मैदान छोड़ना नहीं, पीठ दिखाना नहीं, फासीवाद हारने लगा है!
मैदान छोड़ना नहीं, पीठ दिखाना नहीं, फासीवाद हारने लगा है!
देश को जोड़ लें, दुनिया जोड़ लें, कोई अकेला भी नहीं है!
पलाश विश्वास
दाभोलकार, पनसारे और कलबुर्गी के हत्यारे, बाबरी विध्वंस, भोपाल गैस त्रासदी.देश विदेश दंगों और आतंकी हमलों, सिखों के नरसंहार, गुजरात के दंगों, सलवा जुड़ुम और आफस्पा, टोटल प्राइवेटेजाइशेन, टोटल विनिवेश, टोटल एफडीआी के सौदागर तमाम हारने लगे हैं, हमारा यकीन भी कीजिये।
जिनने इस महादेश को कुरुक्षेत्र के मैदान में तब्दील कर दिया जो धर्म कर्म के नाम असत्य और अधर्म, अहिंसा और भ्रातृत्व के बदले हिंसा और नरसंहार, विश्वबंधुत्व के बदले हिंदुत्व का ग्लोबल एजंडा और भारत तीर्थ की विविधता, वैचित्र्य के बदले गैरहिंदुओं के सफाये से देश को हिंदू बनाने के उपक्रम से कृषि, व्यवसाय और उद्योगधंधों की हत्या करके विदेशी पूंजी और विदेशी हितों के दल्ला बनकर महान भारत देश की हत्या का राजसूय यज्ञ का आयोजन कर रहे थे। बाबुलंद ऐलानिया जिहाद जो छेड़े हुए थे राष्ट्र के विवेक, सत्य, अहिंसा, न्याय, शांति समानता के बदले समरस मृत्यु उत्सव के नंगे कार्निवाल में हर मनुष्य को बंधुआ कंबंध बनाने के लिए हिंदू राष्ट्र के नाम पर। अंध राष्ट्रवाद के उन्मादी मुक्तबाजारी आवाहन के साथ। गौर से देख लो भइये, उनके रथ के पहिये धंसने लगे हैं।
ताजा खबर है कि दिल्ली की तीनों नगर निगम के सफाई कर्मचारी आज से हड़ताल पर चले गए हैं। सफाई कर्मचारी सेलरी में बढ़ोतरी, समय पर सेलरी मिलना, एरियर, भत्ते, कैशलेस मेडिकल सुविधा जैसी 17 मांगो को लेकर हड़ताल पर गए हैं।
तीनों नगर-निगम के सफाई कर्मचारियों के हड़ताल पर जाने से दिल्ली में सफाई व्यवस्था बिगड़ सकती है और सड़कों पर कड़े के ढेर नजर आ सकते हैं। वहीं दूसरी तरफ सफाई कर्मचारियों का कहना है कि वह अपनी मांगों को लेकर 15 जुलाई से सिविक सेंटर के सामने धरने पर बैठे हैं लेकिन किसी ने उनकी सुध नहीं ली है। ताजा खबर फिर दलित उत्पीड़न की है जो एक सिलसिला है अविराम। अनंत सिलसिला। इस मनुसमृति नस्ली रंगभेदी राजकाज का रोजनामचा है यह फासीवाद का आचरण है यह।
इसलिए रवींद्र के दलित विमर्श कर को चर्चा हो नहीं सकती क्योंकि रवींद्र अछूत है और रवींद्र साहित्य रवींद्र संगीत की लय बुद्धम् शरणमं गच्छामि के तहत भारत को भारत तीर्थ बनाती है जो न जाने कितनी मनुष्य धाराओं क समामहित करके सबसे बड़ा तीर्थस्तल है इंसानियत के इतिहास भूगोल का, राजकाज उस भारत तीर्थ के कातिलों के जिम्मे कर दिया हमने अपने जनादेश के जरिये। जनादेश का वह ब्रह्मास्त्र अब जनता वापस लेने लगी है।
मैदान छोड़ना नहीं, पीठ दिखाना नहीं, फासीवाद हारने लगा है!
अरविंद केजरीवाल, आप हमारी सुन रहे हैं तो दिल्ली में तीनों महापालिकाओं के सफाई कर्मचारियों को न्याय दिलाने के लिए तुरंत पहल करें! आपके लिए ऐतिहासिक मौका है। देश की राजधानी में अछूतों और बहुजनों की सुनवाई नहीं है एक सौ एक दिन के धरने और अब हड़ताल के बावजूद क्योंकि लोकतंत्र भी मूक वधिर है।
मैदान छोड़ना नहीं, पीठ दिखाना नहीं, फासीवाद हारने लगा है!
