बढ़ना ना केवल गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए खतरे का सूचक है बल्कि मां के स्वास्थ्य के लिए भी खतरा है।
40 percent posts of gynecologists and physicians are vacant in the country
मातृ मृत्यु का प्रमुख कारण देश में महिलाओं का प्रसव पूर्व, प्रसव के दौरान और प्रसव के बाद स्वास्थ्य सुविधाओं का उपलब्धता और उस तक पहुंच का ना हो पाना है। यह मातृ मृत्यु की स्थिति को भयावह बना देती है। देश की लगभग 70 प्रतिशत आबादी गांव में निवास करती है। लेकिन विडंबना यह है कि देश में उपलब्ध कुल चिकित्सा सेवाओं का केवल 30 प्रतिशत ही ग्रामीण क्षेत्र में उपलब्ध है। देश में स्त्री रोग विशेषज्ञों और चिकित्सकों के 40 प्रतिशत पद खाली हैं और वो भी ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्र में। अगर 2011 के ग्रामीण स्वास्थ्य आंकड़ों को देखें तो पाते हैं कि गांवों में 88 फीसदी विशेषज्ञ डाक्टरों तथा 53 फीसदी नर्सो की कमी है। शहरों में 6 डाक्टर प्रति दस हजार जनसंख्या में हैं वही ग्रामीण में यह 3 डाक्टर प्रति दस हजार जनसंख्या में हो जाती है।
बाल विवाह भी मातृ मृत्यु का एक कारण है। Child marriage is also a cause of maternal death.
यूनिसेफ की हालिया रिपोर्ट ‘एंडिंग चाइल्ड मैरिज-प्रोग्रेस एंड प्रोस्पेक्ट 2014’ के अनुसार दुनिया की हर तीसरी बालिका वधू भारत में है। यानी दुनिया भर में एक तिहाई बालिका वधू भारत में रहती हैं। कम उम्र में गर्भवती होने से जान के खतरे का प्रतिशत और बढ़ जाता है।
सरकार द्वारा मातृत्व स्वास्थ्य को लेकर कई कानून और योजनाएं बनायी गई हैं, साल 1961 में मातृत्व हक कानून, 1995 से राष्ट्रीय मातृत्व सहायता योजना, इसके बाद 2006 में जननी सुरक्षा योजना लागू हुई जिसमें यदि घर में प्रसव होता है तो 500 रूपए और यदि स्वास्थ्य केंद्र में प्रसव होता है तो गांव में 1400 और शहर में 1000 रूपए की सहायता महिला को दी जाती है। जननी-शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (जेएसएसके) 2011 से चालू है। एन.आर.एच.एम. में मातृत्व स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान की बात की गई है। इसके अलावा नई स्वास्थ्य नीति 2015 प्रस्तावित है। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने इस साल पूरे देश में अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस पर महिलाओं के स्वास्थ्य को लेकर 8 से 10 मार्च 2015 तक विशेष अभियान चलाया।
इन सब प्रयासों के बावजूद मातृ मृत्यु दर में जितनी गिरावट आनी चाहिए थी, वह नहीं आ रही है। हम सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य से कोसो दूर हैं।
यह कितना दुर्भागयपूर्ण है कि आजादी के इतने सालों बाद भी महिलाओं को ऐसी सुविधा नहीं मिल पा रही है जहां वह सुरक्षित डिलिवरी करवा सकें। उन्हें पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधा मिल सके, कहने को हम 21 वीं सदी में हैं लेकिन आज भी महिलाओं को इंसान के बतौर नही देखा जाता है। उनकी स्थिति दोयम दर्ज की ही है। उनके साथ जाति, धर्म, लिंग, रंग के आधार पर भेदभाव और हिंसा अभी भी जारी है। ये बहुत जरूरी है कि समाज और सरकार मातृत्व हक की जरूरत और जिम्मेदारी को महसूस करें और इसे प्रमुखता से समझे। इसके लिए समाज और सरकार को मिल कर सघन रूप से काम करने की जरूरत है। सुरक्षित मातृत्व हक को लेकर सकारात्मक दृष्टिकोण एवं माहौल बनाए। महिलाओं को केवल बच्चा पैदा करने वाला माध्यम ना समझा जाये। उसे भी मातृत्व स्वास्थ्य का अधिकार मिले। मदर्स डे असल मायनों में तब ही सार्थक माना जायेगा जब देश की सभी महिलाओं को न केवल शत प्रतिशत सुरक्षित मातृत्व स्वास्थ्य मिल सके। बल्कि स्वास्थ्य सुविधाओं तक उसकी पहुंच हो और महिला को अपने बारे में निर्णय लेने का अधिकार हो।
उपासना बेहार


