दलितों और पिछड़ों में अलगाव तैयार करने में फेल हो गया हिंदुत्व का यह समरसता प्रयोग- मायावती का बयान
हालात संगीन हैं।...कि मुलायम लालू के साथ खड़े मोदी हैं।
बहुजन नेता मायावती की हम बहुत इज्जत करते हैं क्योंकि वे पहली नेता हैं अंबेडकरवादियों में जिने बहुजन हिताय नारे को सर्वजन हिताय में तब्दील कर दिया है और मजा देखिये कि अंबेडकरी लोग उन्हें ब्राह्मणवादी कहते अघाते नहीं हैं। यही है गौतम बुद्ध का पथ। बाबासाहेब का भी जाति उन्मूलन का एजेंडा यही है।
मायावती की राजनीति कितनी कामयाब है और कितनी नाकामयाब है, हम यहां इसकी चर्चा करेंगे नहीं। राजनीति की मजबूरियां होंगी अलग कि अस्मिताओं का दायरा तोड़कर बहुजन सर्वजन बनेगा नहीं और अल्पजन जो अलीबाबा चालीस चोर है, वह बहुजन के खात्मे और सफाये को लिए सारवजनीन झूठ का तंत्र चलायेगा।
मायावती ने अपने को बदला है और हमने जिस मायावती को अस्सी के दशक में बिजनौर और हरिद्वार से लेकर यूपी और देश के कोने-कोने में आग बरसाते देखा है,जो जात-पांत की राजनीति, धर्म-अधर्म की राजनीति के झंडेवरदार हैं, उनकी तरह वे कोई घृणा अभियान चला नहीं रही हैं। लफ्फाजी के बदले मायावती अरसे से दो टूक बोल रही हैं।
भावनाओं और उन्माद की कारपोरेट राजनीति में इस कायाकल्प का स्वागत किया जाना चाहिए।
आज अगर बजट लीक का करिश्मा अंबानी अडानी और एस्सार के सौजन्य से नहीं हुआ रहता और न कामरेड गोविंद पानसरे के बलिदान से हम इतने लहूलुहान होते तो हम रोजनामचे की शुरुआत मायावती को नीला सलाम लाल सलाम दागकर करते।
बिहार प्रसंग पर उनका ताजा बयान उम्मीद बांधता है कि अगर दो चार कदम वे और आगे बढ़ायें तो नीला लाल भी हो सकता है और लाल नीला भी हो सकता है।
मनुस्मृति के तिलिस्म को तोड़ने के लिए भावुक अस्मिताओं का जाल तोड़ना बेहद जरूरी है।
हम देखते रहे हैं कि कैसे पिछड़ा-अति पिछड़ा और दलित-अति दलित जैसे जुमले रचकर बहुजन समाज को बांटकर बदलाव को रोकने की मोर्चाबंदी होती रही है।
मुसहरों का हवाला देकर खुलकर बोली लगाने वाले जीतन राम मांझी को कैसे नया मोदी बनाने का प्रकल्प चालू कर दिया गया। फिर दलितों को अतिदलितों के मुकाबले, दलितों को पिछड़ों और मुसलमानों के मुकाबले खड़ा करने की कवायद होती रहीं।
बहुजन जब तक सर्वजन नहीं बनेगा, ये हरकतें और साजिशें जारी रहेंगी।
मायावती ने सबसे पहले बयान जारी किया है कि दलितों और पिछड़ों में अलगाव तैयार करने में फेल हो गया हिंदुत्व का यह समरसता प्रयोग।
यह बयान न मुलायम न लालू और न नीतीश की ओर से आया है।
हालात संगीन हैं।
कि मुलायम लालू के साथ खड़े मोदी हैं।
सर्वजन सिर्फ नारा नहीं है और न चुनावी समीकरण हैं, इसे भी समझ लें मायावती और बहुजन को दरहकीकत सर्वजन बनाकर इस मनुस्मृति तिलिस्म को तोड़ने खातिर लाला नीले में बंटे मेहनतकश तबके को एकजुट करने की मुहिम में लग जायें, तो भारत के प्रधानमंत्री बनने से बड़ी होगी उनकी यह उपलब्धि।
पलाश विश्वास