मुंबई में हुए समाजवादी समागम की एक रपट
मुंबई। अगस्त के दूसरे हफ्ते में देश भर से आए समाजवादियों ने मुंबई से करीब सत्तर किलोमीटर दूर युसूफ मेहर अली सेंटर में जब एक साथ आकर सामाजिक राजनैतिक बदलाव की साझा लड़ाई शुरू करने का संकल्प लिया तो नब्बे साल के समाजवादी चिन्तक डा जीजी पारीख भावुक हो गए थे। हाल के सालों में यह पहला मौका था जब भारत छोड़ो आंदोलन के सेनानी से लेकर आपातकाल के खिलाफ संघर्ष करने वाले एक जगह पर नजर आए। इससे एक दशक पहले पुणे में मधु दंडवते और सुरेन्द्र मोहन कि पहल पर समाजवादी एकजुट हुए थे और सोशलिस्ट फ्रंट बना था। इसके बाद अब जो नई पहल हुई है उससे समाजवादी खेमे को काफी उम्मीद भी है। आगामी तीस अक्तूबर पुणे में इस प्रक्रिया की दूसरी बैठक होने जा रही है। साथ ही दिसम्बर के दूसरे हफ्ते में पुरी में तीन दिन का एक प्रशिक्षण शिविर लगाया जाएगा। हालाँकि देश में समाजवादियों की एकजुटता की कई कोशिशे हुई हैं पर बहुत कामयाब नहीं रही। पर इस पहल में आंदोलन से लेकर सरकार चला रहे समाजवादियों के प्रतिनिधि भी शामिल हुए। ओडिशा से लेकर महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, केरल तक जल जंगल जमीन का सवाल उठाने वाले समाजवादी कार्यकर्त्ता इस सभा में आए थे तो समाजवादी पार्टी से लेकर जनता दल (यू) के प्रतिनिधि भी शामिल थे।
मुंबई से करीब सत्तर किलोमीटर दूर मुंबई गोवा मार्ग पर स्थित युसूफ मेहर अली सेंटर में दस ग्यारह अगस्त को हुए हुए समाजवादी समागम में सत्रह राज्यों से तीन सौ से ज्यादा समाजवादी कार्यकर्त्ता आए थे। बुजुर्ग समाजवादी जीजी पारीख के नब्बे साल पूरे होने के मौके पर समाजवादियों ने देश भर के समाजवादी धारा से जुड़े कार्यकर्ताओं को आमंत्रित किया था। कार्यक्रम में जीजी परख के अलावा पन्ना लाल सुराणा, भाई वैद्य, मेधा पाटकर, प्रोफ़ेसर आनंद कुमार, सांसद चौधरी मुनव्वर सलीम, पूर्व सांसद और समाजवादी पार्टी के जम्मू कश्मीर प्रदेश के अध्यक्ष शेख अब्दुल रहमान, डा सुनीलम , लिंगराज, अफलातून, विजयप्रताप समेत कई प्रमुख समाजवादी शामिल हुए और संकल्प लिया एक नई राजनीति का। रुक रुक कर हो रही बरसात के बीच ग्रामीण परिवेश के हरे भरे इस परिसर में देश भर के समाजवादियों के दो दिन के जमावड़े में जो मंथन हुआ उसमें समाजवादियों-वामपंथियों और गांधीवादियों के बीच नए सिरे से एकजुटता पर जोर दिया गया। इसके लिए एक प्रतिनिधि समूह के गठन का फैसला हुआ जिसके संयोजन की जिम्मेदारी डा सुनीलम को सौंपी गई। इस समूह में हर राज्य से आए एक प्रतिनिधि को शामिल किया गया है।
यह समूह आर्थिक-सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तन के लिए युवाओं, मेहनतकशों, किसानों, महिलाओं की शक्ति और मध्यम वर्ग तक समाज के विविध संवेदनशील, विचारशील तबकों का सशक्तिकरण के साथ सहभाग करेगा। इसके साथ ही एक साल में विविध शिविरों का आयोजन जो युवाओं को समाजवादी विचारधारा और कार्यक्रम से जोड़ेगा। यह समूह पुख्ता तैयारी के साथ देश भर में समाजवादी विकल्प यात्रा शुरू करेगा। भूमि, पानी, श्रमिकों के अधिकार जैसे मुद्दों पर और एफडीआई, विस्थापन, गैरबराबरी, सार्वजनिक संपत्ति के निजीकरण के खिलाफ जनआंदोलन को ताकत देगा।
समागम का उद्घाटन खांटी समाजवादी भाई वैद्य ने किया। उन्होंने इस मौके पर कहा कि समाजवादी लोगों का इस प्रकार का समागम हो यह जरूरत कई समाजवादी साथियों ने महसूस की जिसके बाद आज देश भर से समाजवादी कार्यकर्त्ता यहां जुटे हैं। उन्होंने आगे कहा कि जेपी, आचार्य नरेंद्र देव और लोहिया ने समाजवादी विचार के अलग पहलू पर अपनी अपनी पार्टियां बनाई। इससे मार्क्सवादी और गांधीवादी अलग हो गए। हमारी लडाई पूंजीवाद के खिलाफ है। डंकल प्रस्ताव ने देश को पूंजीवादी लागों के हाथ में सौंप दिया है। इससे निकलकर हमें अपने अलग-अलग संगठनों में इस पर विचार करके फिर एक साथ आने की जरुरत है।
