मिथ और अफवाहों में कश्मीर नहीं दिखेगा
जगदीश्वर चतुर्वेदी
कश्मीर को लेकर सारी बहस अफवाहों से चल रही है।
कश्मीरियों और कश्मीरी समाज को हम कम जानते हैं, कश्मीर की राजनीति को कम जानते हैं।
हमारी कश्मीर संबंधी अज्ञानता का इन दिनों सबसे ज्यादा दुरूपयोग हो रहा है।
कम जानकारी का सबसे ज्यादा दुरूपयोग मीडिया और सोशलमीडिया कर रहा है। खासकर साम्प्रदायिक-आतंकी ताकतें आम जनता की कम जानकारी का खुलकर दुरूपयोग कर रही हैं।
कश्मीरी लोग कैसे होते हैं ॽ उनका मिजाज कैसा होता है ॽ
कश्मीर में आमतौर पर स्त्री-पुरूष किस तरह से बातें करते हैं, किस तरह जीवन-यापन करते हैं, उनकी संस्कृति क्या है ॽ इत्यादि सवालों पर हमने कभी गौर ही नहीं किया।

वे अपनी सामान्य भाषा में, राजनीतिक विमर्श में जिन पदबंधों का इस्तेमाल करते हैं, उन पदबंधों को हम सही अर्थ और स्प्रिट में ग्रहण ही नहीं करते। यह बात वहां लोगों से मिलते हुए बार-बार महसूस हुई।
मैं जब श्रीनगर के पुराने शहर यानी डाउनटाउन इलाके के अंदर के मुहल्लों में दाखिल हुआ तो नजारा एकदम वैसा था, जैसा मथुरा के पुराने बाजार और मुहल्लों का हुआ करता है। पुराने मकान, पुराने दरवाजे, पुरानी गलियां, पुराने बिना प्रेस किए कपड़े पहने हुए लोग। चूंकि गर्मियों में वहां घूम रहे थे तो सामान्य तौर पर लोग-बाग सूती ड्रेस में ही मिले।
पुराने शहर के बाजारों में वही मथुरा जैसी अनौपचारिकता, उसी तरह आवाज देकर बोलने, टिप्पणी करने की आदत, औरतें बाजारों में खरीददारी करते हुए। जो लड़का मेरा गाइड था, वह बेहद सुंदर, मधुरभाषी, स्मार्ट, शिक्षित स्नातक था। दिल से बातें करने वाला, किस्सा-गो, हंसमुख। कश्मीर के जन-जीवन से करीब से वाकिफ।
वह लेह-लद्दाख से ही हमारे साथ था। अहर्निश बोलने वाला, तरह-तरह की बातें करने में माहिर, जिंदादिल ! उसके समूचे आचरण और बात करने की शैली ने हमें गहरे प्रभावित किया। वह सुबह से शाम तक हमारी मदद के लिए हर समय तैयार रहता। कभी अपनी निजी गाड़ी के साथ कभी टैक्सी के साथ, सुबह आता और रात को डिनर कराकर वापस लौटता। हमने उसे कोई पैसा नहीं दिया उसके व्यवहार और आचरण ने इस कदर प्रभावित किया कि हम भूल ही गए कि वह गाइड है। उसको एकबार कुछ भी पूछते थे तो वो लगातार विभिन्न तरीकों से हमें समझाता रहता, बताता रहता।
कश्मीर के लोग कैसे हैं और उनका दिल कैसा है यह मैंने गाइड की आंखों से ही सबसे पहले जाना।
एक दिन मैंने उससे कहा गुलमर्ग जाएंगे। बोला कल चलते हैं, सुबह वह गाड़ी लेकर हाजिर हो गया।
मैंने पूछा किसकी गाड़ी है यह। बोला मेरी है।
मैंने कहा तब मैं नहीं जाऊँगा।
बोला क्यों ॽ
मैंने कहा तुम गाड़ी का भाड़ा नहीं लेते, भाड़ा लोगे तो हम इस गाड़ी में जाएंगे ॽ
कुछ देर बातें करने के बाद वो राजी हो गया। मैंने भाड़ा तय नहीं किया। वह खुद ड्राइव करके हमें गुलमर्ग ले गया। गुलमर्ग ले जाने के पहले वह गुलमर्ग में राइड की टिकट खुद ही बुक कराकर ले आया।
दिलचस्प बात थी कि वह भी नहीं जानता था कि वहां राइड में क्या मुसीबत आ सकती है।

