मध्यप्रदेश में शाला प्रबंधन व शाला विकास के लिये बनेगी कलेक्टिव
मध्यप्रदेश में शाला प्रबंधन व शाला विकास के लिये बनेगी कलेक्टिव
कलेक्टिव में शामिल होंगें प्रदेश भर के एसएमसी मेम्बर, पंचायत प्रतिनिधि और सामुदायिक लीडर्स
भोपाल, 17 मार्च 2016 – मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के आदिवासी बहुल तामिया विकास खण्ड में स्थित गोनावाड़ी गांव के प्राथमिक शाला की तस्वीर अब बदल चुकी है। यहाँ रोज सुबह साढ़े दस बजे शाला लगती है और शाम साढ़े चार बजे छुट्टी होती है। इस दौरान सभी शिक्षक और दर्ज बच्चे पूरे समय उपस्थित रहते हैं। यहाँ मध्यान्ह भोजन से लेकर पढ़ाई तक की सभी व्यवस्था नियमित और बेहतर है।
स्कूल में हुए इस बदलाव के पीछे दो ऐसी महिलाओं का हाथ है, जो खुद कभी स्कूल नहीं गयी हैं, लेकिन आज यह दोनों अपने गांव के स्कूल की निगरानी और उसे बेहतर बनाने में सहयोग कर रही हैं, जिससे सभी बच्चों को गुणवत्ता शिक्षा मिल सके।
द्रोपदी शाला प्रबंधक समिति की अध्यक्ष हैं और सूरजिया इस समिति की सदस्य हैं। वे कहती हैं कि ‘‘हम शाला प्रबंधन समिति की अध्यक्ष और सदस्य हैं, इसलिए स्कूल आकर यहां की व्यवस्था देखना हमारी जिम्मेदारी है”।
यह बातें यह बातें “शाला प्रबंधन व शाला विकास” के लिये भोपाल के आईकफ आश्रम में आयोजित दो दिवसीय राज्य स्तरीय सम्मेलन के दौरान निकल कर आयी हैं। इस सम्मलेन का आयोजन मध्यप्रदेश आर.टी.ई. फोरम और सहभागी संस्थाओं द्वारा किया गया था. जिसमें मध्य प्रदेश के 25 जिलों से करीब 200 एस.एम.सी. सदस्य सामुदायिक संगठनों के लीडर्स, स्थानीय निकायों के प्रतिनिधि, शिक्षक एवं स्वयं सेवी संस्थाओं के कार्यकर्ता शामिल हुए।
हमारे देश में सरकारी स्कूलों चर्चा ज्यादातर नकारात्मक बातों के लिये होती हैं जिनके चलते कई ऐसी सकारात्मक बातें भी जो आम-तौर पर चर्चा में नहीं आपाती हैं। इन्हें देखने के लिये कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं है, इंदौर के व्यास नगर झुग्गी बस्ती के स्कूल को ही देखा जाए तो जहाँ का शौचालय बहुत ही गन्दा रहते रहता था, इसलिए अधिकतर बच्चे विशेषकर लड़कियों को शौच के लिये घर जाना पड़ता था और एक बार जब वे घर जाती थीं तो फिर वापस स्कूल नहीं आती थीं। इस समस्या को लेकर समुदाय के लोग और प्रधानाध्यापक पार्षद के पास गये और उनसे स्कूल में सफाई की व्यस्था कराने के सम्बन्ध में बात की। वर्तमान में वहां सफाई कि व्यवस्था कर दी गयी है और अब बच्चे स्कूल से शाम पाँच बजे ही से घर पर वापस आते हैं।
जबलपुर विकासखंड के बरगी क्षेत्र में स्थित गांव सालीवाड़ा में तो मिडिल स्कूल के लिए जमीन नहीं मिल रही थी तो 65 वर्षीय राम कुंअर नेताम ने गांव में उसके लिये अपनी जमीन दान में दे दी। वे खुद चौथी तक ही पढ़ सके थे लेकिन वे शिक्षा के महत्त्व को बखूबी जानते हैं। उनका कहना है कि “मैं और मेरे बच्चे नहीं पढ़ सके तो क्या, मेरे गांव के बच्चे आगे तक पढ़ सकें बस यही सपना है” !
कुछ अध्यापक भी इस दिशा में अच्छे उदाहरण पेश कर रहे हैं। विदिशा जिले की त्योंदा तहसील स्थित कोहना गावं में सहरिया समुदाय के बच्चों को शाला से जोड़ने में हमेशा से समस्या रही है। प्राथमिक शाला के प्रधान अध्यापक ने इसके लिए विशेष प्रयास किया और सभी छात्र छात्राओ और उनके परिवारों से व्यक्तिगत रूप से मिलकर इस दिशा में आ रही व्यावहारिक दिक्कतों को समझने का प्रयास किया। बच्चों को शाला में लाने के लिये समुदाय से तालमेल बैठाया, कुछ दिनों में उनका समुदाय से एक मजबूत रिश्ता बन गया और फिर उन्होंने समुदाय के साथ इस दिशा में आ रही रुकावटों को दूर किया। उनके इस प्रयास से धीरे-धीरे स्कूल में आने वाले बच्चों कि संख्या बढ़ रही है।
मध्यप्रदेश आर.टी.ई. फोरम के आर.एन.स्याग का कहना है कि दो दिनों के इस सम्मेलन इस तरह के कई सकारात्मक अनुभव निकल कर आये हैं, जिससे पता चलता है कि कि प्रदेश के कई हिस्सों में समुदाय, पंचायत, शाला प्रबंधन समिति, शिक्षकों और सामाजिक संस्थाओं द्वारा अपने स्तर पर इस दिशा में कई ऐसे प्रयास किये रहे हैं जो दूसरों के लिए उदाहरण और माडल बन सकते हैं।
हमारी शिक्षा व्यवस्था में स्कूल और शिक्षक एक महत्वपूर्ण इकाई हैं, लेकिन इसमें समुदाय, पालक,एसएमसी,स्थानीयों की भी बड़ी भूमिका बनती है, सम्मेलन में इस बात पर भी चर्चा हुई कि कैसे स्कूलों के बेहतरी के लिये शाला और समुदाय के बीच दूरी कम हो, पालकों और शिक्षकों के बीच भरोसे का रिश्ता बने और सभी लोग एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप से बचते हुए अपनी-अपनी जिम्मेदारी उठाने कि दिशा में आगे आ सकें।
इस दौरान मध्य प्रदेश में शालाओं की सशक्तिकरण के लिये एक कलेक्टिव की जरूरत, इसकी संभावित भूमिका पर भी विचार हुआ जहां गांव से लेकर राज्य स्तर विभिन्न हितग्राही शाला की बेहतरी के लिये साथ आकर प्रयास करें और अपनी क्षमताओं,अनुभवों, को इस दिशा में लगा सकें। यह एक ऐसा मंच होगा जहां शिक्षा और स्कूलों के लिये एस.एम.सी. मेम्बर, सामुदायिक लीडर्स व स्थानीय निकाय के जन प्रतिनिधियों जुड़ सकेंगें।


