The question of Muslim communalism and secularism

इस विषय पर भी निगाह साफ़ करना जरूरी है, क्योंकि अक्सर यह बात कही जाती है कि तथाकथित धर्म निरपेक्ष लोग इस पर चुप्पी साधे रखते हैं। जबकि ऐसा है नहीं।

इस देश में मुस्लिम साम्प्रदायिकता (Muslim communalism in the country) से भी लोग उतनी ही बहादुरी से लड़े हैं। जिन्हें सच में इस विषय पर गहराई सोचना समझना हो उन्हें बिपन चंद्र की किताब Communalism in Modern India और india's Struggle For Independence जरूर ध्यान से पढ़नी चाहिए। यह हिंदी में भी उपलब्ध हैं।

मुस्लिम साम्प्रदायिकता क्या है? | What is Muslim Communalism?

बंटवारे के बाद भारत में मुस्लिम फिरकापरस्ती का आधार कमजोर पड़ने लगा, क्योंकि मुस्लिम बिरादरी कुल मिलाकर यह समझ गयी कि साम्प्रदायिकता के जाल में फंसने पर उसी बिरादरी का सबसे ज्यादा नुकसान होता है, जो उस कुचक्र को समझ नहीं पाती।

साथ ही भली बात यह थी कि साम्प्रदायिक कीड़ा कमोबेश शहरी लोगों के दिमाग में ही घुसा था और गाँवों में रहने वाली आबादी इससे दूर थी और पारंपरिक तरीके से मिल जुल कर ही रहती आ रही थी। अगर यह ना होता तो देश भयंकरतम गृह युद्ध में फंस जाता।

यह जरूर हुआ कि मुस्लिम चेतना में एक तरह का अफ़सोस और रक्षात्मकता जरूर आ गयी और उनमें एक अघोषित डर पैठ कर गया। वे यह तो समझ गए कि पाकिस्तान एक झूठ पर खड़ा किया गया था और भारत ही उनका सब कुछ मुस्तकबिल है, लेकिन पाकिस्तान के प्रति उनका एक भावनात्मक रिश्ता सा रहा, क्योंकि लकीरें खींच देने से देश नहीं बनते और ना ही सब खत्म हो जाता है।

सच पूछिये तो वो सारे भारतीय, जिनका लाहौर कराची या पाकिस्तान के दूसरे हिस्सों से जुड़ाव था, वो भी अपने भावनात्मक रिश्ते खत्म न कर सके।

जो बिरादरी लगातार एक अलगाव बोध, भावनात्मक असुरक्षा और आत्मविश्वासहीनता से गुजरती है, उसकी धर्म और धर्म की कर्मकांडीय अवधारणाओं पर निर्भरता बढ़ने लगती है। बंटवारे के बाद मुस्लिम बिरादरी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ।

लेकिन याद रखने की जरूरत है कि इन सब कारणों से मुस्लिम समाज घोर साम्प्रदायिक हुआ हो ऐसा नहीं। हाँ, उनमें एक जटिल तरह की धार्मिकता जरूर जम गयी, जिस कारण से उनमें धार्मिक सुधार के प्रति रुझान में कमी आई।

हिन्दू साम्प्रदायिकता आजादी के बाद लगातार उग्र और बढ़ती रही और चूँकि उसका मुख्य आधार मुस्लिम विरोध ही था, इसलिए भी उपरोक्त वर्णित परिस्थितियों से निपटना मुस्लिम बिरादरी के लिए और कठिन हो गया।

आजादी के पहले मुस्लिम साम्प्रदायिकता | Muslim communalism before independence

आजादी के पहले मुस्लिम फिरकापरस्ती एक बड़ी राजनीतिक ताकत बन के उभरी और पली- बढ़ी। इसके कारणों में जाने का यह अवसर नहीं, पर याद रखना चाहिए कि पाकिस्तान बनने के बावजूद अधिकाँश मुस्लिम आबादी इस जहर से दूर ही रही।

धर्म निरपेक्षता का मतलब धर्म से दूर होना नहीं | Secularism does not mean turning away from religion

हिन्दू साम्प्रदायिकता भी आज़ादी के पहले थी पर उसका आधार सामाजिक सांस्कृतिक ही था और वह बड़ी राजनीतिक ताकत नहीं हो पायी।

इसका कारण यह था कि धर्मनिरपेक्ष ताकतें बहुत मजबूत थीं। कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टी, समाजवादी धड़े, स्वतंत्र क्रांतिकारी लोग मूलतः राजनीतिक सोच के स्तर पर धर्मनिरपेक्ष ही थे और त्याग, जनता के लिए संघर्ष और बलिदान के कारण जनता के दिलों पर राज करते थे और साम्प्रदायिक पार्टियों के खिलाफ भी लड़ते थे।

यहाँ धर्मनिरपेक्षता का मतलब धर्म से दूर होना नहीं बल्कि उस राजनीति से अलग रहना है जो धर्म के नाम पर एक दूसरे धार्मिक मतावलंबियों के खिलाफ नफरत और दुश्मनी फैलाने वाली राजनीति हो।

आलोक वाजपेयी

(लेखक इतिहासकार हैं।)