मित्रों सच बोलो क्योंकि झूठ पकड़ा जा सकता है
पारदर्शी समय में झूठ का रथ
वीरेन्द्र जैन
हमारे समय को सूचना क्रान्ति के युग की तरह पहचाना जा रहा है। यह नई तकनीक के कारण ही सम्भव हो सका है। भूमण्डलीकरण का विचार इसी कारण विस्तार पा सका है क्योंकि अब पुरानी तरह की सीमाबन्दी और गोपनीयता सम्भव नहीं रह गयी है।
विकसित देशों के सैटेलाइट आज एशिया के देशों के बाजारों के साइनबोर्ड तक पढ़ सकते हैं।
आश्चर्यजनक है कि हमारे देश के राजनेता अभी भी ऐसे झूठ के सहारे लोकतंत्र के रथ को हांकने की कोशिश कर रहे हैं जो साफ साफ पकड़ा जा सकता है।
आज अपने देश में ही सैकड़ों चैनलों और हजारों अखबारों के लाखों सम्वाददाता व कैमरामैन चौबीसों घन्टे किसी सामान्य असामान्य गतिविधि को कैमरे में कैद करने और उसे समाचार बना दुनिया भर में प्रसारित करने के लिए सक्रिय हैं।
मोबाइलों में ही नहीं पैनों, घड़ियों, बटनों और चश्मों तक में कैमरे लगने लगे हैं और स्मार्ट/मोबाइल फोनों की संख्या देश की आधी से भी अधिक आबादी के करों में सुशोभित हो रही है।
ज्यादातर स्मार्ट फोनों में ऐसे सक्षम कैमरे लगे हुए हैं कि प्रोफेशनल फोटोग्राफरों को छोड़ कर अलग से कैमरा रखने की जरूरत समाप्त हो गयी है, जो आडियो, वीडियो के साथ उसे तुरंत ही वायरल कर देने की क्षमता रखते हैं।
ऐसी पारदर्शिता से राजनीति का स्वरूप भी बदल रहा है।
भले ही यह काम पहले भी होता रहा हो, किंतु अटल बिहारी सरकार के दौरान समाचार चैनलों के सम्वाददाताओं ने देश की सत्तारूढ़ पार्टी के अध्यक्ष को रक्षा सौदों के लिए सिफारिश करने हेतु नोटों की गिड्डियां दराज में डालते व डालरों में मांगते दिखा कर अपना पद छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया था।
उसी दौर के तत्कालीन रक्षामंत्री को भी त्यागपत्र देना पड़ा था।
इन्हीं संवाददाताओं ने संसद सदस्यों को सवाल पूछने और सांसद निधि से धन आवंटन के लिए रिश्वत लेते दिखा कर पद छोड़ने को मजबूर कर स्वयं को लोकतंत्र में सचमुच चौथा स्तम्भ होने के प्रमाण दिये थे।
एक सांसद कबूतरबाजी के लिये रंगे हाथ दबोचे गये थे।
स्टिंग आपरेशनों में सैकड़ों भ्रष्टाचारी जनता के सामने लाये जा चुके हैं और अनेकों के पकड़े जाने की सम्भावनाएं पैदा की जा चुकी हैं।
पुलिस के अधिकारियों को हत्या की सुपारी लेते और उसे कानूनी रूप देने की तरकीब स्पष्ट करते हुये कैमरों में दिखाया गया है।
जेल के कैदियों को अवैध सुविधाएं पहुंचाने वाले डाक्टर भी कैमरों की कैद में आकर निलंबित हो चुके हैं।

सेना में व्याप्त भ्रष्टाचार को भी न्यूज चैनल दिखा ही चुके हैं।
एक स्वयं सेवक और एक प्रदेश के केबिनेट मंत्री के अंतरंग संबन्ध तो देश भर ने सीडी द्वारा देखे ही थे, धर्म परिवर्तन के बहाने राजनीति करने वाले एक मंत्री तो जाम उठा कर पैसे को खुदा बताते और रिश्वत की गिड्डियां लेते देश भर में मीडिया के द्वारा देखे गये थे।
देश के एक प्रभावशाली नेता की सीडी और टेलीफोन पर सौ घन्टों से अधिक की बातचीत के टेप भी चर्चित रहे हैं। उन टेपों को ट्रम्प कार्ड की तरह स्तेमाल करने के उद्देश्यवश उसी दल में विरोधी गुट के नेता लिये घूमते रहे।
एक प्रदेश के मुख्यमंत्री की पत्नी को नोट गिनने की मशीन बेचने वाले ने ही मशीन खरीदते समय वीडियो रिकार्डिंग करा के उनके प्रदेश के एक मंत्री को बेच दी थी, जो मुख्यमंत्री पर लम्बे समय तक दबाव बनाता रहा।