हम गुलमर्ग में अंत में उस स्थान पर पहुंचे जहां से राइड के लिए उड़न खटोले (गंडोला) में बैठकर ऊँची पर्वतीय चोटी पर जाना था।
अंदर गए तो देखा बहुत लंबी लाइन है। उड़न खटोले में सवार होने में कम से कम तीन घंटे लग सकते हैं।
गाइड हमें उड़न खटोले के लिए लाइन में लगाकर कहीं गायब हो गया। मैं लाइन खड़े हुए परेशान हो रहा था। मेरे आगे-पीछे बड़ी संख्या गुजराती मध्यवर्गीय पर्यटक लाइन लगाकर खड़े थे। इनमें औरतों की संख्या बहुत थी। उनमें मुसलिम औरतें भी थीं और गुजराती औरतें भी थीं। मेरे ठीक आगे एक गुजराती औरत खड़ी थी उसके साथ पूरा परिवार था। उसका पति और देवर कहीं बाहर लाइन तोड़कर उड़न खटोले में नियमभंग करके चढ़ने की जुगाड़ में व्यस्त था।
बीच-बीच में दलाल किस्म के लोग आकर टिकटें बेच रहे थे और लाइन तोड़कर उड़न खटोले में चढ़ाने की व्यवस्था करा रहे थे। वहां खुला करप्शन चल रहा था। दलालों को पैसा दो, वे तुरंत उड़ने खटोले में चढ़ा देते थे।

उन्हीं दलालों में किली दलाल को गुजराती परिवार के पुरूष ने पटाया और सौदा हो गया।
मेरे ठीक आगे खड़ी महिला बोली भाई साहब मैं जा रही हूँ।
मैंने मुसकराकर इशारे से ही कहा जाओ।
मेरे पीछे मुसलिम महिला थी, उसका परिवार था। गुजराती महिला गयी और 10 मिनट बाद झल्लाती हुई लौट आयी। संभवतः दलाल से उनका सौदा नहीं पटा। दलाल पैसे कुछ ज्यादा मांग रहा था।
गुजराती महिला ने मेरे आगे लाइन में खड़े होने की अनुमति मांगी। मैंने उसे खड़े होने दिया। मेरे पीछे जो मुसलिम महिला खड़ी थी उसने आपत्ति प्रकट की और उससे कहा कि वह लाइन में पीछे जाकर खड़ी हो जाय।
गुजराती महिला नहीं मानी और उसने तड़ातड़ गंदी गंदी भाषा में बोलना शुरू कर दिया।

मैं परेशान था,आगे-पीछे से दो औरतें खुलकर भाषा में भदेस होती जा रही थीं।
मैंने पीछे खड़ी मुसलिम महिला से कहा कि ये महिला मेरे आगे ही खड़ी थीं आप काहे को नाराज हो रही हैं, लेकिन मामला थमकर नहीं दिया।
खैर दो महिलाओं की तू-तू मैं -मैं में यह भी एहसास हुआ कि मध्यवर्ग की औरतें किस तरह भदेस भाषा में जमकर यथार्य़वादी शैली का इस्तेमाल करती हैं और भाषा में एक-दूसरे को बेनकाब करती हैं।
इधर मैं अपने गाइड को फोन लगाने की कोशिश कर रहा था। फोन लग नहीं रहा था। 15-20 मिनट के बाद उसका फोन आया कि आप ऊपर चले आएं।
मैं ऊपर चला गया, वहां पर गंडोला यान उड़न खटोले में लोग सवार होकर गुलमर्ग की ऊँची पहाड़ी पर सैर करने जा रहे थे। सैंकड़ों लोगों की लम्बी लाइन लगी थी। मेरे ऊपर पहुँचते ही उसने लाइन तोड़कर मुझे उड़न खटोले में सवार करा दिया।
हम लोग कुछ देर में ऊपर पहुंच चुके थे।
मैंने गाइड से पूछा तुमने यह सब जुगाड़ कैसे किया। बोला 100 रूपये में लाइन तोड़कर ले जा रहा हूँ आपको।
मैंने पूछा क्या यहां पर भी घूस लेते हैं ॽ
बोला हां, ईमानदीरी से आप लाइन में खड़े रहते और दो-तीन घंटे बाद आपका नम्बर आता।

