मरा नहीं है अक्षय, मरे हैं हम! यकीनन हमीं मरे हैं।
हमारा मसला बस इत्ता सा है कि कबंध बनकर भी पूरी तरह कबंध हो न सके हम। जबकि दसों दिशाओं में रोबोट गरज रहे हैं। टाइटैनिको ह रोबोट धुआंधार रिेएक्टर ह रोबोटमहाराजो।
दिशायें बायोमेट्रिक हैं।
हर चेहरा क्लोन है।
और हम बेगानी महजबीं की खातिर अब्दुल्ला दीवाना।
हमारे सहकर्मी सुमित गुहा विश्व मशहूर आर्टिस्ट हैं। आर्ट कालेज टाप करके हमारे यहां अभीतक सहायक पेस्टर हैं, पच्चीस साल हो गये। मजीठिया सिफारिशों से उनकी कलाकार हैसियत से कोई वास्ता नहीं है। जैसे हम सत्तर के दशक से अबतक सिर्फ घुइयां छीलते रहे हैं अपने ही स्वजनों से गालियां खाने के लिए, जबकि हैसियत तो दो कौड़ी की भी नइखै। अंधियारा के तेज बत्तीवाले कारोबारी जो हुए, हम यकीनन उनमें शामिल न हुए।
पलाश विश्वास