महिला मुख्यमंत्री के राज में असुरक्षित महिलाएं
महिला मुख्यमंत्री के राज में असुरक्षित महिलाएं
निर्मल रानी
हत्या,डकैती बलात्कार जैसे जुर्म निश्चित रूप से राष्ट्रव्यापी अपराध हैं। शायद ही देश का कोई राज्य ऐसा हो जो ऐसे अपराधों से अछूता हो। हां इतना ज़रूर है कि देश के कुछ राज्यों में ऐसे अपराधों का ग्राफ कहीं नीचे है तो कहीं ऊपर। यहां तक कि देश की राजधानी दिल्ली जिसे कि पूरी तरह सुरिक्षत तथा अपराध मुक्त होना चाहिए था निरंतर बढ़ते जा रहे अपराधों के कारण वह भी अब अपराधों की राजधानी कही जाने लगी है। दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को हालांकि दिल्ली प्रदेश का एक सफल, योग्य,सक्षम,ं कुशल एवं लोकप्रिय मुख्यमंत्री गिना जाता है। परंतु गत् कुछ वर्षों में उन्हीं के शासन काल में दिल्ली में होने वाले अपराधों की संख्या में तेज़ी से इज़ाफा भी हुआ है। दिल्ली में भी जहां हत्यारों को शासन व प्रशासन का भय नहीं है और हत्यारे आए दिन दिल्ली राजधानी क्षेत्र में हत्या जैसे अपराधों को बे रोक-टोक अंजाम देते फिर रहे हैं वहीं बलात्कारी प्रवृति के अपराधी भी इस बात का कतई लिहाज़ नहीं कर रहे कि राज्य की मुख्यमंत्री एक महिला हैं।
बेशक बलात्कार व हत्या जैसे अपराध इस समय पूरे देश में कहीं न कहीं घटित हो रहे हैं परंतु देश क ा सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश इस समय ऐसे अपराधों में अपना नाम सबसे आगे किए हुए है। हालांकि उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री स्वभाववश काफी सख़्त,प्रशासन पर मज़बूत पकड़ रखने वाली तथा अपराध व अपराधियों से सख़्ती से निपटने वाली एक दबंग दलित महिला मुख्यमंत्री होने की छवि रखती हैं। यहां तक कि उन्हीं की अपनी पार्टी बहुजन समाज पार्टी के भी कई मंत्री व विधायक अपने किसी न किसी अपराधिक कारगुज़ारियों के चलते मायावती के 'प्रकोप का शिकार हो चुके हैं। परंतु इन सब के बावजूद उत्तर प्रदेश में अपराधिक घटनाएं कम होने या नियंत्रित होने के बजाए लगातार बढ़ती ही जा रही हैं। और उत्तर प्रदेश में निरंतर बढ़ती जा रही बलात्कार व हत्या जैसी घटनाओं ने राज्य के विपक्षी दलों को यह प्रचारित करने का सुनहरा मौक़ा उपलब्ध करा दिया है कि उत्तर प्रदेश में चारों ओर अराजकता का वातावरण है। कानून व्यवस्था पूरी तरह चौपट है तथा मुख्यमंत्री का शासन व प्रशासन से नियंत्रण समाप्त हो गया है। इतना ही नहीं बल्कि इन्हीं निरंतर बढ़ती बलात्कार व हत्या जैसी घटनाओं को लेकर विपक्षी दल मुख्यमंत्री मायावती से नैतिकता के आधार पर त्यागपत्र दिए जाने की मांग भी कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश के लिए गत 18 व 19 जून के लगातार दो दिन बलात्कार व हत्या के क्षेत्र में गोया कीर्तिमान स्थापित करने वाले दिन के रूप में गिने जाएंगे। इन दो दिनों अर्थात मात्र 48 घंटों में पूरे प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर बलात्कार अथवा बलात्कार के बाद हत्या किए जाने के सात संगीन मामले दर्ज किए गए। इनमें हरदोई में एक गूंगी व बहरी दलित किशोरी को पहले अपराधियों ने बुरी तरह मारा पीटा फिर बाद में उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया। इसी प्रकार एटा में दो बच्चों की मां एक 35 वर्षीय महिला के साथ पांच दबंगों द्वारा उसी के घर में गैंग रेप किया गया बाद में उसके चीखऩे-चिल्लाने पर उसे जि़ंदा जला दिया गया। इसी प्रकार गोंडा जि़ले में एक नाबालि$ग दलित किशोरी तीन दिनों तक अपने घर से लापता रही। बाद में उस कन्या का शव क्षत-विक्षत अवस्था में पाया गया। इस कन्या के साथ बलात्कार तथा बाद में इसकी हत्या किए जाने का संदेह है। इसी तरह फरूखाबाद में एक 22 वर्षीय कन्या द्वारा जब बलात्कार की कोशिश का विरोध किया गया तो बेखौफ गुंडों ने उसे गोलियों से भून डाला। ऐसे ही क़न्नौज में गढ़वा बुजुर्ग गांव में एक 14 वर्षीय अव्यस्क दलित कन्या से दो दबंगों ने जबरन बलात्कार किया। इस मासूम कन्या ने जब राक्षसों की इस कोशिश का विरोध किया तो गुन्डो ने पाशविकता की सभी हदें लांघते हुए उस मासूम की आंखें फोड़ दीं। इसी प्रकार फिरोजाबाद में भी एक नाबालिग लड़की के साथ सामूहिक दुराचार करने की $खबर है। मऊ व बस्ती से भी बलात्कार के मामले दर्ज किए जाने के समाचार हैं। कानपुर में भी एक औरत को अपराधियों द्वारा नशीला पदार्थ खिलाया गया तथा दो दिनों तक उसके साथ सामूहिक दुराचार किया गया। इस महिला को अपराधियों ने एक होटल में बंधक बनाकर रखा।
