मानसून हो न हो, मेघ बनकर बरसेंगे जेटली।
मानसून हो न हो, मेघ बनकर बरसेंगे जेटली।
इधर देश में नये तूफान का अंदेशा है कि संभल जाओ, मेरे वतन के लोगों, भूलना नहीं खूनी अस्सी और नब्वे के दशक की हिंदुत्व के सैलाब के बीच चिनगारियां भी सुलगने लगी हैं। अभी 1984 में सिख नरसंहार के हत्यारे छुट्टा घूम रहे हैं, वैसे ही जैसे बाबरी विध्वंस और उसे आगे-पीछे अब तक जारी दंगों के बेरहम दंगाई और भोपाल त्रासदी और गुजरात के नरसंहार के मनुष्यता विरोधी तमाम युद्धअपराधी।
हम बांग्लादेशी नहीं है कि युद्ध अपराधियों को फांसी के तख्त तक पहुंचाने की हिम्मत करें क्योंकि हमारी राष्ट्रीयता हमारा हिंदुत्व धर्मोन्मादी है और उनकी राष्ट्रीयता उनकी मातृभाषा है, जिसके लिए वे अनंत कुर्बानियां अब भी दे रहे हैं। सिर्फ ब्लागरों की खबरें पढ़कर न समझें बांग्लादेश और न बांग्लादेश तसलिमा का रचना संसार है।
इस सिलसिले पर नजर रखे कि जख्म अभी तक हरे हैं कि जख्म अभी तक गहरे हैंः
हमारा बचपन बंगाली सिख पंजाबी बर्मी तिब्बती शरणार्थियों का साझा चूल्हा रहा है। वह साझा चूल्हे की विरासत तो अब खैर सिवाय मेरे गांव बसंतीपुर में इस जहां से हमेशा हमेशा के लिए खत्म है, लेकिन उसकी दहक महक मेरी बची खुची जिंदगी अब भी है।
शरणार्थी उपनिवेश तबके नैनीताल की तराई में जन्मे पले बढ़े होने की वजह से बंगीय जड़ों से जुड़े रहने की मरणपण कवायद में लगे हमारे बुजुर्गों की मेहरबानी से बंगाल और बांग्लादेश के बारे में हम लोग शायद मूल बंगीय भूगोल से कुछ ज्यादा ही सचेत रहे हैं।
सीमा क्षेत्रों में गलियारों में बेनागरिक नरकयंत्रणा तो देश भर में शरणार्थी उपनिवेशों की अनंत व्यथा कथा अब भी है, जिसे बंगाल और बांग्लादेश और असम की मुख्यधारा के जनगण शायद ही बूझ रहे होंगे।
तब हम चौथी कि पांचवीं के ही छात्र थे और हमने तब गलियारा समस्या को लेकर बेरुबाड़ी आंदोलन पर नारी चरित्र विहीन नाटक खेला था। स्मृतियां धूमिल हो रही हैं और अब बांग्लादेश के जनम से पहले के उस नाटक का नाम याद नहीं आ रहा है।
वह विशुद्ध शरणार्थी समय नेहरु-गांधी के विरुद्ध था और इस गलियारे विवाद के लिए गलियारे के लोग ही नहीं, बल्कि बाकी शरणार्थी संसार आपाधापी में सत्ता हस्तांतरण के मध्य बंगाल, काश्मीर और पंजाब बजरिये सत्ता के दावेदारों को हाशिये पर धकेल कर हिंदुस्थान बना कर उस पर काबिज होने की वारदात से लहूलुहान रहा है। तब हम भारत विभाजन पर लिखे पंजाबी, बांग्ला, अंग्रेजी और हिंदी का तमामो साहित्य आर्यसमाजी संघी गुरुदत्त के लिखे उपन्यासों के साथ निगल रहे थे।
हम अचानक हिंदू साम्राज्यवाद की बात कर नहीं रहे हैं।
मीडिया में नौकरी करते हुए पूरे पैंतीस साल और लिखते हुए करीब बयालीस साल बिता देने के बाद भाषा कुछ तीखी हो गयी होगी वरना बचपन से हम अपने बंगाली सिख बुक्सा थारु स्वजनों के चेहरे पर हिंदू साम्राज्यवाद का बेपरदा चेहरा देख रहे थे।