आयकर विभाग वालों के राजस्व वसूली के आंकड़े साल दर साल फल फूल रहे हैं जिनमें सेवा कर की भी बड़ी राशि सम्मिलित है।
आज सरकारों में बैठे लोग भले ही अपने स्वार्थों के कारण काला धन निकलवाने में विलंब कर रहे हों पर सच तो यह है कि आज के समय में सरकार का आयकर विभाग चाहे तो बैंकों द्वारा होने वाले काले सफेद सभी तरह के धन के प्रवाह को अपने कार्यालय में बैठ कर ही देख सकती है, क्योंकि सीबीएस बैंकिंग आने और आयकर विभाग को उसे देखने के उचित अधिकार मिल जाने के बाद उन्हें बैंक खातों की निगरानी की सुविधाएं मिल गयी हैं।
अब चुनाव आयोग पहले जैसा औपचारिक ढंग से काम निबटाने वाला संस्थान नहीं है अपितु इलोक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन तक आ पहुँचा विभाग मन और वचन दोनों से ही नियमों की घोषित भावनाओं के पालन हेतु भरसक प्रयत्न रत है।

कई मामलों में न्याय भी अब आगे बढ़ कर प्रकरणों को दुबारा खुलवा कर सुनवाई करवा रहा है और सरकारों पर सख्त टिप्पणियां कर रहा है।
सरकारों को मजबूर होकर जनता को सूचना का अधिकार देना पड़ा है, जो अभी भले ही वांछित गति नहीं पकड़ पाया हो पर इरादा होने पर इस दौर में उसे देर नहीं लगेगी। इससे बेलगाम नौकरशाही में एक दहशत सी है, भले ही भ्रष्टाचार के नितप्रति अधिक उद्घाटनों से वह बड़ा हुआ दिख रहा हो।

यह पारदर्शी समय है। जिन मोबाइल फोनों ने अपराधियों को अनेक सुविधायें दी हैं उन्हीं में दर्ज रिकार्ड के कारण अपराधियों और उनके शिकारों के सम्पर्कों तथा सन्देहास्पदों की पिछली गतिविधियों का पता चल जाता है।
मंत्रालयों, बैंकों, एटीएमों, पेट्रोलपम्पों, प्रमुख मार्गों और रेलवे स्टेशनों पर सीसीटीवी कैमरे लगे हैं।

अब इंटरनेट से सारी दुनिया के नक्शे ही नहीं सड़कें और बाजार भी देखे जा सकते हैं।
दुनिया के अरबों लोगों के प्रोफाइल इंटरनेट पर उपलब्ध हैं जिसकी विभिन्न साइटों पर लोग प्रतिदिन अपने मनोभाव उगलते रहते हैं, जो जरूरत पर विश्लेषणों में काम आते हैं।
यह खुलने का समय है और जो खुद नहीं भी खुलना चाहते उन्हें समय खोल रहा है।
कार्यालयों में आने जाने और हाजिरी व छुट्टियों के हिसाब का काम कम्प्यूटर से होने लगा है।
मोबाइल पर फील्ड के अधिकारियों की लोकेशन समझी जा सकती है।
कम्प्यूटर और नेट इस बात का स्थायी रिकार्ड रखते हैं कि आपने कब कब कितने बजे कितने समय तक कौन सी साइट देखी या किस फाइल पर काम किया।

आज दुनिया वालों के दिलों और दिमागों को भी पढ़े और समझे जाने की ओर तेजी से प्रगति हो रही है।
विकीलीक्स ने जिन रहस्यों से पर्दा उठाया है उससे अमरीका समेत दुनिया भर के नेता और सरकारें हिल गयी हैं।
यह आश्चर्यजनक है कि इस पारदर्शी समय में भी हमारे देश के राजनीतिक नेता सरेआम नंगा झूठ बोलने से गुरेज नहीं कर रहे हैं। वे ढीठतापूर्वक झूठ बोलते हैं और उस झूठ को एक कुलीन भाषा में पिरोने के लिए जाने माने वकीलों को प्रवक्ता बनाते हैं।
लाखों लोगों द्वारा देखे गये अपराध को भी भाषायी कौशल से छुपाने की कोशिश करते हैं। ये लोग धर्म ग्रन्थों की शपथ लेकर जैसा सच बोलते हैं वह "अश्वत्थामा हतो नरो वा कुंजरो" जैसा सच होता है।

सक्षम मीडिया को जितना धन अब पिलाया जा रहा है उतना पहले कभी नहीं किया गया।
अब हम जितनी जल्दी यह स्वीकार लें उतना ही अच्छा होगा कि यह समय नंगे यथार्थ का समय है तथा भविष्य में कुछ भी ढका मुँदा नहीं रह जाने वाला है। कोई नहीं जानता कि कौन सा कैमरा किसे शूट कर रहा है, कौन सा टेप किसकी आवाज रिकार्ड कर रहा है, किसके खातों की नकल किसके पास है और तो और अब नारको टैस्ट से भी सच उगलवाया जा सकता है।
महापुरुषों ने सदियों से जिस सत्य को बोलने के लिए उपदेश दिये हैं पर फिर भी मानव जाति जिस पर अमल नहीं कर रही थी आज तकनीक उस पर अमल कराने की ओर बढ़ रही है।
नया नीति वाक्य यह होगा- मित्रों सच बोलो क्योंकि झूठ पकड़ा जा सकता है।