दुर्भाग्य है देश के समाजवाद का कि जीवन की अंतिम समाजवादी पारी खेलने के लिए सभी लोहियावादी एकजुट हो रहे हैं। बिल्कुल नकलची की तरह संघ-परिवार की तर्ज पर जनता-परिवार बनाने के लिए उतावले हैं।

और यह जनता-परिवार बनाने की भूमिका मुलायम को दी गयी ? यह सही फैसला है। मुलायम को परिवार की चिंता करने का अभ्यास भी है। शायद वह इस जनता-परिवार को अपने परिवारवाद के ज्ञान से लाभान्वित करेंगें ?

जो व्यक्ति परिवार के बाहर कुछ सोच नहीं सका, वह समाजवाद के बारे में क्या सोचेगा ? लालू का क्या कहना ? सबों ने समाजवाद का जनाजा ही निकाला है।

क्यों हो रहे हैं एकजुट ? किस लिए और किसके लिए ?

इनकी चेतना में समाज और समाजवाद है ही नहीं। ये समाज की स्वार्थी ताकत हैं। इन्हें अपनी चिंता है। ये लोग समाजवाद के लिए नहीं, बल्कि अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहे हैं।

इस सड़ी चेतना से संघ-परिवार से मुकाबला सम्भव है क्या ? यह बैठक समाजवाद की ताबूत में एक और कील ठोंकने जैसी ही है। ये लोग अपने नकारे और निठल्लेपन से नरेन्द्र भाई को मजबूत ही करेंगें।

पुराने जनता-परिवार के साथी तो वहां पहले से मजबूती दे रहे हैं और भविष्य में और लोग भी मोदीयान में सवार हो सकते हैं। नितीश कुमार तो संघ परिवार को ताकतवर बनाकर लौटे ही हैं। हम इनके सुविधाजनक समाजवाद से वाकिफ हैं। यहाँ किसी भी संभावना का कोई द्वार खुल सकता है। कुछ भी सम्भव है।

जब भी बात होती है तो लोग कह देते हैं कि ये 'खांटी और पुराने' समाजवादी हैं। क्या करेंगें हम इन खांटी और पुराना का ? अगर हो खांटी तो रहें अपने घर में। क्यों समाजवाद के नाम पर भ्रम फैलाते घूम रहे हैं ?

नयी पीढ़ी का क्या लेना-देना है इनके समाजवाद से। क्यों नहीं आकर्षण है नौजवानों का इनमें ? विचारों और सिद्धांतों से लैस युवा कहाँ हैं यहाँ ? नयी जमीन पर समाजवाद की नयी पौध उगाने में इन्हें विश्वास ही नहीं है। इन्हें युवा नहीं हुडदंगी चाहिए, जिन्हें पायदान के तरह इस्तेमाल कर सकें।

इस जनता परिवार में बाजारवाद और वैश्वीकरण की मूढ़ता मौजूद है। जानते सब हैं पर करने की इच्छा नहीं और शायद साहस भी शेष ही है।
मैं मानता हूँ अराजक उपभोक्तावाद और खौफनाक बाजारवाद से निजात समाजवाद से सम्भव है। चमको-चमको के चाक्य-चिक्य में मेरा मन बिल्कुल नहीं रमता। मुकम्मल लड़ाई के लिए मेरे मन की तैयारी भी है। इनके होश और युवाओं के जोश को जोड़ने की इच्छा थी। अब स्वयं बेहोश हैं। ये संघर्ष तो दूर, सिखाने समझाने को भी तैयार नहीं हैं। बहुत ही डरा हुआ है यह जनता परिवार ?

देश में समाजवाद के प्रचार प्रसार की जरूरत है। जगतीकरण के खिलाफ जंग इस वक्त की एक जरूरी जरूरत है। इसको आप मेरी नॉस्टेल्जिया न समझ लें। विकास विरोधी नहीं हूँ पर जिसकी कीमत पर यह विकास है उस कीमत के खिलाफ हूँ।

मेरा मानना है कि इस अँधेरे के तीन प्रकाश, गाँधी,लोहिया और जयप्रकाश अभी नहीं हो सकते। अभी लोहिया और जेपी प्लस की बात करनी होगी।

मोदी, संघ-परिवार के नए औजार हैं। इसका मुकाबला जनता परिवार के भोथरे हथियार से सम्भव ही नहीं है। नयी चुनौती का मुकाबला नए औजार से करना होगा। जनता-परिवार से कुछ सीटें संसद और विधान सभा की सुरक्षित हो सकती हैं पर समाजवाद नहीं।

आओ मित्रो ! पवेलियन से बाहर आओ। पिच तैयार है समाजवादी - बैटिंग के लिए। हम खेलेंगें और जीतेंगे। जनता - परिवार एक मनोरंजक परिवार है इसको मनोरंजन के लिए रहने दें।

O- बाबा विजयेंद्र

बाबा विजयेंद्र, लेखक स्वराज्य खबर के संपादक हैं।