माकपा की मांग, बघेल सरकार सुप्रीम कोर्ट में भेजे वनाधिकार विशेषज्ञ वकील, बेदखली से करे इंकार
माकपा की मांग, बघेल सरकार सुप्रीम कोर्ट में भेजे वनाधिकार विशेषज्ञ वकील, बेदखली से करे इंकार

रायपुर, 21 जुलाई 2019. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (Communist Party of India (Marxist)) ने वनभूमि से आदिवासियों को बेदखल करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश (Supreme Court order to oust tribals from forest land) के खिलाफ भूमि एवं वन अधिकार आंदोलन (Land and Forest Rights Movement) द्वारा आयोजित देशव्यापी आंदोलन का समर्थन किया है तथा सुप्रीम कोर्ट से इस आदेश को रद्द करने की मांग की है.
आज यहां जारी एक बयान में माकपा राज्य सचिवमंडल ने रेखांकित किया है कि इस आदेश के क्रियान्वयन से पूरे भारत में 1.5 करोड़ और छत्तीसगढ़ में 25 लाख से अधिक आदिवासियों को विस्थापित होना पड़ेगा. यदि ऐसा होता है, तो यह आदिवासियों के खिलाफ युद्ध की घोषणा (Declaration of war against tribals) ही है और आदिवासियों के साथ हो रहे ऐतिहासिक अन्याय को जारी रखने में सुप्रीम कोर्ट की भी भूमिका मानी जाएगी.
माकपा राज्य सचिव संजय पराते ने छत्तीसगढ़ सरकार से मांग की है कि 24 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में हो रही सुनवाई में एक ऐसे अधिवक्ता को भेजें, जो वास्तव में आदिवासी वनाधिकार कानून का विशेषज्ञ हो और कोर्ट को इसके वास्तविक प्रावधानों से अवगत करा सके, जिसमें किसी भी रूप में बेदखली का प्रावधान ही नहीं है. यह कानून वर्तमान में सभी वन एवं पर्यावरण कानूनों से ऊपर है, इसलिए सरकार को आदिवासियों की बेदखली के किसी भी आदेश का दमदारी से विरोध करना चाहिए.
वन संरक्षण कानून में आदिवासी विरोधी संशोधन Anti-tribal Amendments in Forest Conservation Law
माकपा नेता ने कहा कि वन संरक्षण के नाम पर कानून में जो आदिवासी विरोधी संशोधन किए जा रहे हैं, उसका असली मकसद जल, जंगल, जमीन, खनिज और अन्य प्राकृतिक संपदा को कार्पोरेटों को मुनाफे के लिए सौंपना और इसके खिलाफ विरोध की किसी भी आवाज़ को कुचलना ही है. इसका एकमात्र जवाब है कि जंगल आदिवासियों के हैं और वे इसे नहीं छोड़ेंगे. इसी घोषणा के साथ पूरे देश में आंदोलन का आव्हान किया गया है.