ऐसा पहली बार नहीं कि यह देश या यह दुनिया फासीवाद के शिकंजे में है। हिटलर का किस्सा मशहूर है तो गौरतलब है कि इंदिराम्मा की बेमिसाल रहनुमाई और समाजवादी राजकाज का अंत भी फासीवादी विकल्प चुनने की ऐतिहासिक भूल की वजह से हुई।
इसी फासीवाद की वजह से देश लहूलुहान हुआ और आपरेशन ब्लू स्टार को भी अंजाम दिया फासीवाद ने जिसे तब भी मजहबी सियासत के झंडेवरदारों ने अपनी जमीन हिंदुत्व के पुनरूत्थान के लिए हर संभव मदद की और वह विभाजन से पहले बने हिंदुत्व के महागठबंधन की वापसी का नजारा है, जो आज दसों दिशाओं में कमल कमल लहालहा रहा है।
तब सिखों का संहार हुआ तो अब मुसलमान, दलित, पिछड़े और आदिवासी, हर गैरहिन्दू, हर गैरनस्ली अनार्य, द्रविड़, मंगोलियाड, आस्ट्रेलियाड निशाने पर हैं और उससे ज्यादा निशाने पर हैं इस कायनात की रहमतें, बरकतें, नियामते और हर दिल में गहराई तक पैठी मुहब्बत और अमनचैन की फिजां।
फासिज्म का यह जलजलाई जलवा कोई नया भी नहीं है और न यह बजरंगी तांडव कुछ नया नया है।
मैदान छोड़ना नहीं, पीठ दिखाना नहीं, फासीवाद हारने लगा है!
इस देश ने आपातकाल को महज दो साल में तोड़कर फिर लोकशाही की बहाली की और दुनिया की गोलबंदी ने हिटलर मुसोलिनी के अश्वमेधी फौजों को शिक्सत दी तो बिरंची बाबा का टायटैनिक अवतार की क्या हैसियत जो आजाद लबों के बोल, आजाद नागरिकों की चीखों की गूंज अनुगूंज को थाम लें!
अब तक जिनने भी फासीवादी तौरतरीके लोकतंत्र और संविधान के कत्ल के बाद खून से सने हाथों की सफाई बतौर तमाशे का रंगारंग मनोरंजक सेक्सी तिलिस्म बना दिया, वे सभी लोकप्रिय भी रहे हैं और जनादेश के धनी भी रहे हैं।
फिरभी कोई जनादेश अंतिम नहीं होता। हर हाल में फासीवाद की हार तय है। फिर वही किस्सा दोहराया जा रहा है।
मैदान छोड़ना नहीं, पीठ दिखाना नहीं, फासीवाद हारने लगा है!
वे हारने लगे हैं दोस्त, जिनने इस महादेश को कुरुक्षेत्र के मैदान में तब्दील कर दिया जो धर्म कर्म के नाम असत्य और अधर्म, अहिंसा और भ्रातृत्व के बदले हिंसा और नरसंहार, विश्वबंधुत्व के बदले हिंदुत्व का ग्लोबल एजंडा और भारत तीर्थ की विविधता, वैचित्र्य के बदले गैरहिंदुओं के सफाये से देश को हिंदू बनाने के उपक्रम से कृषि, व्यवसाय और उद्योगधंधों की हत्या करके विदेशी पूंजी और विदेशी हितों के दल्ला बनकर महान भारत देश की हत्या का राजसूय यज्ञ का आयोजन कर रहे थे।
दाभोलकार, पनसारे और कलबुर्गी के हत्यारे, बाबरी विध्वंस, भोपाल गैस त्रासदी.देश विदेश दंगों और आतंकी हमलों, सिखों के नरसंहार, गुजरात के दंगों, सलवा जुड़ुम और आफस्पा, टोटल प्राइवेटेजाइशेन, टोटल विनिवेश, टोटल एफडीआी के सौदागर तमाम हारने लगे हैं, हमारा यकीन भी कीजिये।
और बाबुलंद ऐलानिया जिहाद छेड़े हुए थे राष्ट्र के विवेक, सत्य, अहिंसा, न्याय, शांति समानता के बदले समरस मृत्यु उत्सव के नंगे कार्निवाल में हर मनुष्य को बंधुआ कंबंध बनाने के लिए हिंदू राष्ट्र के नाम पर अंध राष्ट्रवाद के उन्मादी मुक्तबाजारी आवाहन के साथ, गौर से देख लो भइये, उनके रथ के पहिये धंसने लगे हैं।
खबर है कि साहित्य अकादमी ने हारकर 150 देशों के लेखकों, कवियों, कलाकारों, संस्कृतिकर्मियों के गोलबंद हो जाने के बाद अकादमी अध्यक्ष विश्वनाथ तिवारी की रहनुमाई में पुरस्कार लौटाने वालों के खिलाफ अभूतपूर्व घृणा अभियान चलाने के बाद और दिल्ली में ही लेखकों कलाकारों रचनाकर्मियों के खिलाफ बजरंगी तांडव के मध्य झख मारकर सिर्फ कलबर्गी की ह्ताय की निंदा की है और लेखकों से पुरस्कार फिर ग्रहण कर लेने की अपील की है।
मैदान छोड़ना नहीं, पीठ दिखाना नहीं, फासीवाद हारने लगा है!
देश को जोड़ लें, दुनिया जोड़ लें, कोई अकेला भी नहीं है!


