मुझे मंज़ूर गर तर्क-ए-तअल्लुक है रज़ा तेरी/ मगर टूटेगा रिश्ता दर्द का आहिस्ता आहिस्ता
मुझे मंज़ूर गर तर्क-ए-तअल्लुक है रज़ा तेरी/ मगर टूटेगा रिश्ता दर्द का आहिस्ता आहिस्ता
राजीव रंजन श्रीवास्तव
मुझे मंज़ूर गर तर्क-ए-तअल्लुक है रज़ा तेरी
मगर टूटेगा रिश्ता दर्द का आहिस्ता आहिस्ता
शायर अहमद नदीम कासमी ने क्या खूब फरमाया है कि टूटेगा रिश्ता दर्द का आहिस्ता-आहिस्ता। अखिलेश और मुलायम सिंह यादव के बीच इन दिनों रिश्ता दर्द का ही हो गया है।
पिछले कई महीनों की रस्साकशी के बाद यह तय हो गया कि साइकिल की सवारी तो अखिलेश ही करेंगे, मुलायम चाहें तो पीछे से सहारा दें या उतर कर अलग राह पकड़ लें।
आखिर ऐसा क्या हुआ कि पिता-पुत्र के रिश्तों में इतनी दूरियां आ गईं कि उन्हें अलग-अलग चुनाव आयोग का दरवाजा खटखटाना पड़ा?
क्या सचमुच अब समाजवादी पार्टी बंट गई है?
क्या होगा मुलायम सिंह यादव का भविष्य और शिवपाल यादव की राजनीति अब किस तरह की होगी?
रामगोपाल यादव क्या सचमुच चाणक्य या आज की भाषा में कहें तो किंगमेकर की भूमिका निभाएंगे? सवाल कई हैं, जिन पर चर्चा के लिए स्टूडियो में हमारे साथ हैं अमलेंदु उपाध्याय और लखनऊ से टेलीफोन पर जुड़ेंगे रतिभान त्रिपाठी..
समाजवादी पार्टी में मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव के बीच बढ़ते तनाव के कारण पार्टी दो गुटों में बंट गई। एक गुट में मुलायम सिंह के साथ उनके भाई शिवपाल यादव और करीबी अमर सिंह थे, तो दूसरी ओर अखिलेश यादव के साथ मुलायम के ही चचेरे भाई रामगोपाल यादव और पार्टी के अधिकतर कार्यकर्ता तथा विधायक खड़े थे।