उपरोक्त सभी मामलों को लेकर राज्य सरकार व अधिकारियों का कहना है इन सभी मामलों में कार्रवाई की जा रही है तथा गिरफ्तारियां भी हो रही हैं। परंतु विपक्ष सरकार के इस तर्क को गले से नहीं उतार पा रहा है। विपक्ष का साफतौर पर यह इल्ज़ाम है कि प्रदेश में दलित महिला मुख्यमंत्री होने के बावजूद महिलाओं पर विशेषकर दलित महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों में भारी इज़ाफा हुआ है। अपराधियों के हौसले बुलंद हैं जिसके परिणामस्वरूप राज्य में महिला उत्पीडऩ अपने चरम पर है लिहाज़ा विपक्षी दलों की मांग है कि मुख्यमंत्री मायावती नैतिकता के आधार पर त्यागपत्र दे दें।
दरअसल बलात्कार व बलात्कार के बाद हत्या जैसे संगीन व घिनौने अपराध के लिए राज्य,प्रशासन व शासन की बदनामी का कारण जहां पेशेवर किस्म के अपराधी मानसिकता के लोग हैं वहीं स्वयं बहुजन समाज पार्टी के नेताओं, कई अधिकारियों तथा राज्य की पुलिस ने भी प्रदेश की मायावती सरकार को व राज्य की कानून व्यवस्था को बदनाम करने में कोई कम योगदान नहीं किया है। इसी वर्ष फरवरी के प्रथम सप्ताह की वह घटना अभी पूरे देश को भलीभांति याद होगी जबकि राज्य के बांदा जि़ले के एक बहुजन समाज पार्टी के बाहुबली विधायक पुरुषोत्तम द्विवेदी द्वारा काफी लंबे समय तक एक पिछड़े वर्ग की 17 वर्षीया लड़की के साथ लगातार बलपूर्वक बलात्कार किया गया। बाद में इस घटना ने राज्य की राजनीति में तूफान खड़ा कर दिया था। कांग्रेस नेता राहुल गांधी सहित कई विपक्षी दलों के तमाम वरिष्ठ नेताओं ने बांदा में मायावती के इस बाहुबली विधायक के विरुद्ध उसी के गृहनगर में मोर्चा खोल दिया था। आखिर कार उस दरिंदे व बेशर्म बहुजन समाज पार्टी के बाहुबली विधायक पुरुषोत्तम द्विवेदी को जेल जाना पड़ा। परंतु तब तक काफी देर हो चुकी थी तथा बीएसपी के इस विधायक के इस काले कारनामे के चलते पार्टी व मायावती सरकार काफी बदनाम हो चुकी थी।
कथित बलात्कार व हत्या की ऐसी ही घटना पिछले दिनों लखीमपुर जि़ले के निघासन क्षेत्र में भी घटी। आरोप है कि यहां पुलिस कर्मियों ने एक नाबालिग लड़की को पकड़कर पहले थाने में ही उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया बाद में उसकी हत्या कर डाली। इतना ही नहीं बल्कि अपने कुकर्मों पर पर्दा डालने के लिए इन पुलिस वालों ने ही कथित रूप से इस कन्या के गले में रस्सी बांधकर उसे मात्र 4-5 फुट ऊंचे पेड़ से लटकाने की असफल चेष्टा की ताकि पुलिस वाले यह कह सकें कि लड़की द्वारा फांसी लगाकर आत्महत्या की गई है। परंतु आम लोगों की आंखों में धूल झोंकने के इन प्रयासों के बावजूद पुलिस वालों का यह अपराध छुप नहीं सका। बाद में इस मामले में मुख्यमंत्री मायावती ने सख्त कदम उठाते हुए पहले पूरे थाने को निलंबित कर दिया तथा बाद में जि़ला एस पी सहित कई आला अधिकारियों के स्थानांतरण के आदेश भी जारी कर दिए। इस मामले ने भी जहां विपक्ष को मायावती व उनकी सरकार के विरुद्ध मुखरित होने का अवसर दिया वहीं मायावती सरकार के गैर जि़म्मेदार तथा अपराधी मानसिकता के पुलिसकर्मियों की भी पोल खोलकर रख दी।
उपरोक्त घटनाओं से यह साफ ज़ाहिर होता है कि भले ही मायावती की शासकीय क्षमता को लेकर यह आम धारणा क्यों न हो कि वह वास्तव में बहुत सख्त प्रशासन चलाने वाली एक दबंग महिला हैं। परंतु उनके अपने ही सहयोगी तथा उनका अपना ही शासन तंत्र विशेषकर पुलिसकर्मी उन्हें व उनकी सरकार को बदनाम करने में कोई कसर बाकी नहीं रखना चाहते। ऐसे में मुख्यमंत्री मायावती के समक्ष जहां पेशेवर,दबंग तथा बाहुबली प्रवृति के अपराधियों से निपटने की भारी चुनौती है वहीं उनके सामने अपने ही इर्द-गिर्द के बदचलन व दुष्ट नेताओं तथा अपने ही शासन व्यवस्था के तमाम अधिकारियों व सुरक्षाकर्मियों पर भी सख्त नज़र रखने की व उन्हें नियंत्रित रखने की भी सख्त ज़रूरत है। अन्यथा विपक्ष के इस आरोप को नज़रअंदाज़ नहीं जा सकता कि एक दलित महिला के राज्य में केवल दलित ही नहीं बल्कि सभी वर्गों की महिलाएं अपनी इज़्ज़त आबरू यहां तक कि अपनी जान की सुरक्षा तक को लेकर भयभीत हैं व स्वयं को असुरक्षित महसूस कर रही हैं।