गृहभूमि से उखाड़े गये लोगों के मध्य गृहभूमि से उजाड़े जा रहे आदिवासियों का आंखों देखा हाल है हमारा बचपन और इसलिए बचपन से ही आदिवासी भी हमारे अपने लोग हैं और उनके अंतहीन विस्थापन के साथ नत्थी हिंदू साम्राज्यवाद का नंगा चेहरा हमारे लिए कोई सोलह मई के बाद का अजनबी चेहरा नहीं है।
सामना के संपादकीय में हिंदुस्थानी लष्करी जवानांच्या रक्ताने पुन्हा एकदा माखले के बहाने हिदुत्व के झंडे बुलंद करने के लिए सैन्य राज्यतंत्र की जोरदार वकालत की है तो संगत में रामधुन शाश्वत है।
शिवसेना खुलकर कह रही है कि मोदी महाराज राममंदिर पर भी मन की बातें करें।
प्रसंग यहां मणिपुर में उग्रवादी हमले में मारे जाने वाले जवानों के संदर्भ में हिंदुत्व राजकाज की आलोचना है और विषय विस्तार में हिंदुत्व के अखंड नक्शे पर सैन्यतंत्र का नक्शा है।
शिवसेना जो कहने लगी है दो टूक शब्दों में वह दरअसल हिंदुस्थान में मुकम्मल सैन्य शासन का हिंदुत्व एजेंडा सलवा जुड़ुम है।
शिवसेना जो कहने लगी है दो टूक शब्दों में वह दरअसल भारत में पूंजी के हितों के मद्देनजर सलवा जुड़ुम और सशस्त्र सैन्यविशेषाधिकार का अखंड रामायण पाठ है।
प्रसंगःमणिपुर के चंदेल जिले में गुरुवार को विद्रोहियों ने सेना के एक काफिले पर घात लगाकर हमला कर दिया। इस हमले में सेना के 20 जवान शहीद हो गए, जबकि 11 अन्य घायल हुए हैं।
इस हमले की जिम्मेदारी उल्फा समेत चार आतंकी संगठनों ने ली है। हमले के बाद मणिपुर से सटे अंतर्राष्ट्रीय बॉर्डर को सील करने का आदेश दे दिया गया है। इस हमले की जांच एनआईए करेगी।
जाहिर है कि सुरक्षा बलों ने हत्यारों को गिरफ्तार करने के लिए बड़े पैमाने पर अभियान शुरू किया है। इसका आशय पूर्वोत्तर भारत, देश के बाकी आदिवासी भूगोल और काश्मीर के लोगों के अलावा बाकी देश समझ ही नहीं सकता।
समझता तो इरोम शर्मिला को चौदह साल तक आमरण अनशन करते रहने की जरुरत नहीं होती है। मिथकीय सीता के वनवास पर तो महाकाव्यीय आख्यान का पाठ हमारा धरम कर्म है लेकिन अपने भारत के अभिन्न मणिपुर की एक जीती जागती नारी की संघर्षगाथा से बाकी भारत की कोई सहानुभूति नहीं है, इसके बावजूद खुद को लोकतांत्रिक कहने में हमें शर्म लेकिन आती नहीं है।
इसी बीच पड़ोस को जीतने के मोदियापा के मध्यतेज से तेज होती जा रही है रामधुन।
इसी के मध्य सेनसेक्स की उछलकूद से परेशां ब्याजदरों में कटौती और पूंजी को हर संभव छूट और मुनाफावसूली के सात चैक्स होलीडे मुहैया कराने के आर्थिक प्रबंधक वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कमजोर मानसून को लेकर व्यक्त की जा रही आशंकाओं को दूर करते हुए कहा कहा कि ऐसे अनुमान के आधार पर मुद्रास्फीति या फिर दूसरे संकट के बारे में किसी निष्कर्ष पर पहुंचना अतिश्योक्ति होगी।
जाहिर है कि मानसून हो न हो, मेघ बनकर बरसेंगे जेटली।
जेटली ने कहा कि पिछले 48 घंटों और जब से भारतीय मौसम विभाग ने मानसून की कमी को लेकर पूर्वानुमान घोषित किया है, अतिश्योक्तिपूर्ण तरीके से निष्कर्ष लगाये जा रहे हैं, इसलिये इस विषय पर वित्त मंत्रालय के विचारों को व्यक्त करना जरूरी हो गया था।
पलाश विश्वास