मेधा पाटकर ने इस मौके पर कहा कि आज समाज में जनतंत्र धोखे में है। समाज में जिन्होंने सब कुछ दिया उन्हें कुछ भी नहीं मिला, उनके लिए काम करने की जरूरत है। इसलिए हम अपने अहंकार को दूर रखें और अपने-अपने संगठनों में इसकी चर्चा करे। प्रस्ताव पारित करें और एक अलग नाम से एक झंडे और एक विचार धारा के साथ संगठित हो जाएं तो हो सकता है कि हम इतिहास को बदल सकते हैं। मेधा पाटकर ने इस मौके पर लोकसभा चुनाव में बेहिसाब खर्च हुए पैसे का भी सवाल उठाया जिसके चलते मोदी को इतनी बड़ी जीत हासिल हुई। उन्होंने देश में साम्प्रदायिकता के बढ़ते खतरों को भी गंभीरता से लेने को कहा।
प्रोफ़ेसर आंनद कुमार ने भी लोकसभा चुनाव में पैसे और मीडिया की भूमिका पर सवाल उठाया। आनंद कुमार ने आजादी की लड़ाई से लेकार आपातकाल के खिलाफ समाजवादियों के संघर्ष का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि जमींदारी उन्मूलन के खिलाफ बड़ी लड़ाई समाजवादियों ने ही लड़ी और सफल रहे। महिलाओं की बराबरी से लेकर जाति व्यवस्था के खिलाफ समाजवादी ही लड़े।
इस मौके पर समाजवादी जन परिषद् के सुनील का लिखा एक नोट भी पढ़ा गया जिसमे उन्होंने कहा है कि सुनील भाई ने कहा था कि एक आदमी दूसरे का शोषण करता है यही पूंजीवाद की सीधी व्याख्या है। समाजवादियों के विचारों में फर्क आ गया है। सेक्युलॅरिज्म का अर्थ शब्दकोष में भी नहीं है। आज राज्य, बाजार और करिश्मा जिसके हाथ में है उसके पीछे सब चल रहे हैं। यह बदलने के लिए हमें मतभेद रखे लेकिन मनभेद न हो ऐसा संगठन निर्माण करना जरुरी है। सुभाष भटनागर ने कहा कि कांग्रेस का विकल्प के रूप में किसी अन्य संगठन के न होने के कारण लोगों ने इस बार भाजपा को चुनाव में जिता दिया। समाजवादियों का ऐसा एक विचाराधारा लेकर काम करने वाला देशव्यापी संगठन होता तो शायद यह नहीं होता। उन्होंने इसके लिए समान मुद्दों को लेकर काम करें ऐसे समाजवादी संगठन के निर्माण की जरुरत बताई। अभिजीत वैद्य ने कहा कि हमें मनुस्मृति और मार्केट स्मृति के खिलाफ लड़ना है यह एक चुनौती है। विज्ञान का उपयोग धर्म को ना समझकर किसी के बहकावे में आकर अंधे होकर मानने वाले लोग ज्यादा करते हैं।
समाजवादी समागम में देशभर के 17 राज्यों से आए तीन सौ से ज्यादा समाजवादी कार्यकर्ताओं की सक्रिय भागीदारी के चलते समागम में न केवल प्रस्ताव पारित हुआ, बल्कि भविष्य के कार्यक्रमों की ठोस रूपरेखा भी बनी। समाजवादी समागम की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए 30 अक्टूबर को पुणे में बैठक रखी गई है जिसके बाद उड़ीसा में 13, 14 और 15 दिसंबर को राष्ट्रीय शिविर का आयोजन किया जाएगा।
इस पहल में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले डॉ. सुनीलम ने कहा- जो फैसले हुए हैं उनमें एक वर्ष बाद समाजवादी विकल्प यात्रा शुरू करना महत्वपूर्ण है। इसके अलावा जनता ट्रस्ट की तरफ से समाजवादी संस्थाओं की अगले छह माह में बैठक का आयोजन किया जाएगा। देश भर के समाजवादी कार्यकर्ताओं ने जैसा उत्साह दिखाया है उससे काफी उम्मीद जगी है।
सुनीलम की इस टिपण्णी के बावजूद समाजवादी धारा को लेकर आम लोगों में अभी भी संशय की स्थिति है। इसकी मुख्य वजह उत्तर प्रदेश और बिहार में समाजवादी नेतृत्व की विफलता मानी जा रही है। उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव को ऐतिहासिक जनादेश मिला था पर तरह-तरह के दबावों के चलते वे मौका गंवाते जा रहे हैं और समाजवादी सरकार अलोकप्रिय हो रही है। यह बात अलग है कि अखिलेश यादव ने समाजवादी एजेंडा पर कोई ठोस काम भी नहीं किया वर्ना यह स्थिति पैदा नहीं होती। यही हाल बिहार में नीतीश कुमार का रहा और दोनों राज्यों में बीते लोकसभा चुनाव में भाजपा को अप्रत्याशित सफलता मिली। ऐसे में समाजवादी पहल की चर्चा होते ही इन दोनों सरकारों के कामकाज का लोग हवाला देते हैं जिन्होंने समाजवादी एजेंडा को हाशिए पर रख दिया है। यह समाजवादियों के खिलाफ एक मुद्दा बनता जा रहा है।
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अम्बरीश कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं। छात्र आन्दोलन से पत्रकारिता तक के सफ़र में जनता के सवालों पर लड़ते रहे हैं। जनसत्ता के उत्तर प्रदेश ब्यूरो चीफ रहे् हैं और इस समय जनादेश न्यूज़ नेटवर्क समाचार एजेंसी के कार्यकारी संपादक हैं।