मद्रास उच्च न्यायलय के आदेश के बावजूद असहमति को दबाने की एक और कोशिश

नई दिल्ली। 24 सितंबर 2015। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक तरफ तो संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में समावेशी विकास पर बोलने की तैयारी कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ एक बार फिर गृह मंत्रालय ने पर्यावरण संस्था ग्रीनपीस को दबाने की कोशिश तेज़ कर दी है।

ग्रीनपीस ने कहा है कि उस को आज सूचना मिली है कि उसके एक घरेलू बैंक खाते को बंद कर दिया गया है। ग्रीनपीस ने इसे मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश का उल्लंघन बताया है जिसमें अदालत ने गृह मंत्रालय द्वारा ग्रीनपीस के एफसीआरए पंजीकरण को निरस्त करने के आदेश पर आठ हफ्ते के लिये रोक लगा दी थी।

ग्रीनपीस की अंतरिम कार्यकारी निदेशक विनुता गोपाल ने कहा, “इस खबर से लगता है कि हमारी कानूनी प्रक्रियाएँ जारी रहेंगी, लेकिन हमें दृढ़ विश्वास है कि हमारी कानूनी बुनियाद मजबूत हैं। हम अपने खिलाफ इस नये हमले का कोई औचित्य नहीं देख रहे हैं। इस बार जिस बैंक खाते पर रोक लगाया गया है, उसमें हमारे हजारों भारतीय समर्थकों का अभिदान आता है। गृह मंत्रालय की यह कार्रवाई हमारे संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है। कोर्ट ने बारबार हमारे अस्तित्व, हमारे अभियानों और सरकार की नीतियों पर सवाल उठाने के हमारे अधिकारों को बरकरार रखा है। हमें यकीन है कि इस बार भी कोर्ट से हमें न्याय मिलेगा”।

गृह मंत्रालय का यह कदम ठीक उस समय आया है जब हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अमेरिका में एक खास राजनयिक यात्रा पर हैं, जहां उनका अमेरिकी राष्ट्रपति बराक़ आबोमा से मिलने, और संयुक्त राष्ट्र द्वारा आयोजित समावेशी विकास सम्मेलन में बोलने का कार्यक्रम है।

विनुता कहती है, “यदि संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य को हासिल करना है तो सरकार के लिये जरुरी है कि वह सिविल सोसाइटी के साथ स्वस्थ्य संवाद बनाए रखे। हम साथ मिलकर विश्व सरकारों की कोशिशों को बढ़ावा दे सकते हैं: विकसित देशों पर उनके जलवायु संबंधी दायित्वों को पूरा करने का दवाब बनाये रखकर, और विकासशील देशों में लोगों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा कर सके।”

विनुता ने आगाह करते हुए कहा, “भारत को विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश होने का गौरव हासिल हैं। लेकिन गृह मंत्रालय के द्वारा सिविल सोसाइटी को चुप करने की कोशिश से इस छवि को काफी नुकसान पहुंचा है। हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत ने अपनी रिपोर्ट में भारत सरकार द्वारा सिविल सोसाइटी को दबाने के इन प्रयासों की आलोचना की है। हमारे उप-राष्ट्रपति हामिद अंसारी ने भी स्पष्ट रूप से लोकतंत्र में असहमति के महत्व पर ज़ोर दिया है। उनके शब्दों में विचार विमर्श और विपरीत रायों को मद्दे-नज़र रखना लोकतंत्र का एक अहम हिस्सा है। उपराष्ट्रपित के इस कथन से हमें नैतिक शक्ति मिलती है कि ‘विभिन्न विचार प्रकट करना ना केवल एक आजादी है बल्कि एक उत्तरदायित्व भी है, क्योंकि असहमति को दबाने से हम लोकतंत्र के सार को शक्तिहीन करते हैं। व्यापक अर्थ में, असहमति प्रकट करने से गंभीर गलतियां रोकी जा सकती हैं, और रोकी गयी भी हैं।”

विनुता ने अंत में कहा, “ग्रीनपीस एक अत्यंत महत्वपूर्म भूमिका निभाता हैः पर्यावरण की सुरक्षा के लिये आवाज उठाने, और पर्यावरणीय अपराधों को दुनिया के सामने लाने में। सरकार की ऐसी मनमानी कार्रवाईयों से हम अपने लक्ष्य की ओर ध्यान को बंटने नहीं देंगे। हमारे अभियान जारी रहेंगे: साफ हवा, स्वच्छ ऊर्जा, भारतीय जंगलों को बचाने और समावेशी विकास के लिये।”