यह मेरा कश्मीर में घूस देने का पहला अनुभव था ।
मैं मानकर चल रहा था सेना के नियंत्रण में कश्मीर में घूस का क्या काम ! लेकिन एक ही झटके में मेरा अनुमान धराशायी हो चुका था।
खैर, हम गुलमर्ग पर ऊपर पहुँच गए, वहां कुछ देर बैठे फोटोग्राफी की। फिर वही समस्या थी, कि नीचे कैसे उतरें, कोई समाधान नजर नहीं आ रहा था। ऊपर कोई घूसखोर भी नहीं मिला ,जो पैसा लेकर लाइन तोड़कर हमें चढ़ा दे। लंबी लाइन लगी थी नीचे आने के लिए। मैं चिन्तित था और पहाड़ी पर ऐसे ही टहल रहा था।
मैंने गाइड से कहा देखो सामने यह कोई पुलिस का आदमी लगता है जाकर बात करो, कोई रास्ता निकल आए। गाइड गया। उसने कश्मीरी में बातें की। मेरा परिचय दिया और मदद मांगी और कहा कि वह किसी तरह हमें नीचे गंडोले से ले जाय।
वह व्यक्ति राजी हो गया। वह व्यक्ति और कोई नहीं ब्लैककेट कमांडो का सीनियर अफसर था।
उसने कहा चुपचाप मेरे पीछे चले आओ। हम लोग तेजी से उसके पीछे हो लिए।
हमने एक-दूसरे से परिचय किया और तेजी से साथ-साथ चलने लगे।
वह अफसर सादा ड्रेस में था। वह कश्मीरी मुसलिम था।

मैंने पूछा आप क्या यहां घूमने आए थे ॽ
वह बोला नहीं मैं ड्यूटी पर हूँ सुबह से।
मैंने पूछा क्या कोई वीआईपी आने वाला था यहां !
बोला हां, गुलाम नबी आजाद साहब के आने का कार्यक्रम था, लेकिन अब वे नहीं आ रहे। वे नीचे शहर से ही लंच करके वापस चले गए हैं, इसलिए मैं वापस जा रहा हूँ।
उल्लेखनीय है अनंतनाग विधानसभा उपचुनाव के लिए महबूबा मुफ्ती ने अपना नामांकनपत्र उसी दिन भरा था और गुलाम नबी आजाद विपक्ष की रणनीति ठीक करने लिए वहां आए थे। उनको गुलमर्ग आना था, लेकिन तेज बरसात शुरू होने के कारण वे गुलमर्ग की पहाड़ियों पर नहीं गए, नीचे शहर से ही घूमकर वापस श्रीनगर चले गए।
खैर, ज्योंही हम उड़नखटोले की ओर पहुँचे, उस अफसर को तो गंडोला के संचालक ने चढ़ने दिया हमें रोक लिया। हमने कहा हम भी इस अफसर के साथ हैं तो उसने हमें चढ़ने दिया। रास्ते भर हम उस अफसर से बातें करते आए। उसका शुक्रिया अदा किया, वह भी हमसे बातें करके बेहद खुश था। बोला मेरी थकान और भूख मिट गयी आपलोगों से बातें करके।