महानदी - दोनों राज्यों की सरकारें कर रहीं कार्पोरेट हितों की राजनीति
महानदी - दोनों राज्यों की सरकारें कर रहीं कार्पोरेट हितों की राजनीति
महानदी - दोनों राज्यों की सरकारें कर रही कार्पोरेट हितों की राजनीति
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का आरोप
रायपुर। उड़ीसा और छत्तीसगढ़ के माकपा नेताओं के एक संयुक्त प्रतिनिधिमंडल ने 19 व 20 अगस्त को केलो बांध, साराडीह और कलमा बैराज का अवलोकन किया। गुड़गहन, बरगांव और सांकरा आदि गांवो का दौरा किया तथा ग्रामीणों से बातचीत की।
रायगढ़ जिला बचाओ संघर्ष मोर्चा, जो 22 जनसंगठनों का साझा मंच है, के नेताओं के साथ माकपा नेताओं ने विचार-विमर्श किया।
प्रतिनिधिमंडल में उड़ीसा माकपा के सचिव अली किशोर पटनायक, सचिवमंडल सदस्य जनार्दन पाती, विधायक लखन मुंडा तथा छत्तीसगढ़ माकपा के सचिव संजय पराते, राज्य समिति सदस्य सुखरंजन नंदी, स्थानीय माकपा नेता श्याम जायसवाल तथा लंबोदर साव शामिल थे।
प्रतिनिधिमंडल के साथ जिला बचाओ संघर्ष मोर्चा के गणेश कछवाहा तथा रघुवीर प्रधान भी थे।
अपने दौरे के बाद प्रतिनिधिमंडल ने निम्न बयान जारी किया है :-
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी महानदी जल विवाद को लेकर उड़ीसा तथा छत्तीसगढ़ में बीजद, भाजपा, कांग्रेस तथा छजकां (जोगी) द्वारा चुनावी हितों से प्रेरित होकर की जा रही अर्नगल बयानबाजी तथा क्षेत्रीयतावादी भावनांए भड़काकर दोनों राज्यों की आम जनता को बांटने की साजिश की तीखी निंदा करती है।
माकपा का स्पष्ट मानना है कि महानदी जल विवाद को केन्द्र में रखकर जो विभाजनकारी राजनीति खेली जा रही है, वह दोनो राज्यों की जनता तथा देश के हितों के खिलाफ है।
अतः माकपा दोनों राज्यों की आम जनता से अपील करती है कि विभाजनकारी ताकतों से सावधान रहें तथा इन पार्टियों की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ देश के पैमाने पर विकसित हो रही एकता को और मजबूत बनाएं।
माकपा की राय है कि महानदी जल विवाद को राजनीति से हल नहीं किया जा सकता।
इसके समाधान के लिए केन्द्र सरकार की मध्यस्थता में दोनों राज्य सरकारों को बातचीत करनी चाहिए तथा तर्कसंगत व वैज्ञानिक समाधान खोजना चाहिए, जो दोनों राज्यों की आम जनता की बुनियादी जरूरतों को पूरा करें।
इसमें विफल रहने पर ट्रिब्यूनल का गठन, अंतर्राज्यीय जल विवाद कानून 1956 की धारा 3 के तहत, किया जा सकता है।
विवाद के हल होने तक, दोनो राज्यों को महानदी और उसकी सहायक नदियों पर बन रहे बांधों, बैराजों व अन्य निर्माण पर तुंरत रोक लगानी चाहिए।
इसके साथ ही, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि दोनों राज्यों को जल की जो मात्रा मिल रही है, उसमें किसी भी प्रकार की कटौती न हो।
माकपा प्रतिनिधिमंडल ने यह पाया है कि महानदी के किनारे बसे हुए गांव व ग्रामीण ही जल के उपयोग से वंचित कर दिए गए हैं।
फलस्वरूप गांवों में बदहाली का आलम है।
नदियों में कारखानों का प्रदूषित पानी छोड़ा जा रहा है, जो स्थिति को और विकराल बना रहा है। अतः दोनों राज्यों को सुरक्षित जल नीति बनानी चाहिए तथा जल प्रबंधन पर ध्यान देना चाहिए।
आज स्थिति यह है कि महानदी का पानी का अधिकांश भाग समुद्र में चला जाता है, और जो पानी बचता है, उसके उपयोग पर कार्पोरेटों को प्राथमिकता दी जा रही है।
दोनों राज्य सरकारों ने 100 से ज्यादा उद्योगों के साथ महानदी के पानी के लिए एमओयू किया है, जिनका मुख्य उद्देश्य मुनाफा कमाना ही है।
यह प्राकृतिक संसाधनों की लूट के सिवा और कुछ नहीं है।
माकपा का मानना है कि जल के निजीकरण की नीति के चलते आम जनता पेयजल तथा सिंचाई के पानी तक से वंचित हो गई है। दोनों प्रदेशों की आम जनता इन नीतियों का शिकार हो रही है। अतः माकपा मांग करती है कि पेयजल, कृषि सिंचाई तथा ग्रामीण लघु उद्योगों को जल के लिए प्राथमिकता दी जाए।
प्रतिनिधि मंडल ने अपने अवलोकन में यह पाया है कि जो बैराज बनाए गए हैं, उनसे किसी भी प्रकार की नहर नहीं निकाली गई है।
स्पष्ट है कि यह जल संग्रहण किसानों को सिंचाई का पानी देने के लिए नहीं बल्कि उद्योगो की जरूरतों की पूर्ति के लिए किया जा रहा है।
ग्रामीणों ने जानकारी दी है कि डूबान क्षेत्र का अभी तक अधिग्रहण नहीं किया गया है और किसान पुनर्वास और उचित मुआवजे से ही वंचित है।
माकपा मांग करती है कि नहरों के जरिये किसानों को पानी दिया जाए और उनकी कृषि भूमि का वर्तमान भूमि अधिग्रहण कानून के तहत उचित मुआवजा दिया जाए।


