मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक हिंसा : मारे गए लोगों को लापता कहकर हत्यारों को बचा रही अखिलेश सरकार- रिहाई मंच
मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक हिंसा : मारे गए लोगों को लापता कहकर हत्यारों को बचा रही अखिलेश सरकार- रिहाई मंच
मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक हिंसा : मारे गए लोगों को लापता कहकर हत्यारों को बचा रही अखिलेश सरकार- रिहाई मंच
लखनऊ 27 सितम्बर 2016। रिहाई मंच ने अखिलेश सरकार द्वारा मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक हिंसा में मारे गए लोगों को लापता होने के नाम पर मुआवजा देने की घोषणा पर कहा कि सरकार उन्हें लापता कहकर हत्यारों और अपने पुलिस महकमें और खुद को बचाकर इंसाफ का कत्ल कर रही है।
रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक हिंसा में जिन लापता लोगों के परिजनों को मुआवजा देने की घोषणा की गई है, उनको सांप्रदायिक हिंसा में मार दिया गया था। जिसमें से 13 लोग लिसाढ़ गांव से हैं जिनमें सिर्फ दो लोगों की लाशें उस दरम्यान बरामद हुई थी।
इसी तरह हड़ौली, बहावड़ी, ताजपुर सिंभालका से भी हत्याकर लाशें गायब कर दी गईं थीं। जबकि चश्मदीद गवाह कहते हैं कि हत्याएं हमारे सामने हुईं। पुलिस तो घटना स्थल पर तुरंत पहुंच गई थी फिर यह लाशें किसने गायब कीं? मुजफ्फरनगर-शामली सांप्रदायिक हिंसा में सबसे अधिक 13 हत्याएं होने वाले लिसाढ़ गांव के पीड़ितों पर मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक हिंसा की जांच कर रहे एसआईसी के मनोज झां का आरोपियों का नाम निकलवाने के लिए लगातार दबाव रहता था।
मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक हिंसा के साइलेंट वार में मारे गए लोगों को कब मृतक मानेगी सरकार- असद हयात
राजीव यादव ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से सवाल किया है कि ऐसे सांप्रदायिक जेहनियत वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कब कार्रवाई होगी। क्योंकि लिसाढ़ से ही सटे हुए गांव मीमला रसूलपुर जिसके ग्राम निवासियों ने थाना कांधला पुलिस को फोन करके बताया कि उनके गांव के बाहर कब्रिस्तान के पास तीन अज्ञात लाशें पड़ी हैं, जिसके बाद पुलिस मौके पर पहुंची और यह कहकर चली गई कि उसे अभी वह ले नहीं जा सकती और बाद में वह लाशें गायब हो गईं। जिसको पुलिस ने आरटीआई में भी माना है।
एसआइसी प्रमुख मनोज कुमार झा जो मुजरिमों का नाम निकलवाने के लिए दबाव डालते थे, उन पर कब कार्रवाई करेंगे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव
मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक हिंसा की कानूनी लड़ाई लड़ रहे अधिवक्ता असद हयात ने कहा कि मारे गए उन लोगों जिन्हें सांप्रदायिक हिंसा में मारा जाना माना ही नहीं गया, उनकों कब मृतक मानेगी सरकार।
उन्होंने बताया कि रिहाई मंच के राजीव यादव द्वारा डूंगर निवासी मेहरदीन की हत्या की एफआईआर दर्ज कराई गई थी। सांप्रदायिक हिंसा में मारे गए डूंगर निवासी मेहरदीन की हत्या का उनके द्वारा मुकदमा दर्ज कराने पर महीनों बाद पुलिस ने उन्हें मुजफ्फरनगर बुलाया की पोस्टमार्टम के लिए लाश निकाली जाएगी पर बयान दर्ज करने के बावजूद लाश नहीं निकाली गई। इसी तरह सांप्रदायिक हिंसा में मारे गए लोगों के और भी एफआईआर हुए।
उन्होंने कहा कि लगभग 10 हत्याएं जनपद बागपत में हुई जिन्हें सरकार ने सांप्रदायिक हिंसा में हुई मौत नहीं माना है। 25 से अधिक मामले ऐसे भी हैं जिनकी निष्पक्ष विवेचना नहीं हुई और इन व्यक्तियों की सांप्रदायिक हत्याओं को पुलिस ने आम लूट पाट की घटनाओं में शामिल कर दिया। मुख्य साजिशकर्ता भाजपा और भारतीय किसान यूनियन के नेताओं और इनसे जुड़े संगठन के नेताओं के विरुद्ध धारा 120 बी आपराधिक साजिश रचने के जुर्म में कोई जांच ही नहीं की गई। ऐसा कर सरकार खुद व अपने दोषी पुलिस महकमें को बचा रही है।


