मीडिया में प्रतिभा और प्रतिबद्धता का अभाव-शशि शेखर
मीडिया में प्रतिभा और प्रतिबद्धता का अभाव-शशि शेखर
नई दिल्ली। भ्रष्टाचार का मुद्दा अब सरकार तक ही सीमित नहीं है। हमारे देश और समाज में सरकारी तंत्र और भ्रष्ट तंत्र समानांतर चल रहे हैं। पूरा
सरकारी तंत्र भ्रष्ट हो गया है। राजनीतिक और वैचारिक भ्रष्टाचार इसका मूल है। जब तक वैचारिक स्तर और राजनीति में सुधार नहीं किया जाएगा। तब तक भ्रष्टाचार से मुक्ति नहीं मिल सकती है। आज हमारे देश की पॉलिसी बाजार को मजबूत करने और सरकार को कमजोर करने की बन रही है। कुछ सर्वेक्षण 25 फीसदी तो कुछ आंकड़े 45 प्रतिशत संसद सदस्यों पर आपराधिक मामलों में लिप्त बता रहे हैं। ऐसे में भ्रष्टाचार के एक स्वरूप पर बात करना बेमानी है। यह विचार पूर्व सांसद और चौथी दुनिया के संपादक संतोष भारतीय ने व्यक्त किये। दिल्ली के कॉस्टीट्यूशनल क्लब के स्पीकर हाल में वह उदयन शर्मा के 63 वें जन्म दिन के अवसर पर आयोजित ‘भ्रष्टाचार का मुद्दा और मीडिया की भूमिका’ विषय पर अपना विचार व्यक्त कर रहे थे।
कार्यक्रम का आयोजन उदयन शर्मा फाउंडेशन ट्रस्ट ने किया था। अपने संबोधन में उन्होंने मीडिया की भी जम कर खबर ली। उन्होंने कहा कि पहले हम सरकारी और प्रशासनिक कदाचार और भ्रष्टाचारियों के ऊपर खबरें करते थे। पत्रकारों का काम गलत लोगों पर उंगली उठाने का था। अब तो हमारी विरादरी यानी पत्रकारों के ऊपर भी आक्षेप लगने लगे हैं। बात केवल शासन प्रशासन के भ्रष्टाचार और आर्थिक भ्रष्टाचार तक ही नहीं सीमित है। भ्रष्टाचार घूसखोरी, कालाबाजरी नहीं बल्कि एक आचरण बन गया है। जिसे हम विचलन और भटकाव कह सकते हैं। जो सही नहीं है वह भ्रष्टाचार है। संविधान,समाज और सामाजिक आदर्श के अनुरूप जो नहीं है,वह गलत और भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है। टांसपरेंसी इंटरनेशनल के सर्वेक्षण का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि भारत में 45 फीसदी से अधिक लोगों को जीवन में घूस लेने या देने का सामना करना पड़ता है। स्थिति की भयावहता को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि आज के दौर में सही और गलत क्या है तय करना मुश्किल होता जा रहा है। पत्रकार अपने मिशन से भटकते जा रहे हैं। कई टीवी चैनल और अखबार राजनीतिक दलों के मुखपत्र और राजनीतिक संवाददाता राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता की भूमिका में नजर आते हैं। यह लोकतंत्र और मीडिया के लिए खतरनाक संकेत है। इस बीमारी पर अंकुश लगाने की जरूरत है।
स्टार न्यूज के उदयशंकर ने कहा कि आज भी पत्रकार जोखिम उठाकर काम कर रहे हैं। मुबई में ज्योतिर्मय डे की हत्या इसका उदाहरण है।
हिंदुस्तान के संपादक शशिशेखर ने उदयन शर्मा को कस्बे और गांव का पत्रकार बताते हुए कहा कि वह हमारे बीच के आदमी थे। अपनी पत्रकारिता में वह आम आदमी की चिंता को मुख्य विषय बनाया। मीडिया के ऊपर लग रहे आरोपों और अवमूल्यन के कारणों पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि आज मीडिया में प्रतिभाओं का आना कम हो गया है। आज का युवा एमबीए और इंजीनियरिंग करके अधिक से अधिक पैसा कमाने की सोचता है। पहले मीडिया में प्रतिभा प्रतिबद्धता के साथ आती थी। अब टीवी चैनल के आकर्षण में बध कर युवा पत्रकारिता में आ रहे हैं। भ्रष्टाचार पर समाज की दोहरी नीति की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा कि हम जीवन में दोहरी नीति अपनाने के आदी हो गए हैं। सत्य और सत्य बोलने वालों को हम सलीब पर लटका देखना चाहते हैं। अखबार और समाचार समूहो की मजबूरियों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि विज्ञापन, कॉरपोरेट हाउस और राजनेताओं के दबाव के बीच हमे काम करना पड़ता है।
