‘मनुष्य से बड़ा कौनसा लक्ष्य हो सकता है’- स्वयं प्रकाश

बनास जन के नए अंक का लोकार्पण

दिल्ली। सही अवलोकन और अच्छी नागरिकता से साहित्य में प्रतिबद्धता का निर्माण होता है। प्रतिबद्धता छौंक नहीं है जिसे कहानी में लगा कर कहानी मसालेदार बना दी जाए अपितु देश, जनता और मनुष्यता के प्रति लेखक का समर्पण (author's dedication to humanity) प्रतिबद्धता का निर्माण (creation of commitment) करता है।

यह कहना है सुप्रसिद्ध कहानीकार स्वयं प्रकाश का।

स्वयं प्रकाश ने जामिया मिलिया इस्लामिया के हिंदी विभाग द्वारा आयोजित सृजन संवाद कार्यक्रम में कहा कि नागरिक सचेतनता पक्षधरता तय करती है और यहीं से रचनाकार आधार व अधिरचना के अंतर को समझकर जनता के पक्ष में लिखना सीखता है।

इस अवसर पर स्वयं प्रकाश ने अपनी चर्चित कहानी 'जंगल का दाह' का पाठ किया, जिसमें आदिवासियों के विस्थापन, शिक्षा व्यवस्था और राजसत्ता के दमन का चित्रण किया गया है। कहानी में आए एक वाक्य - 'मनुष्य से बड़ा कौन सा लक्ष्य हो सकता है। खासकर जब उसकी मुश्कें बंधी हों, और पीठ तख्ते से सटी हो, चारों तरफ सशस्त्र सैनिकों का पहरा हो और सरपरस्ती के लिए पीठ पर राजा का हाथ भी हो।' की अनुगूंज देर तक बनी रही।

लोक कथा शैली की इस कहानी को सुनाने के स्वयं प्रकाश के अंदाज को श्रोताओं से भरपूर सराहना मिली। कहानी पाठ के बाद विद्यार्थियों के सवालों के जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि अच्छी रचना परतों वाले परांठे की तरह है। उन्होंने यहाँ आलोचना की जरूरत की चर्चा करते हुए कहा कि आलोचक इन परतों को खोलकर पाठक को अच्छी तरह आस्वाद लेना सिखाता है। इससे पहले विभागाध्यक्ष प्रो. हेमलता महिश्वर ने स्वयं प्रकाश का स्वागत किया।

संयोजन कर रहे डॉ. अजय नावरिया ने कथाकार स्वयं प्रकाश का परिचय देते हुए कहा कि प्रेमचंद की परम्परा में हिंदी कहानी को आगे बढ़ाने वाले कथाकारों में स्वयं प्रकाश अग्रणी हैं। आयोजन के पहले भाग में विभाग के नव आगंतुक विद्यार्थियों के लिए स्वागत एवं ओरिएंटेशन किया गया था।

इस भाग का संयोजन डॉ रहमान मुसव्विर ने किया।

आयोजन में हिंदी साहित्य और संस्कृति की पत्रिका 'बनास जन' के नए अंक का लोकार्पण प्रो. महेन्द्रपाल शर्मा, स्वयं प्रकाश तथा प्रो. हेमलता महिश्वर ने किया।

इस अवसर पर बनास जन के संपादक पल्लव ने कृतज्ञता प्रदर्शित करते हुए कहा कि युवा पाठकों के मध्य लोकार्पण होना बनास जन के लिए गौरव की बात है।

अंत में डॉ. इंदु वीरेंद्र ने आभार प्रदर्शन किया। आयोजन में हिंदी विभाग के डॉ. अनिल कुमार, डॉ. चंद्रदेव यादव, डॉ. कहकशां अहसान साद, डॉ. नीरज कुमार, डॉ. मुकेश कुमार मिरोठा, डॉ. विवेक दुबे सहित बड़ी संख्या में शोधार्थी और विद्यार्थी उपस्थित थे।

रपट - बनास जन