जी न्यूज के सतीश के. सिंह ने कहा कि संस्थागत सुधारों से भी बहुत तरह की कमियों पर लगाम लगाया जा सकता है।
एनडीटीवी के पंकज पचौरी ने मीडिया में आर्थिक और क्रेडिबिलिटी का भ्रष्टाचार का हवाला दिया। अधिकांश खबरों को कैग की रिपोर्ट आने के बाद ही प्रसारित करने पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि आज रिपोर्टर खबरों की तह में न जाकर नीर क्षीर विवेक करना बंद कर दिया है। अन्ना हजारे के जंतर मंतर पर धरना की रिर्पोटिंग और लंदन के न्यूज आॅफ द वर्ल्ड का हवाला देते हुए कहा कि अगर हमारी साख नहीं बचेगी तो किसी भी दिन जनता जंतर-मंतर पर हमारे खिलाफ धरना देने लगे तो आश्चर्य की बात नहीं होगी।
मुख्य निर्वाचन आयुक्त एसवाई कुरैशी ने कहा कि भ्रष्टाचार के कारण हमारे देश की राजनीति किसी भी दिन पटरी से उतर सकती है। उसी तरह पेड न्यूज को अगर अखबारों ने नहीं रोका तो मीडिया भी अपनी विश्वसनीयता खो देगी।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रही सूचना एवं प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी ने कम उम्र में परिपक्व विचार रखने वाले उदयन शर्मा को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि 21 वीं सदी में मीडिया समूहों पर बाहर से अंकुश नहीं लगाया जा सकता। मीडिया को स्वयं अपने सुधार के लिए पहल करनी पड़ेगी। अखबारों के पाठक वर्ग की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि भारत में अभी 35 करोड़ लोग अखबार पढ़ते हैं। साक्षरता बढ़ने की वजह से 25 करोड़ लोग अखबार पढ़ सकते हैं। मीडिया समूह उनके पास तक पहुंचे यह किसी चुनौती से कम नहीं है। देश मे लगातार मीडिया का बाजार बढ़ रहा है।
वरिष्ठ पत्रकार पुण्य प्रसून बाजपेयी ने कहा कि भारत में सरकार भ्रष्टाचार में आकं ठ डूबी हुई है। 4 लाख लोग बरसात में इसलिए जेल के अंदर चले जाते हैं जिससे वर्षा से बच सके। लंदन में रूपर्ट मार्डोक 168 साल पुराने अखबार को बंद करते हुए कहते हैं कि जब साख ही नहीं रही तो हम अखबार क्या निकालेंगे। लेकिन हमारे देश के अंदर राजनेताओं और मीडिया के साख के सवाल को बड़े चालाकी के साथ टाला जा रहा है। प्रधानमंत्री कार्यालय तक नव उदारवादी आर्थिक नीतियों और कॉरपोरेट दलालों का आना जाना है।
नई दुनिया के राजनीतिक संपादक विनोद अग्निहोत्री ने मीडिया की समस्याओं और सीमाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि हमे यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाना होगा।
वरिष्ठ पत्रकार और आज समाज के संपादक राहुल देव ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में पत्रकारिता के सामने मौजूद संकटों और चुनौतियों का व्यवहारिक और यथार्थवादी समाधन करने की जरूरत पर बल दिया।
प्रस्तुति - प्रदीप सिंह


